मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में हाल ही में एक अनोखी शादी हुई, जो किसी फिल्मी सीन से कम नहीं थी। इस शादी में 12 साल के एक बच्चे को घोड़ी की जगह बकरे पर बैठाकर बारात निकाली गई।अब आप सोच रहे होंगे, ये क्या हो रहा है? बारात में बैंड-बाजे की धुन पर सभी ने मस्ती से डांस किया। जमकर आतिशबाजी भी हुई। ये सब देखकर ऐसा लगता था जैसे शादी नहीं, बल्कि किसी बड़े त्योहार की तैयारी हो रही हो। यह शादी असल में नहीं थी, बल्कि एक पुरानी परंपरा का हिस्सा थी। टीकमगढ़ के इस इलाके में यह परंपरा करीब 400 साल पुरानी है, जिसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
इसमें दूल्हे का कर्ण छेदन संस्कार होता है और उसे बकरे पर बैठाकर बारात निकाली जाती है। इसके बाद दूल्हे को उसकी भाभी से शादी कराई जाती है। तो इस मजेदार परंपरा के तहत शादी का यह नजारा वाकई हैरान करने वाला था, लेकिन यह अब तक कई पीढ़ी दर पीढ़ी से मनाई जा रही परंपरा का हिस्सा है।
कर्ण छेदन के साथ शादी की रस्में
टीकमगढ़ के लोहिया समाज में यह परंपरा विशेष रूप से कर्ण छेदन के मौके पर निभाई जाती है। कर्ण छेदन वह संस्कार है, जो बच्चों के लिए किया जाता है, जब वे 18 साल से कम होते हैं। यह संस्कार शादी के जैसे धूमधाम से मनाया जाता है। शुक्रवार को शहर के प्रकाश अग्रवाल ने अपने पोते राघव अग्रवाल का कर्ण छेदन संस्कार बड़े धूमधाम से कराया। इस मौके पर राघव को बकरे पर बैठाकर समाज के लोगों और रिश्तेदारों के साथ बारात निकाली गई।
प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि बकरे पर बैठा दूल्हा 7 जगहों से होकर गुजरता है। इसमें उनके घर, मंदिर का दरवाजा, कुल देवता का दरवाजा और मोहल्ले के घर शामिल होते हैं। इस दौरान रिश्तेदार और समाज के लोग बारात में शामिल होते हैं। बकरे के आगे बाराती नाचते-गाते हुए चलते हैं, और पूरे गांव में खुशी का माहौल बन जाता है। इस परंपरा के बाद, विधिपूर्वक शादी की रस्में पूरी की जाती हैं।
यह परंपरा परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। प्रकाश अग्रवाल बताते हैं कि यह परंपरा उनके दादा-परदादा से चली आ रही है। उनके बड़े बेटे के कर्ण छेदन संस्कार में भी इसी तरह बकरे पर बारात निकाली गई थी। यह परंपरा अब भी उनके परिवार में पूरी श्रद्धा और जोश के साथ निभाई जाती है।लोहिया (अग्रवाल) समाज के कई परिवारों ने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है, और यह समाज की पहचान बन चुकी है।