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Loksabha Results: महाराष्ट्र में क्यों खराब रही NDA की परफॉर्मेंस?

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले महाराष्ट्र में महायुति यानी एनडीए गठबंधन ने 45 से ज्यादा सीट जीतने का टारगेट तय किया था। हालांकि, चुनाव के नतीजे एनडीए गठबंधन के लिए बड़ा झटका हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। एनडीए गठबंधन अपने टारगेट से महज आधी सीटें जीतने में सफल रह सकता है

अपडेटेड Jun 04, 2024 पर 6:19 PM
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महायुति गठबंधन ने ऐसे विपक्षी नेताओं को भी अपने यहां शामिल किया, जिन पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के मामले चल रहे थे।

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से पहले महाराष्ट्र में महायुति यानी एनडीए गठबंधन ने 45 से ज्यादा सीट जीतने का टारगेट तय किया था। हालांकि, चुनाव के नतीजे एनडीए गठबंधन के लिए बड़ा झटका हैं। महाराष्ट्र में लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। एनडीए गठबंधन अपने टारगेट से महज आधी सीटें जीतने में सफल रह सकता है। हम आपको यहां एनडीए के निराशाजनक प्रदर्शन की वजहों के बारे में बता रहे हैं:

उद्धव ठाकरे और शरद पवार के लिए सहानुभूति

साल 2022 में शिव सेना और 2023 में एनसीपी को तोड़ने की साजिश को मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। हालांकि, चुनाव आयोग ने बागी गुटों को ही मूल पार्टी के तौर पर मान्यता दी और उन्हें आधिकारिक चुनाव चिन्ह आवंटित किया, लेकिन वोटरों ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे को पीड़ित के तौर पर देखा।

उम्मीदवारों के ऐलान में देरी 


एनडीए में सीटों को लेकर विवाद की वजह से उम्मीदवारों के ऐलान में देरी हुई। नासिक, साउथ मुंबई, उत्तर-पश्चिम मुंबई और थाणे जैसी सीटों पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नामांकन दायर करने की आखिरी तारीख से ठीक पहले हुआ था। इससे प्रतिद्वंद्वियों को कैंपेन के लिए ज्यादा समय मिला।

'दागी' नेताओं को शामिल करने से हुआ नुकसान

महायुति गठबंधन ने ऐसे विपक्षी नेताओं को भी यहां शामिल किया, जिन पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के मामले चल रहे थे। किसी को भ्रष्टाचारी कहने के बाद उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ना मतदाताओं को रास नहीं आया। अशोक चव्हाण, अजीत पवार, भावना गवली , यामिनी जाधव और अन्य नेताओं को बीजेपी ने पहले भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर टारगेट किया था और फिर इन्हें पार्टी में शामिल कर लिया।

मराठा आंदोलन

मराठा समुदाय द्वारा शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर किए गए आंदोलन से भी महायुति को नुकसान पहुंचा। आंदोलन के दौरान मराठवाड़ा क्षेत्र में ज्यादा हिंसा की घटनाएं हुईं। छगन भुजबल और पंकजा मुंडे जैसे ओबीसी नेताओं के बयानों से गठबंधन को नुकसान पहुंचा। कई सीटों पर चुनावी मुकाबले को मराठा बनाम ओबीसी के तौर पर देखा जा रहा था।

किसानों की मुश्किल और सूखा

किसानों की खराब हालत के कारण उत्तरी महाराष्ट्र, पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा में गठबंधन को झटका लगा। उत्तरी महाराष्ट्र में प्याज की खेती करने वाले किसान एक्सपोर्ट में पाबंदियों को लेकर नाराज थे, जबकि मराठवाड़ा के किसान सूखा और बेमौसम की बारिश के कारण हुए नुकसान के लिए पर्याप्त मुआवजा मांग रहे थे। इसक अलावा, राज्य में एनडीए के लिए 2014 या 2019 जैसी कोई लहर भी नहीं थी।

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