Infosys layoffs: इंफोसिस में बड़े पैमाने पर ट्रेनीज की छुट्टी के मामले में यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ लेबर एंड एंप्लॉयमेंट ने कर्नाटक के लेबर कमिश्नर को दूसरा लेटर भेजा है। केंद्रीय मंत्रालय ने कर्नाटक को इंफोसिस के मैसूर कैंपस में बड़े पैमाने पर टर्मिशेनशन के मामले में हस्तक्षेप करने को कहा है। केंद्र ने राज्य को 25 फरवरी को भेजे गए पत्र में अनुरोध किया है कि इस मामले में जरूरी कदम उठाए जाएं और इस मामले में क्या-क्या हुआ, इसके बारे में केंद्र के साथ-साथ शिकायत करने वाले को भी जानकारी दें। शिकायत पुणे में स्थिर आईटी एंप्लॉयीज की यूनियन नैसेंट इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंप्लॉयीज सीनेट (NITES) के साथ-साथ टर्मिनेट किए गए इंफोसिस को 100 से अधिक पूर्व ट्रेनीज ने की है।
पहली बार केंद्रीय निर्देश पर क्या किया कर्नाटक ने?
केंद्रीय मंत्रालय ने इससे पहले जब कर्नाटक को इस मामले में पत्र लिखा था तो कर्नाटक के लेबर डिपार्टमेंट के अधिकारी इंफोसिस के बेंगलुरु और मैसूर कैंपस गए थे। वहां उन्होंने ट्रेनीज के छंटनी के रिपोर्ट के बाद जायजा लिया। केंद्रीय लेबर मिनिस्ट्री ने कर्नाटक लेबर कमिश्नर और लेबर सेक्रेटरी को इस मामले की जांच करने को कहा था और विवाद को सुलझाने के लिए तत्काल जरूरी कदम उठाने को कहा था। इसे लेकर जब कर्नाटक सरकार के अधिकारी वहां पहुंचे तो कंपनी के अधिकारियों ने कहा कि हाई क्वालिटी बनाए रखने के लिए खराब परफॉरमेंस करने वालों को निकालना जरूरी था। इंफोसिस ने लगातार तीन प्रयास में एवैल्युएशन टेस्ट में फेल होने पर करीब 400 ट्रेनीज को निकाल दिया जोकि अक्टूबर 2024 में ऑनबोर्ड किए गए ट्रेनीज का करीब आधा था।
दोनों पक्षों का क्या कहना है?
इस मामले को लेकर NITES ने 26 फरवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें निकाले गए कुछ लोगों ने अपना अनुभव भी साझा किया। आईटी एंप्लॉयीज यूनियन के प्रेसिडेंट हरप्रीत सिंह सलूजा ने आरोप लगाया है कि संभव है कि पिछले साल कर्नाटक सरकार के लेबर मिनिस्ट्री ने एंप्लॉयीज के नाम न होने का हवाला देते हुए इंफोसिस को बचाने की कोशिश की लेकिन इस बार मामले को सेंट्रल लेबर मिनिस्ट्री तक भी ले जाया गया है। छंटनी से प्रभावित सभी एंप्लॉयीज ने राज्य और केंद्र, दोनों सरकारों से अपने दिक्कतें साझा की हैं। आईटी एंप्लॉयीज यूनियन के प्रेसिडेंट का कहना है कि इस मामले में अगर सरकार उचित कार्रवाई नहीं करती है तो इंफोसिस के मैसूर कैंपस के बाहर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे।
एक पूर्व ट्रेनी ने आरोप लगाया है कि कंपनी ने सभी ट्रेनी को केंद्र सरकार के नेशनल अप्रेंटिसशिप ट्रेनिंग स्कीम के तहत शामिल किया था जिसमें 12 महीने के लिए ट्रेनी को 9 हजार रुपये मिलते हैं लेकिन कंपनी ने पूरा पैसा नहीं दिया, क्योंकि उन्हें कई दौर की परीक्षा के बाद लगभग चार महीने बाद निकाल दिया गया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रेनीज ने कहा कि इंफोसिस ने यह भी नहीं बताया कि एसेसमेंट में निगेटिव मार्किंग भी है। आरोप ये भी है कि निकाले जाने के बाद उन्हें रिलीविंग लेटर भी नहीं मिला।
इन आरोपों पर कंपनी का कहना है कि यह एंप्लॉयीज की हाई क्वालिटी पर भरोसा रखती है और इसके ट्रेनिंग प्रोग्राम को दुनिया भर में काफी मान्यता है। कंपनी का कहना है कि हर ट्रेनी को ज्वॉइन करते समय परफॉरमेंस एवैल्युएशन के बारे में पता रहता है। इसके अलावा हर ट्रेनी ज्वाइन करते समय एप्रेंटिसशिप रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरता है जिसमें ट्रेनिंग का पूरा खर्च कंपनी ही भरती है। निगेटिव मार्किंग को लेकर कंपनी का कहना है कि यह एवॉल्यूशन पॉलिसी डॉक्यूमेंट में है और ट्रेनी को इंडक्शन के समय भी बताया जाता है। कंपनी का यह भी कहना है कि सभी एलिजिबल ट्रेनो को कंपनी छोड़ने के बाद रिलीविंग लेटर मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें आउटप्लेसमेंट सर्विसेज, सेवरेंस पे और काउंसलिंग भी मिल चुकी है।