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Rameswaram Temple: 12 साल बाद रामेश्वरम के विशाल मंडप में लगेगी हाथी की मूर्ति, 43 लाख होंगे खर्च, निर्माण काम शुरू

Memorial Mandapam: रामेश्वरम रामनाथस्वामी मंदिर में साल 2012 एक हाथी को दफनाया गया था। अब 12 साल बाद मंदिर परिसर में एक मणि मंडपम बनाया जा रहा है। इसकी लागत 43 लाख रुपये है। इस मंडपम के अंदर हाथी की मूर्ति स्थापित की जाएगी। यह काम इसी जून के आखिरी तक पूरा कर लिया जाएगा

अपडेटेड Nov 09, 2024 पर 2:44 PM
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Memorial Mandapam: रामेश्वर मंदिर निर्माण में लगाए हुए पत्थरों को श्रीलंका से नावों के जरिए लाया गया था।

भारत में हजारों साल पुराने कई मंदिर बने हुए हैं। जहां आज भी बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने जाते हैं। ऐसे ही तमिलनाडु के रामनाथपुरम में रामेश्वरम मंदिर है। यह रामेश्वरम मंदिर एक हिंदू मंदिर है। जिसे भगवान शिव के सम्मान में बनाया गया है। इसे एक पवित्र स्थल और चार धामों में से एक माना गया है। इस मंदिर को स्थानीय भाषा में रामनाथ स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इन दिनों यहां भवानी हाथी के लिए मणि मंडपम बनाया जा रहा है। 12 साल बाद यह काम शुरू हुआ है। इसके लिए कई सालों तक सड़क पर स्थानीय लोगों ने जुलूस भी निकाला था।

रामनाथपुरम जिले के रामेश्वरम में स्थित विश्व प्रसिद्ध रामनाथस्वामी मंदिर में  निंगा रहते थे। वो इस मंदिर में करीब 60 साल तक रहे। उन्होंने स्वामी-अम्बल जुलूस का नेतृत्व भी किया था। कहा जाता है कि भगवान राम ने ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए यहां शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा की थी। ऐसे में इस ज्योतिर्लिंग की विधि-विधान से पूजा करने से ब्रम्ह हत्या जैसे पापों से मुक्ति मिलती है।

विशाल मंडपम में हाथी की मूर्ति होगी स्थापित


साल 2012 में कोयंबटूर जिले के थेकमबत्ती में पुनर्वास शिविर में एक हाथी नदी में फंस गया था। उसके बाद उसकी दर्दनाक मौत हो गई थी। फिर हाथी के शव को वहां से रामेश्वरम लाया गया। मंदिर प्रशासन ने पार्किंग स्थल पर उसको दफना दिया। फिर हिंदू धर्मार्थ विभाग की ओर से मणि मंडपम को इस बात की जानकारी दी गई। इसके बाद अब 12 साल बाद रामनाथ स्वामी की तरह काले पत्थरों से एक बड़ा मंडपम बनाया जा रहा है। इसकी लागत 43 लाख रुपये बताई जा रही है। मणि मंडपम के भीतर हाथी भवानी की एक मूर्ति स्थापित की जाएगी। मणि मंडपम बनाने वालों का कहना है कि यह काम इसी साल जून के आखिरी तक पूरा कर लिया जाएगा।

जानिए रामेश्वरम मंदिर का इतिहास

मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका विजय की कामना से लंका जाने से पहले भगवान शिव की पूजा करना चाहते थे। तब उन्होंने इस जगह पर महादेव के शिवलिंग की स्थापना की। फिर उनकी पूजा अर्चना की थी। भगवान राम के नाम से ही इस जगह का नाम रामेश्वरम द्वीप और मंदिर का नाम रामेश्वरम पड़ा। पुराणों के अनुसार, रावण एक ब्राह्मण था। ब्राह्मण को मारने के दोष को खत्म करने के लिए भगवान राम भगवान शिव की पूजा करना चाहते थे। लेकिन तब इस द्वीप पर कोई मंदिर नहीं था। इसलिए हनुमान जी को कैलाश पर्वत से भगवान शिव के शिवलिंग लाने के लिए कहा गया। जब हनुमान जी समय पर शिवलिंग लेकर नहीं पहुंच पाए, तब माता सीता ने समुद्र की रेत को मुट्ठी में उठाकर शिवलिंग बना दिया था। फिर इसी शिवलिंग की भगवान राम ने पूजा की थी। हनुमान जी के द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी यहीं पर स्थापित कर दिया गया था।

रामेश्वरम मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

रामेश्वरम मंदिर करीब 1000 फुट लंबा और 650 फुट चौड़ा है। इस मंदिर में 40 फुट ऊंचे दो पत्थर इतनी बराबरी के साथ लगाए गए हैं कि इनको देखकर आश्चर्य होना स्वभाविक है। मान्यताओं के अनुसार, रामेश्वर मंदिर निर्माण में लगाए हुए पत्थरों को श्रीलंका से नावों के जरिए लाया गया था।

रामेश्वरम में प्रचलित किवदंतियों की मानें तो इस मंदिर के अंदर सभी कुएं भगवान राम ने अपने बाणों से बनाए थे। ऐसा माना जाता है कि इनमें कई तीर्थ स्थलों का जल मिलाया गया था।

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