UP Loksabha Election 2024: संभल में फिर चलेगी साइकिल या तेज दौड़ेगा हाथी? दलितों को लुभाने में जुटी बीजेपी
UP Lok sabha Elections 2024: मुस्लिम बहुल सीट होने के कारण बहुजन समाज पार्टी ने भी यहां पर सौलत अली को मैदान में उतारा है। इसी उम्मीद से कि अगर मुस्लिम वोट मिल जाए, तो बसपा यहां चुनाव जीत सकती है, लेकिन बसपा के सामने यहां भी वही समस्याएं है, जो उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग हर मुस्लिम बहुल सीट में झेलनी पड़ी है
UP Loksabha Election 2024: संभल में फिर चलेगी साइकिल या तेज दौड़ेगा हाथी? दलितों को लुभाने में जुटी बीजेपी
लोकसभा क्षेत्र संभल, समाजवादी पार्टी का गढ़ है। समाजवादी पार्टी को ये लोकसभा क्षेत्र इतना मजबूत लगता है कि 1999 में मुलायम सिंह यादव और 2004 में उनके भाई रामगोपाल यादव संभल से ही चुनाव लड़ने आए और जीते भी। सपा एक बार फिर इस पर कब्जा करना चाहती है और परिस्थितियां भी उनके खिलाफ नहीं है। इस क्षेत्र के मजबूत मुस्लिम नेता और सांसद शफीकुर्रहमान बर्क चुनावी तैयारी में व्यस्त थे, तभी फरवरी में उनका निधन हो गया। 92 साल बर्क अपने कट्टर बयानों के कारण भी चर्चित रहते थे। उनके न रहने पर समाजवादी पार्टी ने शफीकुर्रहमान बर्क के पोते और कुंदूरकी के विधायक जियाउर रहमान बर्क को टिकट दिया है।
मुस्लिम बहुल सीट होने के कारण बहुजन समाज पार्टी ने भी यहां पर सौलत अली को मैदान में उतारा है। इसी उम्मीद से कि अगर मुस्लिम वोट मिल जाए, तो बसपा यहां चुनाव जीत सकती है, लेकिन बसपा के सामने यहां भी वही समस्याएं है, जो उसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग हर मुस्लिम बहुल सीट में झेलनी पड़ी है।
मुस्लिम मतदाता बसपा की ओर झुक नहीं रहा
मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद मुस्लिम मतदाता बसपा की ओर झुक नहीं रहा और बसपा यह समझाने में लगी है कि अगर दलित और मुस्लिम एक हो जाए, तो बीजेपी को हराया जा सकता है। हर मुस्लिम बहुल सीट पर बसपा इसी मंत्र का इस्तेमाल करती है, लेकिन फिलहाल उसे बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी है।
2012 के पहले इसी रणनीति के तहत बसपा को सफलता मिलती रही थी, लेकिन फिलहाल यह फार्मूला इसलिए सफल नहीं हो पा रहा है, क्योंकि मुसलमान मतदाता सपा कांग्रेस गठबंधन की ओर जा रहा है।
इसका एक कारण ये भी है कि पिछले चुनाव में सपा-बसपा और RLD का गठबंधन था और शफीकुर रहमान बर्क इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के परमेश्वर लाल सैनी को लगभग एक लाख 75 हजार वोटों से हरा दिया था। यह अंतर इसलिए भी था, क्योंकि बसपा से गठबंधन होने के कारण दलित वोट पूरी तरह समाजवादी पार्टी के साथ चला गया था।
बहन जी की मदद के बिना कोई जीत नहीं सकता!
संभल के ही एक दलित मतदाता सरवन कहते हैं कि यहां पर कई बार दलित मुस्लिम मतदाताओं के गठजोड़ के कारण बसपा जीती थी और बहन जी की मदद के बिना कोई जीत नहीं सकता। वो कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी को BSP की मदद से ही हराया जा सकता है।
हालांकि, समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता बब्बन कहते हैं कि समाजवादी पार्टी बिना किसी गठजोड़ के चुनाव जीत लेगी। बहुजन समाज पार्टी बीजेपी की 'बी टीम' है। इसलिए उसकी मदद की कोई जरूरत नहीं है। वो कहते हैं कि यहां पर साइकिल तेज दौड़ रही है।
बीजेपी के लिए क्या हैं मुश्किलें?
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार फिर परमेश्वर लाल सैनी को मैदान में उतारा है, लेकिन यहां का सामाजिक समीकरण ऐसे हैं कि उनके लिए सीट निकालना काफी मुश्किल है। पिछली बार मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर सपा के साथ गया था और समाजवादी पार्टी की कोशिश यही है कि इस बार भी मुस्लिम एकजुट होकर सपा के पक्ष में चला जाए, जिससे जीत आसानी से हो सके।
अब सवाल ये है कि क्या बसपा मु्स्लिम वोट पाएगी? सपा इस बात को लेकर सतर्क है कि बसपा को मुस्लिम वोट न मिलने पाए। अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ, तो भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी के जीतने के आसार पैदा होंगे।
इस बार हाथी ज्यादा तेज दौड़ रहा है!
संभल के ही मोहम्मद शमशाद कहते हैं कि फिलहाल, तो मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी के साथ दिख रहा है, लेकिन बसपा का मुस्लिम प्रत्याशी कितना वोट ले जाएगा, ये मतदान के दिन ही पता चलेगा।
वैसे वो बताते हैं कि फिलहाल तो सौलत अली अपना सजातीय वोट काट रहे हैं, लेकिन यह मतदान के दिन तक उनके पक्ष में बना रहेगा यह कहना मुश्किल है। बसपा के ही एक समर्थक राम संजीवन कहते हैं कि इस बार हाथी ज्यादा तेज दौड़ रहा है।
इस इलाके में यादव मतदाता भी बड़ी संख्या में है और उनमें से ज्यादातर मतदाता समाजवादी पार्टी के साथ हैं। एक तथ्य हर जगह देखने को मिलता है कि चुनाव में मायावती का सजातीय दलित मतदाता मजबूती से बसपा के साथ है और उसमें कोई विभाजन नहीं हो रहा है। कमोवेश यहां भी वही दिखता है। सौलत अली को दलित मतदाताओं का समर्थन मिल रहा है, लेकिन उनकी दिक्कत यही है कि दूसरे किसी वर्ग का वोट उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
अति पिछड़ा वोट भाजपा के साथ
अति पिछड़ा वोट भाजपा के साथ जा रहा है। पिछले चुनाव में यह देखा गया है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा मतदान होता है। बीजेपी यह प्रयास कर रही है कि उसके समर्थन वाले इलाकों में मतदान प्रतिशत ज्यादा रहे, जिससे उसे सफलता मिल सके। इसके लिए पार्टी कई बैठक कर चुकी है।
बीजेपी के सामने एक और दिक्कत ये है कि उसने पुराने प्रत्याशी परमेश्वर लाल सैनी को ही मैदान में उतारा और बदलाव न होने के कारण बीजेपी कार्यकर्ता उदासीन हैं। बीजेपी एक और प्रयास कर रही है कि दलित मतदाता उसके पाले में चला जाए। इसके लिए वो दलितों को समझा रही है कि यहां पर मुसलमान बहन जी को वोट नहीं दे रहा है। इसलिए सब लोग मिलकर बीजेपी को जिता दो।
यह कितना सफल होगा, ये तो समय ही बताएगा। परमेश्वर लाल सैनी 2014 में शफीकुर्रहमान बर्क से बमुश्किल 5000 वोटों से जीत पाए थे। वैसे इस सीट पर बसपा कई बार सफल हुई, लेकिन अब यहां पर सपा मजबूत है। बर्क कई बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते भी। इस बार समाजवादी पार्टी बीजेपी और बसपा के बीच लड़ाई हो रही है, लेकिन ये लड़ाई भाजपा और सपा के बीच सिमट जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा।