UP Assembly Elections 2027: समाजवादी पार्टी (SP) ने वह फार्मूला निकाल लिया है जिसके कारण उन्हें विजय हासिल हो सकती है। उसने उन तमाम जाति समीकरणों को मजबूत किया है जिससे जीत हासिल हो सकती है। यानी चुनाव में यादव और मस्लिम प्रत्याशियों को ज्यादा न उतार कर अन्य जातियों को टिकट देकर सामाजिक समीकरणों को मजबूत बनाने की कोशिश होगी। यही रणनीति वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव में भी सपा अपनाएगी। लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता अलग कहानी कहते हैं। उनके अनुसार यह सभी कारण बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं कर सकते यदि अन्य कारण ना हो।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार के कुछ प्रमुख कारण थे। सबसे प्रमुख कारण बिजली विभाग का गांव-गांव लोगों को वसूली के लिए नोटिस बांटना और चुनाव के ठीक पहले पेपर लीक हो जाना। लगभग 50 लाख परीक्षार्थियों ने पेपर दिया था और उनमें से अधिकांश ने और उनके परिवारी जनों ने बीजेपी को वोट नहीं दिया। अब भारतीय जनता पार्टी मुख्य जोर सरकारी भर्तियों को पूरा करने में लगाएगी। एक और प्रमुख कारण सांसदों के प्रति नाराजगी थी।
समाजवादी पार्टी को लगता है कि भाजपा के विधायकों से भी लोग नाराज हैं और अब भारतीय जनता पार्टी भी इस बात के सतर्क हो गई है कि उनके कई सांसद और विधायक जनता से वह संपर्क में नहीं रखते जो रखना चाहिए। इसलिए उन विधायकों को प्रोत्साहित किया जा रहा है जो लगातार अपने क्षेत्र में जाते रहते हैं। समाजवादी पार्टी के नेता जानते हैं की 10 साल की सत्ता के विरुद्ध जो रुझान पैदा होगा उसे भारतीय जनता पार्टी नहीं कम कर सकती। इसलिए 2027 उनके लिए बहुत आसान है होगा।
बीजेपी के लिए अखिलेश बने चुनौती
वास्तव में विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए की सबसे कठिन चुनौती का समय होगा। इसीलिए मुख्यमंत्री ने लोकसभा चुनाव हारने के दूसरे दिन ही तमाम योजनाओ की समीक्षा शुरू कर दी। लेकिन चुनौती यह है कि आम लोगों तक योजनाओं को ले जाना। वह भी उस तंत्र के भरोसे जो लापरवाह है और अवसर देखकर काम करता है। महत्वपूर्ण तथ्य कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मैदान में रहेंगे। भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व भी क्या सामाजिक समीकरणों को दुरुस्त कर पाएगा जिनके चलते वह 2014 और 2019 का लोकसभा और 2022 एवं 2017 का विधानसभा चुनाव जीत सकी।
इसमें सबसे ज्यादा योगदान उन सरकारी योजनाओं का रहा जो जनता के हित में चल रही थी। वैसे तो योजनाएं तो चलती रही लेकिन इसका लाभ जनता तक उतना नहीं पहुंच पाया जितना जाना चाहिए था। भाजपा के एक नेता कहते हैं कि योजनाओं के क्रियान्वयन में तमाम कमियां आ गई। इसका लोकसभा में नुकसान हुआ है। लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले एक बार फिर सामाजिक समीकरण को चुस्त दुरुस्त करने का मौका है। लेकिन सवाल यह है कि इस दौरान समाजवादी पार्टी भी तो चुप नहीं बैठेगी और मैदान में कहीं ज्यादा आक्रामक होगा उतरेगी।
इसलिए लड़ाई कांटे की होगी और मैदान में दोनों ही होंगे। अब देश की निगाहें उत्तर प्रदेश की तरफ जरूर होगी क्योंकि सबसे बड़ी लड़ाई यही होने जा रही है। हर किसी के मन में सवाल यह है की क्या समाजवादी पार्टी अपना टेंपो बरकरार रख पाएगी या भारतीय जनता पार्टी इसी तरह बाजी पलट देगी जैसी 2018 में पलटी थी।
तब लोकसभा के तीन उपचुनाव और एक विधानसभा उपचुनाव में भाजपा का सफाया हो गया था लेकिन छह महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में वह जीत गई थी। लेकिन यह भाजपा नेतृत्व भी जानता है उत्तर प्रदेश की लड़ाई इतनी सरल नहीं है। इसलिए दोनों ओर से जोरदार तैयारी चल रही है। यह तैयारी 2027 के विधानसभा चुनाव जीतने को लेकर ही है। इसलिए उत्तर प्रदेश के मैदान में बहुत ही रोचक राजनीतिक जंग देखने को मिलेगी।