इन दिनों शादियों का सीजन जोर-शोर से चल रहा है। जिसमें नए जोड़े अपने जीवन के खुशनुमा पलों का जश्न मना रहे हैं। लेकिन इस बार बिहार के मधुबनी की एक शादी ने अपनी अनोखी रस्म के कारण सबका ध्यान आकर्षित किया। सुजीत चौधरी ने अपनी शादी के अवसर पर न केवल सात फेरों का वचन लिया, बल्कि सात औषधीय पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी लिया। यह पहल एक नई परंपरा की शुरुआत है। जिसे अब इस क्षेत्र में चर्चा का विषय बना दिया है। सुजीत का मानना था कि पर्यावरण का संरक्षण हमारी पीढ़ियों के लिए बेहद जरूरी है।
उन्होंने बताया कि औषधीय पौधे न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं, बल्कि इनका उपयोग दवाइयों में भी होता है, जिससे कई लोगों की जान भी बच सकती है। यह कदम सिर्फ शादी को खास नहीं बनाता, बल्कि एक सकारात्मक संदेश भी देता है।
पौधा लगाकर लिया शादी का फेरा
सुजीत चौधरी ने अपनी शादी के दिन एक सराहनीय कदम उठाया। उन्होंने सात औषधीय पौधे लगाए और उनके संरक्षण का वचन लिया। सुजीत का मानना था कि जब तक हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तब तक हमारी पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रहेगा। उन्होंने बताया कि शादी के दिन सात पौधे लगाना, सात फेरों का प्रतीक है। सनातन परंपरा में शादी को सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, और इस बंधन को फलदायक बनाने के लिए सात पौधे लगाकर, उन्होंने इस नए रिश्ते की शुरुआत की।
सुजीत ने इस पहल के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण बताया ‘औषधीय पौधों का उपयोग दवाइयों में किया जाता है, जो कई लोगों की जिंदगियां बचा सकता है।‘ उनके अनुसार, इन पौधों की मदद से न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होगा। उनकी सोच को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने यह नई परंपरा भी शुरू की है कि घर में होने वाली प्रत्येक शादी से पहले पौधा लगाया जाएगा। इस तरह से न केवल वातावरण को शुद्ध किया जा सकेगा, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी संदेश रहेगा।
शादी में पौधा लगाने की नई परंपरा
सुजीत ने बताया कि आजकल पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है और नए पौधे नहीं लगाए जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में, जब भी घर में कोई शुभ कार्य हो, जैसे शादी, तो हम पौधा लगाकर एक सकारात्मक कदम उठा सकते हैं। इससे न केवल उस दिन के आयोजन का महत्त्व बढ़ेगा बल्कि यह संदेश भी जाएगा कि हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। सुजीत की इस पहल से यह साबित होता है कि पारंपरिक शादियों को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जोड़कर एक नई दिशा दी जा सकती है। यदि इस तरह की परंपराओं को अपनाया जाए, तो यह सिर्फ व्यक्तिगत जीवन को ही नहीं, बल्कि समाज और पर्यावरण को भी बेहतर बनाया जा सकता है।