बिहार का गया जिला, जिसे लोग बड़े आदर से "गयाजी" कहते हैं। गया क्षेत्र को धार्मिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है। गया जी के हर कोने पर मंदिर हैं। उनमें स्थापित मूर्तियां प्राचीन काल की बताई जा रही हैं। मान्यता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण गया जी आए थे। यहां अपने पूर्वजों का पिंडदान किया था। तभी से यहां पिंडदान करने की महत्ता शुरू हो गई थी। गयाजी में पिंडदान करने से पूर्वजों की मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां देश-विदेश से भी अब लोग अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना के लिए पिंडदान करने आते हैं।
दरअसल, पितृ पक्ष में पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। ऐसा करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। वो खुश होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि पितृ पक्ष पितरों के ऋण चुकाने का समय होता है। पितृ पक्ष के दौरान पितरों की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। पूर्वजों की कृपा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
गया में पिंडदान क्यों किया जाता है?
पौराणिक कथा के मुताबिक, गयासुर नाम का एक राक्षस था। उसने ब्रह्मा जी की तपस्या करके एक वरदान हासिल कर लिया है। इस वरदान के तहत उसे देखने मात्र से लोग पवित्र हो जाते थे। उनको स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती थी। उसकी इस शक्ति पृथ्वी का संतुलन बिगड़ गया था। जिसके बाद देवताओं ने परेशान होकर विष्णु जी से मदद मांगी। तब श्री हरि ने गयासुर से कहा कि, वो अपने शरीर को यज्ञ के लिए समर्पित कर दें। गयासुर ने विष्णु भगवान के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद विष्णु भगवान ने गयासुर के शरीर पर यज्ञ किया।
यज्ञ खत्म होने के बाद विष्णु जी ने गयासुर को मोक्ष का वचन दिया। उसे यह वरदान भी दिया कि उसकी देह जहां तक फैलेगी। वह जगह पूरी तरह से पवित्र हो जाएगी। ऐसे में जो लोग अपने पूर्वजों का उस जगह पर पिंडदान करेंगे। उनके पूर्वज जन्म-मरण के बंधन से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएंगे। कहा जाता है कि तभी से इस जगह का नाम गया पड़ गया है।
गरुड़ पुराण के मुताबिक, गयाजी में होने वाले पिंडदान की शुरुआत भगवान राम ने की थी। बताया जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने यहां आकर पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था। साथ ही महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री हरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं। इसीलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। बता दें कि, गया के इसी महत्व के चलते यहां लाखों लोग हर साल अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं।
गयाजी में पिंडदान से 108 कुल का होता है उद्धार
पितृपक्ष में देश-विदेश से तीर्थयात्री पिंडदान और तर्पण करने के लिए गयाजी आते हैं। मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से उन्हें स्वर्ग में जगह मिलती है।
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