Joshimath Landslide Updates: उत्तराखंड (Uttarakhand) के पवित्र शहर जोशीमठ (Joshimath) में जमीन धंसने से 561 घरों में दरारें आ चुकी हैं। "धीरे-धीरे डूबते शहर" को लेकर स्थानीय लोगों में भय बना हुआ है। उत्तराखंड सरकार ने भयभीत निवासियों के विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए 5 जनवरी को क्षेत्र में विकास कार्य पर रोक लगा दी। जोशीमठ की जांच के आधार पर गांधी नगर में 127, मारवाड़ी में 28, लोअर बाजार नृसिंह मंदिर में 24, सिंहधार में 52, मनोहर बाग में 69, अपर बाजार डाडों में 29, सुनील में 27, परसारी में 50, रविग्राम में 153 सहित कुल 561 भवनों में दरारें आई हैं। उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित जोशीमठ 6,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Uttarakhand CM Pushkar Singh Dhami) ने जमीनी स्तर पर स्थिति का जायजा लेने के लिए शनिवार को जोशीमठ का दौरा किया। अधिकारियों ने बताया कि उन्होंने प्रभावित लोगों से भेंट की तथा उन्हें सभी तरह की सहायता का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन अधिकारियों एवं विशेषज्ञों के दल से भी मुलाकात की जो गुरुवार से ही इस शहर में स्थिति की निगरानी कर रहा है। अधिकारियों ने बताया कि धामी ने लोगों को जोशीमठ से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया के बारे में भी उनसे बात की।
बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग स्थल औली जैसे प्रसिद्ध स्थलों का प्रवेश द्वार जोशीमठ आपदा के कगार पर खड़ा है। आदि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ धीरे-धीरे दरक रहा है। इसके घरों, सड़कों तथा खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं तथा कई मकान धंस गए हैं।
1976 में दी थी गई चेतावनी
जोशीमठ में जमीन धंसने की वजह को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं। एक तरफ धार्मिक भविष्यवाणी है तो वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक कारण भी बताए जा रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ पर आए इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी (Joshimath Report) कर दी गई थी। साल 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था।
जमीन धंसने के लिए कौन है जिम्मेदार?
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कलाचंद सेन (Kalachand Sen) ने कहा कि मानवजनित और प्राकृतिक दोनों कारणों से जोशीमठ में जमीन धंस रही है। उन्होंने कहा कि ये कारक हाल में सामने नहीं आए हैं, बल्कि इसमें बहुत लंबा समय लगा है। सेन ने पीटीआई से कहा कि तीन प्रमुख कारक जोशीमठ की नींव को कमजोर कर रहे हैं। यह एक सदी से भी पहले भूकंप से उत्पन्न भूस्खलन के मलबे पर विकसित किया गया था। उन्होंने बताया कि यह भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-पांच’ में आता है और पानी का लगातार बहना चट्टानों को कमजोर बनाता है।
उन्होंने कहा कि एटकिन्स ने सबसे पहले 1886 में ‘हिमालयन गजेटियर’ में भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ की स्थिति के बारे में लिखा था। यहां तक कि मिश्रा समिति ने 1976 में अपनी रिपोर्ट में एक पुराने ‘सबसिडेंस जोन’ पर इसके स्थान के बारे में लिखा था। सेन ने कहा कि हिमालयी नदियों के नीचे जाने और पिछले साल ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ के अलावा भारी बारिश ने भी स्थिति और खराब की होगी।
उन्होंने कहा कि चूंकि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और औली का प्रवेश द्वार है। इसलिए शहर के दबाव का सामना करने में सक्षम होने के बारे में सोचे बिना क्षेत्र में लंबे समय से निर्माण गतिविधियां चल रही हैं। उन्होंने कहा कि इससे भी वहां के घरों में दरारें आई हों।
सेन ने कहा कि होटल और रेस्तरां हर जगह बनाए जा रहे हैं। आबादी का दबाव और पर्यटकों की भीड़ का आकार भी कई गुना बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि कस्बे में कई घरों के सुरक्षित रहने की संभावना नहीं है। इन घरों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जाना चाहिए, क्योंकि जीवन अनमोल है।