ऐसी बड़ी कंपनियां जिन्होंने बॉन्ड जारी कर 25 पर्सेंट से ज्यादा अपनी क्वालिफाइड बॉरोइंग जुटाई है, उन्हें इंसेंटिव दिया जाएगा। इस इंसेंटिव के तहत डेट सिक्योरिटीज की सालाना लिस्टिंग फीस को कम किया जाएगा और कोर सेटलमेंट फंड (CSF) में कंपनी को कम योगदान करना होगा। सेबी की तरफ से 19 अक्टूबर को जारी सर्कुलर में यह बात कही गई है।
सर्कुलर के मुताबिक, जिन कंपनियों को बॉरोइंग में बॉन्ड की हिस्सेदारी 25 पर्सेंट से कम होगी, उन्हें कोर सेटलमेंट फंड में अतिरिक्त योगदान करना होगा। इस सर्कुलर के जरिये मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) का मकसद कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट को मजबूत करना और बड़ी कंपनियों के लिए डेट सिक्योरिटीज के जरिये फंड जुटाना आसान करना है।
बाजार नियामक सेबी (SEBI) के नियमों के मुताबिक किसी लिस्टेड कंपनी में कम से कम 25 फीसदी पब्लिक शेयरहोल्डिंग होनी चाहिए। इसके लिए कंपनियों को लिस्टिंग के बाद 5 साल का समय मिल सकता है लेकिन LIC के लिए यह नियम बदल सकता है। मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के मुताबिक कॉरपोरेशन के लिए सरकार 5 साल का यह पीरियड बढ़ा सकती है। सितंबर तिमाही के शेयरहोल्डिंग पैटर्न के हिसाब से सरकार की देश की सबसे बड़ी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी LIC में 96.50 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके शेयरों की घरेलू मार्केट में 17 मई 2022 को एंट्री हुई थी। इसका 21008 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आईपीओ 6 कारोबारी दिनों तक सब्सक्रिप्शन के लिए खुला था और ओवरऑल 2.95 गुना सब्सक्राइब हुआ था।
दो साल में LIC में हिस्सेदारी घटाने की शर्त भी मुश्किल
एलआईसी में हिस्सेदारी घटाने के लिए सरकार डेडलाइन बढ़ा सकती है। इसके अलावा हिस्सेदारी घटाने का एक और नियम है जिसे पूरा करना काफी मुश्किल दिख रहा है। लिस्टिंग के बाद कंपनियों को कम से कम 10 फीसदी हिस्सेदारी पब्लिक शेयरहोल्डर्स के लिए रखनी होती है। पिछले साल मई में LIC ने 3.5 फीसदी हिस्सेदारी हल्की की थी। अब दो साल के भीतर पब्लिक शेयरहोल्डिंग कम से कम 10 फीसदी करने के लिए इसे मई 2024 तक 6.5 फीसदी और हल्की करनी है जो लगभग असंभव है। एक और अहम बात ये है कि इसके शेयर पहले ही 949 रुपये के इश्यू प्राइस के मुकाबले करीब 33 फीसदी डिस्काउंट पर है तो फॉलो ऑन ऑफर की भी कोई संभावना नहीं है।
SCRA रूल्स के तहत होगा बदलाव
लिस्टेड कंपनियों के पब्लिक शेयरहोल्डिंग से जुड़े नियमों के पालन के कॉरपोरेशन को अधिक समय देने का काम सरकार को SCRA (सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट) रूल्स के तहत कर सकती है। इस साल की शुरुआत में सरकार ने SCRA रूल्स में इससे बड़ा बदलाव किया था। इस बदलाव के तहत सरकार को बिना सेबी की मंजूरी के सरकारी कंपनियों की लिस्टिंग से जुड़े नियमों में बदलाव का अधिकार मिल गया।