Mahakumbh 2025 Mahashivratri Highlights: महाकुंभ 2025 के आखिरी शाही स्नान के लिए करोड़ों श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचे। महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर शाम 4 बजे तक 1 करोड़ से ज्यादा लोग स्नान कर चुके हैं। श्रद्धालुओं के संगम में स्नान करने वालों की संख्या अब तक 65 करोड़ पार कर गई है। ये आंकड़ा अमेरिका की आबादी (करीब 34 करोड़) से दोगुना है। आज से महाकुंभ मेले का समापन हो जाएगा
Mahakumbh 2025 Mahashivratri Highlights: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हर 12 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा यहां 3 साल में कुंभ मेले और 6 साल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। साल 2025 का महाकुंभ प्रयागराज में लगा हुआ है। यह 45 दिन तक चलता है। आज (26 फरवरी 2025) महाशिवरात्रि के मौके पर इसका आखिरी दिन है। इसकी शुरुआत 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के स्नान
Mahakumbh 2025 Mahashivratri Highlights: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हर 12 साल बाद महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा यहां 3 साल में कुंभ मेले और 6 साल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है। साल 2025 का महाकुंभ प्रयागराज में लगा हुआ है। यह 45 दिन तक चलता है। आज (26 फरवरी 2025) महाशिवरात्रि के मौके पर इसका आखिरी दिन है। इसकी शुरुआत 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व से हुई थी। हिंदू धर्म में कुंभ मेले को बहुत ही खास माना जाता है। कुंभ की भव्यता और मान्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, कि अब तक करोड़ों लोग स्नान कर चुके हैं। इसका आयोजन सिर्फ प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में ही होता है।
सनातन धर्म में विश्वास करने वालों के लिए ये सबसे बड़ा उत्सव होता है। जिसमें दुनियाभर के साधु-संत इस मेले में आते हैं। इसके साथ ही लोगों का हुजूम इस पवित्र मेले में शामिल होता है। महाकुंभ का नजारा ऐसा होता है, मानो दुनिया भर के लोग इस मेले में आ गए हों। महाकुंभ के इस पावन महासंगम में हर कोई डुबकी लगाने की इच्छा रखता है। इसलिए इसे महासंगम भी कहा जाता है।
दरअसल, महाकुंभ की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार, जब एक बार राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ। तब इस दौरान मंथन से निकले सभी रत्नों को आपस में बांटने का फैसला हुआ। सभी रत्न को राक्षसों और देवताओं ने आपसी सहमति से बांट लिए, लेकिन इस दौरान निकले अमृत के लिए दोनों पक्षों के बीच युद्ध छिड़ गया।
ऐसे में असुरों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत का पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया। असुरों ने जब देखा कि अमृत गरुड़ के पास है, तो वह इसे छीनने की कोशिश करने लगे। इस छीना-झपटी में अमृत की कुछ बूंदें धरती की चार जगहों पर यानी प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी। जहां-जहां यह बूंदे गिरी थी आज वहीं पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।