UP Loksabha Chunav: 'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी' BJP की जीत का रथ क्या रोक पाएगी समाजवादी पार्टी और BSP, वोट यात्रा में क्या कहते हैं समीकरण?
Lok Sabha Elections 2024: फर्रुखाबाद में इस बार समाजवादी पार्टी ने एक नया प्रयोग किया है और यहां पर डॉक्टर नवल किशोर शाक्य को टिकट देकर प्रत्याशी बना दिया। डॉक्टर नवल किशोर कैंसर के डॉक्टर है और फर्रुखाबाद के ही रहने वाले हैं। वैसे वो रहते लखनऊ में हैं और लखनऊ और फर्रुखाबाद के कायमगंज में उनका एक नर्सिंग होम भी है
UP Loksabha Chunav: 'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी' BJP की जीत का रथ क्या रोक पाएगी समाजवादी पार्टी और BSP, वोट यात्रा में क्या कहते हैं समीकरण?
पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की भतीजी हैं मारिया आलम खान। पिछले दिनों उन्होंने बयान दे दिया कि मुसलमानों को 'वोट जिहाद' करना चाहिए। समाजवादी पार्टी के जिस सम्मेलन में उन्होंने 'वोट जिहाद' की बात की, उसमें सलमान खुर्शीद भी मौजूद थे। अब यह मामला तूल पकड़ चुका है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये मुद्दा चुनावी समीकरणों को बदल डालेगा। अगर, हां तो यह किसके नुकसान का सौदा होगा? समाजवादी पार्टी इस संकट को समझ चुकी है। सपा के एक समर्थक अमर यादव कहते हैं की इस तरह का भाषण देने की जरूरत नहीं थी।
फिलहाल समाजवादी पार्टी इस बयान को हल्का करने के लिए लोगों को यह बता रही है कि मारिया आलम खान का कथन सिर्फ यही था कि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट डालें। वोट जिहाद नाम की कोई चीज नहीं है, लेकिन बीजेपी इसे मुद्दा बनाए हुए है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि 'वोट जिहाद' की बात करने वालों की जमानत जब्त करा दें।
समाजवादी पार्टी ने किया नया प्रयोग
फर्रुखाबाद सलमान खुर्शीद की मजबूत जमीन हुआ करती थी और इसी छोटे से शहर से ऊपर उठ कर, वो देश की राजनीति में छा गए, लेकिन वक्त की रफ्तार ऐसी है कि सलमान खुर्शीद को अब टिकट के लाले पड़ गए हैं। वो चुनाव लड़ते भी हैं, तो जीतते नहीं।
फर्रुखाबाद में इस बार समाजवादी पार्टी ने एक नया प्रयोग किया है और यहां पर डॉक्टर नवल किशोर शाक्य को टिकट देकर प्रत्याशी बना दिया। डॉक्टर नवल किशोर कैंसर के डॉक्टर है और फर्रुखाबाद के ही रहने वाले हैं। वैसे वो रहते लखनऊ में हैं और लखनऊ और फर्रुखाबाद के कायमगंज में उनका एक नर्सिंग होम भी है।
डॉ. नवल किशोर की सीधी टक्कर भारतीय जनता पार्टी की मुकेश राजपूत और बहुजन समाज पार्टी के क्रांति पांडे से है। क्रांति पांडे व्यापारी हैं। कपड़े की दुकान है। राजनीति का शौक है और राजनीति के शौक के चलते वो चुनाव मैदान में आ गए, लेकिन क्रांति पांडे के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि क्या उन्हें ब्राह्मण वोट देगा जिस सामाजिक समीकरण के चलते उन्हें टिकट मिला है।
कितना काम आएगा BSP का ब्राह्मण कार्ड?
फर्रुखाबाद के देवेश त्रिपाठी कहते हैं कि ब्राह्मण BSP के साथ नहीं जाएगा। ज्यादातर ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी के साथ हैं, लेकिन क्रांति पांडे के समर्थक मुन्ना अवस्थी कहते हैं कि जो लोग यह कह रहे हैं कि ब्राह्मण मतदाता हाथी को वोट नहीं देगा, उन्हें जानकारी नहीं है।
ब्राह्मण वोट भी बसपा के पक्ष में पड़ेगा। पिछड़ा वोट भी हाथी को मिलेगा और इसके साथ ही दलित वोट, तो बसपा का है ही। इसलिए सीट निकल जाएगी, बस इंतजार कीजिए, लेकिन क्रांति पांडे को समीकरण जितने आसान लग रहे हैं, उतने है नहीं।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी के मुकेश राजपूत का सवाल है, तो वो मजबूत आधार पर चुनाव मैदान में हैं। सपा से शाक्य प्रत्याशी आने से मुकेश राजपूत की कठिनाइयां तो बढ़ी हैं, लेकिन इतनी भी नहीं कि चुनाव हाथ से निकलता दिखाई दे।
'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी'
कहते हैं फर्रुखाबाद में कुछ भी छुपाने के लिए नहीं होता। इसीलिए शायद एक कहावत चल निकली है कि "खुल्ला खेल फर्रुखाबादी।" अब इस कहावत का क्या मतलब है और कब से शुरू हुई, ये तो लोग नहीं बता पाए, लेकिन जब कोई घटना या कोई बात खुलेआम होने लगे तो, कहते हैं कि 'खुल्ला खेल फर्रुखाबादी' ही चल रहा है।
आलू की धरती के लिए मशहूर फर्रुखाबाद में बड़ी संख्या में कोल्ड स्टोरेज है। यहां का आलू दूसरे प्रदेशों में भी जाता है। यहां की जमीन ऐसी है कि आलू का उत्पादन बहुत होता है, लेकिन फिलहाल यहां पर चुनावी घमासान चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी मुकेश राजपूत दो बार चुनाव जीत चुके हैं और इस बार तीसरी बार मैदान में हैं। जबकि डॉक्टर नवल किशोर शाक्य पहली बार चुनाव मैदान में हैं।
डॉ. नवल किशोर शाक्य के समर्थक इस बात का प्रयास कर रहे हैं कि किसी तरह अति पिछड़ा वोट उनकी झोली में लाया जाए, लेकिन उनके सामने बहुत सी दिक्कतें हैं। मुकेश राजपूत भी अति पिछड़े हैं और उनका अति पिछड़े मतदाताओं पर गहरा असर है।
कैसे थे पिछले चुनाव के नतीजे?
पिछले लोकसभा चुनाव में डॉ. मुकेश राजपूत ने बहुजन समाज पार्टी के मनोज अग्रवाल को लगभग ढाई लाख वोटों से हरा दिया था। यह तब हुआ था, जब उत्तर प्रदेश में सपा बसपा और RLD का गठबंधन था। मायावती ने फर्रुखाबाद सीट यह समझ कर ली थी कि यादव, वैश्य मुस्लिम और दलित वोट मिलकर के बीजेपी को हरा देगा, लेकिन जब परिणाम आए, तो BSP को गहरा झटका लगा।
मुकेश राजपूत को 2019 में लगभग 56 प्रतिशत वोट मिले थे। फर्रुखाबाद के ही राम सिंह राजपूत कहते हैं कि माहौल बीजेपी के पक्ष में है। मुकेश राजपूत इस बार फिर चुनाव जीत जाएंगे। इसका कारण वो यह बताते हैं कि अति पिछड़ा पहले से ही बीजेपी के साथ है। अति दलितों में भी बीजेपी का समर्थन है। इसके साथ ही सवर्ण मतदाता पूरी तरह से भाजपा के साथ बना हुआ है। इसलिए समाजवादी पार्टी ने जो भी व्यूह रचना तैयार की है, उसमें शायद ही उसे सफलता मिले।
जबकि सपा के समर्थक अरविंद यादव कहते हैं कि यादव मुस्लिम और शाक्य मिलकर निर्णायक हो जाएगा। इस बार फर्रुखाबाद की लड़ाई मुश्किल है। एक बात साफ दिखती है कि दलित मतदाताओं में जाटव मतदाता पूरी तरह से मायावती के साथ जा रहा है। उसमें बहुत ज्यादा बिखराव नहीं है।
BJP दिख रही मजबूत
अब बसपा के सामने दूसरे वोटों को जोड़ने की चुनौती जरूर है। इसीलिए बसपा प्रत्याशी किसी तरह सवर्ण वोटों को अपने साथ खींचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब तक बसपा के प्रयास सफल नहीं हुए। यही नहीं मुस्लिम मतदाता पूरी तरह समाजवादी पार्टी के साथ है।
राजनीति के एक जानकार दिनेश कौशिक कहते हैं कि इस बार के मुकाबले 2019 में विपक्ष के लिए कहीं ज्यादा स्थितियां अनुकूल थी। इसका कारण वो ये बताते हैं कि दलित वोट पूरी तरह मायावती के साथ था। मुस्लिम मतदाताओं में कोई बिखराव नहीं था। इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि सलमान खुर्शीद जो कांग्रेस के टिकट में मैदान में थे, उन्हें सिर्फ 55000 वोट मिले थे।
अगर सलमान खुर्शीद के वोटो को जोड़ भी दिया जाए तब भी बसपा यहां पर दो लाख से ज्यादा वोटों से हार जाती। इसलिए इस बार कोई चमत्कार हो पाएगा ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि सामाजिक और राजनीतिक स्थितियां कमोबेश वही बनी हुई हैं। हां, समाजवादी पार्टी PDA यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की बात कर रही है, लेकिन ये सिर्फ प्रत्याशी चयन तक सीमित है। वहीं भारतीय जनता को सवर्ण के साथ अति पिछड़े मतदाताओं का समर्थन भी मिल रहा है। इसलिए लड़ाई यहां रोचक जरूर है, लेकिन फिलहाल भारतीय जनता पार्टी कहीं ज्यादा मजबूत दिख रही है।