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SEBI के इन नियमों से ब्रोकर्स की आफत, बदलाव की सिफारिश

बाजार नियामक सेबी ने क्लाइंट के पैसों को क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास भेजने और इसे क्लाइंट के पास लौटाने की प्रक्रिया में बदलाव कर दिया है। अब इन नए नियमों को लेकर ब्रोकर्स को दिक्कत हो रही है। ब्रोकर्स के मुताबिक इससे कारोबार करने में दिक्कतें आ रही है। जानिए सेबी के किन नियमों से ब्रोकर्स को दिक्कत आ रही है और क्या

Edited By: Moneycontrol Newsअपडेटेड Sep 13, 2023 पर 4:16 PM
SEBI के इन नियमों से ब्रोकर्स की आफत, बदलाव की सिफारिश
ब्रोकर्स क्लाइंट के पैसों का गलत इस्तेमाल न कर सकें, इसके लिए सेबी ने नए नियम लाए हैं। हालांकि इससे ब्रोकर्स की आफत बढ़ गई है।

बाजार नियामक सेबी ने क्लाइंट के पैसों को क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास भेजने और इसे क्लाइंट के पास लौटाने की प्रक्रिया में बदलाव कर दिया है। अब इन नए नियमों को लेकर ब्रोकर्स को दिक्कत हो रही है। ब्रोकर्स के मुताबिक इससे कारोबार करने में दिक्कतें आ रही है। एसोसिएशन ऑफ नेशनल एक्सचेंजेज मेंबर्स ऑफ इंडिया (ANMI) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ब्रोकर्स फोरम (BBF) नियमों में ढील के लिए बाजार नियामक सेबी के पास पहुंचे हैं। सेबी ने नियमों में बदलाव इसलिए किया है ताकि ब्रोकर्स अपने क्लाइंट्स के पैसों का गलत इस्तेमाल न कर सकें।

क्या है SEBI का नया नियम, जिससे हो रही ब्रोकर्स को दिक्कत

एसोसिएशन के मुताबिक प्रत्येक कारोबारी दिन शाम 6:30 बजे से पहले क्लाइंट्स के फंड की अपस्ट्रीमिंग अनिवार्य करने के साथ-साथ हर दिन का हिसाब-खिताब भेजने के नियम से ब्रोकर्स को अधिक मैनपावर और पूंजी लगानी पड़ रही है। यह व्यवस्था 1 सितंबर से लागू है। सेबी के नियम के मुताबिक ब्रोकर्स को क्लाइंट्स से फंड पहले अप स्ट्रीमिंग क्लाइंट नोडल बैंक अकाउंट (USCNBA), फिर इसके बाद सेटलमेंट, फिर सेटलमेंट से क्लियरिंग कॉरपोरेशन, फिर क्लियरिंग कॉरपोरेशन से सेटलमेंट, फिर सेटलमेंट से DSCNBA (डाउन स्ट्रीमिंग क्लाइंट नोडल बैंक अकाउंट) से क्लाइंट्स के खाते में फंड भेजने की कई चरणों की लंबी प्रक्रिया से दिक्कत है।

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इससे पहले अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम अकाउंट्स एक ही होता था और इसे ब्रोकर का क्लाइंट अकाउंट कहते थे। पैसों के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए नया नियम लाया गया कि USCNBA और DSCNBA, दोनों को हर दिन खाली करना होगा। इसमें से USCNBA को शाम 6:30 बजे तक और DSCNBA को दिन के आखिरी तक खाली करना होगा। ये फंड्स सिर्फ क्लियरिंग कॉरपोरेशन के पास रह सकते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत ब्रोकर्स को कट ऑफ टाइम को लेकर है जिसके चलते उनका मानना है कि ऑपरेशनल दिक्कतें आ रही हैं और क्लाइंट सर्विसिंग प्रोसेस पर असर पड़ रहा है।

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