लखनऊ में अटल की विरासत बरकरार रखेंगे राजनाथ सिंह? UP के पावर सेंटर में कैसी है सपा, बसपा की हालत, क्या कहता है वोटर

UP Lok Sabha Chunav 2024: यह अफवाहें लगातार उड़ती रही कि समाजवादी पार्टी यहां प्रत्याशी बदलेगी, लेकिन आखिर में रविदास मल्होत्रा ही चुनाव मैदान में हैं। उनका कोई ऐसा मजबूत जनाधार भी नहीं है कि यह कहा जा सके कि वो राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज को टक्कर दे पाएंगे, लेकिन रविदास मैदान में उतर गए हैं और वैसे भी वो चुनाव लड़ने के पुराने खिलाड़ी हैं

अपडेटेड May 12, 2024 पर 10:22 PM
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UP Lok Sabha Election 2024: लखनऊ में अटल की विरासत बरकरार रखेंगे राजनाथ सिंह?

लखनऊ लोकसभा सीट, कभी ये पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का मजबूत किला हुआ करती थी और अब यह राजनाथ सिंह का मजबूत गढ़ बन चुकी है। लखनऊ से अटल जी को हराने के लिए विपक्ष ने तरह-तरह के प्रयोग किए, लेकिन कोई प्रयोग सफल नहीं हुआ। अटल जी का लखनऊ का एक दौरा ही विपक्षियों के उम्मीदों पर पानी फेर देता था और अब राजनाथ सिंह को टक्कर देने के लिए तमाम प्रयोग हो रहे हैं। हालांकि, लगता नहीं यहां मजबूत मुकाबला होगा। समाजवादी पार्टी ने यहां पर लखनऊ मध्य के विधायक पूर्व मंत्री रविदास मेहरोत्रा को टिकट दिया है। अब रविदास मेहरोत्रा को टिकट क्यों दे दिया, समाजवादी पार्टी में ही यह सवाल उठ रहे हैं।

यह अफवाहें लगातार उड़ती रही कि समाजवादी पार्टी यहां प्रत्याशी बदलेगी, लेकिन आखिर में रविदास मल्होत्रा ही चुनाव मैदान में हैं। उनका कोई ऐसा मजबूत जनाधार भी नहीं है कि यह कहा जा सके कि वो राजनाथ सिंह जैसे दिग्गज को टक्कर दे पाएंगे, लेकिन रविदास मैदान में उतर गए हैं और वैसे भी वो चुनाव लड़ने के पुराने खिलाड़ी हैं। रविदास मल्होत्रा को समाजवादी पार्टी के समर्थकों और मुस्लिम वोटों का भरोसा है।

सपा-बसपा से कौन हैं उम्मीदवार?


2017 के विधानसभा चुनाव में रविदास मेहरोत्रा वर्तमान सरकार के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से चुनाव हार गए थे, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में वो जीत गए। लेकिन समाजवादी पार्टी के एक समर्थक मोहम्मद शाहिद कहते हैं कि लखनऊ में बहुत कमजोर मुकाबला दिख नहीं रहा है। वैसे तो शाहिद समाजवादी पार्टी को ही वोट देंगे, लेकिन यहां सपा चुनाव अच्छे ढंग से लड़ पाएगी लगता नहीं है। केवल मुस्लिम वोटों के बल पर चुनाव नहीं जीता जा सकता।

जबकि कैसरबाग के रहने वाले रितेश शुक्ल कहते हैं कि लखनऊ राजनाथ सिंह के साथ खड़ा है और यहां पर वो भारी अंतर से जीतेंगे। इसका कारण वो यह बताते हैं कि लखनऊ शहर में भाजपा समर्थकों की भरमार है और सभी राजनाथ सिंह से जुड़े हुए हैं। वो सबसे मिलते-जुलते हैं और समस्याओं को हल करते हैं। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने यहां पर सरवन मलिक को प्रत्याशी बनाया है।

सरवर मलिक का मुख्य भरोसा मुस्लिम वोट बैंक पर है और वही वोट उनसे दूर लग रहा है। उनका दावा है की उनके सामने न बीजेपी न सपा, जीत रही है सिर्फ बसपा। फिलहाल मैदान में ऐसा दिखाई नहीं देता।

लखनऊ में हुआ काफी विकास

मुस्लिम मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है। लखनऊ में जितना विकास कार्य हुआ है, उतना काम दूसरी जगहों पर शायद ही हुआ हो। लखनऊ का स्वरूप बदल चुका है, यहां समस्याओं का निस्तारण भी हुआ। दर्जनों फ्लाई ओवर बने हैं। लखनऊ को जाम से मुक्त करने के लिए 104 किलोमीटर की ऐसी रिंग रोड बनी कि दूसरे जगहों पर जाने वाली गाड़ियों को लखनऊ शहर एंट्री करने जरूरत ही नहीं है। बड़े-बड़े वाहन शहर के बाहर से ही निकल जाते हैं।

इससे ट्रैफिक जाम की समस्या का कुछ निस्तारण हुआ। उससे भी बड़ी बात यह है कि राजनाथ सिंह लगातार लखनऊ से जुड़े रहे और दिल्ली में भी लखनऊ वालों के लिए उनका दरवाजा खुला रहा।

डाली गंज के रामेंद्र वर्मा कहते हैं कि विपक्षी नेताओं के पास अपने विकास कार्य गिनवाने के लिए कुछ भी नहीं है और न विकास करवाया गया, लेकिन सपा के समर्थक रामस्वरूप दावा करते हैं कि अखिलेश के शासन में विकास कार्य हुआ और यह रविदास के खाते में ही जाएगा।

नवाबों का शहर लखनऊ

नवाबों को यह शहर इतना प्रिय था कि वो कहा करते थे कि "लखनऊ हम पर फिदा है, हम फिदाए लखनऊ, आसमां की क्या है ताकत, जो छुड़ाएं लखनऊ।" लखनऊ का पूरा इतिहास नवाबों के शानों शौकत से भरा हुआ है, लेकिन यह शहर अटल जी को भी काफी प्रिय लगता था।

राजनाथ सिंह की राजनीति भी अटल जैसी ही

ये दिलचस्प ही है की राजनाथ सिंह की राजनीति भी अटल जैसी ही है, जहां विवादों को ज्यादा जगह नहीं है। साल 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेई इस सीट से लड़ने आए थे, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि ये सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन जाएगी।

अटल जी 1991, 1996, 1998 ,1999 और 2004 में लगातार लखनऊ से ही सांसद बने। इसके बाद स्वास्थ्य के चलते उन्होंने लखनऊ सीट छोड़ दी और तब उनके नजदीकी लाल जी टंडन चुनाव मैदान में उतरे और वो भी सफल हुए ।

2014 में लाल जी टंडन की जगह राजनाथ सिंह ने अटल की विरासत को संभाला और वह 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) जीत चुके हैं और हर बार उनका जीत का अंतर बढ़ता गया। अब लखनऊ में नारा लग रहा है कि इस बार जीत का अंतर 5 लाख के पार। क्या राजनाथ सिंह वास्तव में 5 लाख वोटों से अपने प्रतिद्वंदी को मात दे पाएंगे।

राजनाथ सिंह के जीत का अंतर बढ़ेगा

बादशाह नगर के समर सिंह कहते हैं कि राजनाथ सिंह के जीत का अंतर बढ़ेगा। लखनऊ में राजनाथ सिंह जी ने जो विकास किया है, उसका प्रतिफल उन्हें मिलना ही है । वास्तव में हर महीने 15 दिन या एक माह में राजनाथ सिंह लखनऊ का दौरा करते रहते है और जब भी आए तो लोगों के लिए उनके घर खुल गया।

उससे भी बड़ी बात यह है कि उनके बेटे नीरज सिंह लगातार लखनऊ का भ्रमण करते हैं और जन समस्याओं को हल करते रहते हैं, इसलिए उनकी भी लोकप्रियता बहुत है। राजाजीपुरम के शिव प्रसाद कहते हैं की राजनीतिज्ञों को राजनाथ सिंह के एक बात जरूर सीखनी चाहिए की कैसे क्षेत्र से जुड़ा रहा जा सकता है और आप कितने ही बड़े नेता क्यों न हो जाएं, लेकिन क्षेत्र को नहीं भूलना चाहिए।

हैदरगंज के जावेद कहते हैं कि राजनाथ सिंह बहुत अच्छे व्यक्ति हैं, मिलनसार हैं, विकास कराया है। लेकिन वो उन्हें वोट नहीं देंगे, क्यों? जावेद का कहना है कि उनकी पार्टी से मेरा विरोध है। जावेद कुछ भी कहे, लेकिन मुसलमान के बीच भी राजनाथ सिंह की लोकप्रियता है। कुल मिलाकर लखनऊ का चुनाव समाजवादी पार्टी और और BJP के बीच हो रहा है, लेकिन नीरज सिंह कहते हैं कि उनका चुनाव बसपा के सरवन मलिक से है।

रविदास मल्होत्रा लगातार चुनावी दौरा कर रहे हैं। यह अलग बात है कि वह अस्वस्थ हैं। रविदास मल्होत्रा पहले भारतीय जनता पार्टी में ही थे, लेकिन फिर पार्टी से बगावत कर सपा में चले गए थे। फिलहाल चुनाव देखकर साफ लग रहा है कि यहां पर राजनाथ सिंह के लिए रास्ता साफ है, लेकिन सारी लड़ाई वोटो के अंतर को लेकर हो रही है।

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Brijesh Shukla

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