Loksabha Elections 2024: NDA का कुनबा बढ़ाने पर BJP के फोकस की असल वजह घबराहट है या 400 से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश?

Loksabha Elections 2024: 2019 के लोकसभा चुनावों में सहयोगी दलों को लेकर बीजेपी का रुख इतना लचीला नहीं था। इसके बावजूद बीजेपी ने 300 से ज्यादा सीटें जीती थीं। इस बार बीजेपी देश के इलाके में नए दलों को साथ लाने की कोशिश कर रही है, जबकि पुराने सहयोगियों को फिर से एनडीए का हिस्सा बना रही है

अपडेटेड Mar 25, 2024 पर 2:03 PM
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Loksabha Elections 2024: लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सहयोगी दलों को अपने साथ जोड़ने की भाजपा की कोशिश ने विपक्षी दलों को हैरान कर दिया है।

Loksabha Elections 2024: BJP का फोकस इस बार एनडीए के विस्तार पर 2019 के मुकाबले काफी ज्यादा है। उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम हर राज्य में बीजेपी नए दलों से समझौते कर रही है और पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाने की कोशिश कर रही है। बिहार में जदयू और आंध्र प्रदेश में टीडपी इसके उदाहरण हैं। पंजाब में शिरोमणी अकाली दल के साथ बातचीत चल रही है। बिहार और उत्तर प्रदेश में RLD, SBSP, HAM और उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मंच बीजेपी के साथ आ चुके हैं।

महाराष्ट्र में राज ठाकरे के MNS से समझौते के लिए बातचीत चल रही है। सहयोगी दलों को अपने साथ जोड़ने की भाजपा की इस कोशिश ने विपक्षी दलों को हैरान कर दिया है। सवाल यह है कि ज्यादातर ओपिनियन पोल में पहले से ज्यादा सीटें जीतने जा रही BJP आखिर नए दलों को साथ लाने पर इतना जोर क्यों दे रही है?

कुछ एनालिस्ट्स का कहना है कि यह भाजपा में हताशा का संकेत हो सकता है। इसकी वजह यह है कि मीडिया और टीवी चैनलों पर जो दिख रहा है, सच्चाई उससे अलग है। कुछ एनालिस्ट्स का कहना है कि बीजेपी 2004 के लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखकर पूरी सावधानी बरतना चाहती है।


एनडीए का कुनबा बढ़ाने की बीजेपी की कोशिश के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं:

1. जनता के बीच स्वीकार्यता का संकेत देना

बीजेपी एनडीए का कुनबा बढ़ाकर यह संकेत देना चाहती है कि देश की ज्यादातर राजनीतिक पार्टियां उसकी विचारधारा से सहमत हैं। इससे दशकों से बीजेपी पर लग रहे सांप्रदायिक पार्टी के आरोप बेमानी हो जाएंगे। चुनाव से पहले भाजपा विपक्ष को अपने खिलाफ किसी तरह का हथियार नहीं देना चाहती है।

2. देशभर में मौजूदगी का दावा

उतर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम के राजनीतिक दलों के साथ हाथ मिलाकर बीजेपी यह संकेत देना चाहती है कि उसकी मौजूदगी किसी एक या दो इलाकों में नहीं बल्कि पूरे देश में है। इससे वह विपक्ष के उस आरोप की हवा निकालना चाहती है कि भाजपा सिर्फ हिंदी भाषी इलाकों में मजबूत है।

3. देश की नबंर वन पार्टी

केंद्र में 10 साल के शासन के बाद बीजेपी यह साफ कर देना चाहती है कि वह अब देश की नंबर वन पार्टी है। वह लोगों को बताना चाहती है कि उसने नंबर वन पार्टी के पायदान से कांग्रेस को बेदखल कर दिया है। विपक्ष ने कई बार बीजेपी पर सिर्फ 37 फीसदी लोगों का वोट मिलने का आरोप लगाया है। उसका कहना है कि देश के 63 फीसदी मतदाता बीजेपी को पंसद नहीं करते।

4. बीजेपी की जीत का माहौल बनाना

सीएसडीएस नेशनल इलेक्शन स्टडीज के मुताबिक, करीब 25-30 फीसदी मतदाता वोटिंग के दिन या इसके 2-3 दिन पहले यह तय करते हैं कि उन्हें किस पार्टी के पक्ष में मतदान करना है। ऐसे में बीजेपी यह माहौल बनाकर ऐसे मतदाताओं का वोट हासिल करना चाहती है कि वह चुनाव जीतने जा रही है।

5. मिशन 400 पर फोकस

बीजेपी ने 400 से ज्यादा सीटें जीतने का टारगेट तय किया है। इससे पहले 404 सीटें जीतने का रिकॉर्ड 1984 में राजीव गांधी (कांग्रेस) के नाम है। इसलिए वह एनडीए का कुनबा ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की कोशिश कर रही है। आंध्रप्रदेश में टीडीपी और जनसेना जैसे दलों से हाथ मिलाने से अगर एनडीए की कुछ सीटें बढ़ती हैं तो यह बीजेपी के लिए बोनस जैसा होगा।

6. राज्यसभा में खुद को ताकतवर बनाना

बीजेपी की लोकसभा में स्थिति मजबूत है। लेकिन राज्य सभा में इसे छोटे-छोटे दलों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है। एनडीए का कुनबा बढ़ने से राज्यसभा में बीजेपी की ताकत बढ़ेगी। इससे विधेयक पारित कराने के लिए उसे छोटे-छोट दलों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।

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