कोविड महामारी के चलते दुनियाभर के लिए महंगाई एक बड़ी चुनौती बन गई। बढ़ती महंगाई के बीच अगर आपको भी अच्छे रिटर्न वाले निवेश विकल्पों की तलाश है जिनमें ऊंची ब्याज दर मिले और आपकी कमाई बेहतर हो तो आपके लिए टारगेट मैच्योरिटी फंड एक बेहतर विकल्प हो सकता है। टारगेट मैच्योरिटी फंड का निवेश सरकारी सिक्योरिटीज के हाई क्वालिटी पेपर में होता है, वहीं फंड में कम जोखिम में हाई-लिक्विडिटी का भी फायदा मिलता है। इस फंड के बारे में विस्तार से बात करते हुए PB Investments की पूजा भिंडे (Pooja Bhinde) ने कहा कि टारगेट मैच्योरिटी फंड पैसिव डेट म्यूचुअल फंड स्कीम होते हैं । टीएमएफ के पोर्टफोलियो में ऐसे बॉन्ड होते हैं जो तय मैच्योरिटी डेट वाले अंडरलाइंग बॉन्ड इंडेक्स का हिस्सा होते हैं। ये फंड एक्सचेंज ट्रेडेड या इंडेक्स फंड हो सकते है। SEBI के नियमों के अनुसार ही इनमें निवेश होता है।
पूजा भिंडे ने आगे कहा कि फंड का निवेश केवल G-Secs, SDLs, PSU में होता है। टारगेट मैच्योरिटी फंड की क्रेडिट क्वालिटी अच्छी होती है। इस फंड में बॉन्ड से भुगतान पर मिले कूपन से दोबारा निवेश किया जा सकता है। इस फंड में अच्छे रिटर्न से निवेशकों को इस फंड से फायदा होता है।
टारगेट मैच्योरिटी फंड-क्या हैं
यह एक पैसिवली मैनेज्ड डेट फंड की श्रेणी में आते हैं। इन फंड की मैच्योरिटी तारीख तय होती है। इसकी मैच्योरिटी 1 से 30 साल तक की होती है। इसके जरिए सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश होता है। सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों के बॉन्ड में भी निवेश होता है। होल्डिंग पीरियड के दौरान मिला ब्याज,फिर निवेश होता है। मैच्योरिटी तक बने रहने में ज्यादा फायदा है। फंड रोल डाउन स्ट्रैटेजी को अपनाते हैं।
निवेश करना कब होता है सही
टारगेट मैच्योरिटी फंड में ब्याज दरें और यील्ड अधिक होने पर निवेश करना सही होता है। जोखिमों को बेहतर तरीके से नेविगेट करने में मददगार हेता है। फंड के पोर्टफोलियो में अंडरलाइंग बॉन्ड शामिल होते हैं। टारगेट मैच्योरिटी बॉन्ड एक्रुअल मोड में काम करते हैं।
इस फंड का एक्सपेंस बहुत ही कम होता है। टारगेट मैच्योरिटी फंड में एक्सपेंस रेश्यो 0.20 से 0.50 तक होता है।
टारगेट मैच्योरिटी फंड, फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान क्लोज एंडेड स्कीम ( FMP ) से अलग होता है। FMP की तुलना में टारगेट मैच्योरिटी फंड में ज्यादा लिक्विडिटी होता है।
टारगेट मैच्योरिटी फंड के फायदे
टारगेट मैच्योरिटी फंड की मैच्योरिटी की डेट तय होता है। बॉन्ड्स की एक्सपायरी डेट मैच्योरिटी डेट से अलाइन की जाती है। ब्याज दरों में बदलाव का TMF पर कोई असर नहीं होता है। डेट फंड्स की तुलना में TMF का रिटर्न बेहतर होता है। टारगेट मैच्योरिटी फंड्स सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं । TMF में डिफॉल्ट और क्रेडिट जोखिम काफी कम होता है। FMP की तुलना में TMF में ज्यादा लिक्विडिटी होती है।
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