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रांची के इस ढाबे में सिर्फ महिलाएं करती हैं काम, बन गईं आत्मनिर्भर, होती है मोटी कमाई

खूंटी-चाईबासा रोड पर स्थित यह ढाबा महिलाओं के सशक्तिकरण की मिसाल है, जहां हर जिम्मेदारी महिलाओं के हाथों में है। इस ढाबे में रोजाना 2000 प्लेट बेचता है, और महिलाओं को 12,000-20,000 रुपये तक सैलरी मिलती है। यहां काम करने से उनकी जिंदगी बदली है, आत्मनिर्भरता और सुरक्षा का माहौल उन्हें सशक्त बना रहा है

अपडेटेड Dec 16, 2024 पर 2:52 PM
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इस ढाबे में सिर्फ महिलाएं करती हैं काम

खूंटी-चाईबासा रोड पर स्थित एक अनोखा ढाबा महिलाओं के सशक्तिकरण की मिसाल बन गया है। इस ढाबे में हर जिम्मेदारी, चाहे वह खाना बनाना हो, परोसना हो या सफाई करना, सबकुछ महिलाएं संभालती हैं। यहां पुरुषों को नौकरी नहीं दी जाती। ढाबे के मालिक कपिल का कहना है कि उन्होंने यह पहल महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की। मैनेजर शालिनी से लेकर बावर्ची मीना तक, सभी महिलाएं यहां आत्मविश्वास के साथ काम करती हैं। यहां काम करने वाली महिलाओं को 12,000 से 20,000 रुपये तक की सैलरी मिलती है।

रोजाना लगभग 2,000 प्लेट भोजन परोसने वाले इस ढाबे में मटन-चावल से लेकर समोसा तक हर व्यंजन महिलाओं के हाथों की मेहनत से तैयार होता है। यह ढाबा स्वाद और सशक्तिकरण का अनोखा संगम बनकर उभरा है।

महिलाओं के हाथों में पूरी जिम्मेदारी


इस ढाबे के मालिक कपिल ने एक अनोखी सोच के साथ इसे शुरू किया। उनका उद्देश्य था कि महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जाए। इस ढाबे में मैनेजर शालिनी से लेकर बावर्ची मीना और साफ-सफाई का काम करने वाली प्रियंका तक, सभी महिलाएं हैं। पुरुषों को यहां काम पर नहीं रखा जाता। कपिल का कहना है, ‘महि लाओं के हाथ का स्वाद दुनिया में सबसे अच्छा होता है। इस पहल से न केवल उन्हें रोजगार मिला है, बल्कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो रही हैं।"

12 से  20 हजार तक वेतन

यह ढाबा रोजाना लगभग 2000 प्लेट भोजन बेचता है। यहां मटन-चावल, चिकन-चावल, पनीर-चावल, छोले-धुस्का, समोसा और ब्रेड चाप जैसे व्यंजन मिलते हैं। महिलाओं की मेहनत और स्वादिष्ट भोजन के कारण यह ढाबा ग्राहकों के बीच बेहद लोकप्रिय हो चुका है। यहां काम करने वाली महिलाओं को 12,000 रुपये से लेकर 20,000 रुपये तक की सैलरी दी जाती है।

महिलाओं की बदली जिंदगी

यह ढाबा यहां काम करने वाली महिलाओं की जिंदगी में बड़ा बदलाव ला रहा है। बावर्ची मीना देवी बताती हैं, "जब मैंने यहां काम शुरू किया था, तब घर की आर्थिक स्थिति खराब थी। लेकिन अब मैं अपने बच्चों की फीस भरने और घर के खर्चों को उठाने में सक्षम हूं।" प्रियंका, जो बर्तन धोने का काम करती हैं, कहती हैं कि यहां काम करके न केवल उनकी आमदनी बढ़ी है, बल्कि उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है।

सुरक्षा और आत्मनिर्भरता का माहौल

मैनेजर शालिनी के मुताबिक, "महिलाओं के बीच काम करना सुरक्षित महसूस कराता है। यहां हमें डर नहीं लगता। हम रात 11 बजे तक भी काम करते हैं।" यह ढाबा महिलाओं के सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण बन गया है।

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