विजय कुमार गाबा
विजय कुमार गाबा
शेयर मार्केट्स के प्रमुख सूचकांक Sensex और Nifty अपने रिकॉर्ड हाई पर हैं। पिछले एक साल में इंडिया सबसे अच्छा रिटर्न देने वाले बाजारों में शामिल रहा है। इंडियन मार्केट्स का रिटर्न करीब 9.6 फीसदी रहा है। Brazil के मार्केट का रिटर्न करीब 8 फीसदी रहा है। रूस का 9 फीसदी और इंडोनेशिया का 7.5 फीसदी रहा है। Venezuela का मार्केट पहले पायदान पर है। उसका रिटर्न 107 फीसदी रहा है। अर्जेंटीना का 108 फीसदी और Egypt का 15 फीसदी रहा है। कुछ इनवेस्टर्स को ये डेटा बेकार लग सकते हैं। कई इनवेस्टर्स इन आकड़ों को देखकर निराश हो सकते हैं। उन्हें लग सकता है कि जब इंडियन मार्केट का प्रदर्शन इतना अच्छा रहा है तो फिर उनके पोर्टफोलियो का रिटर्न क्यों नहीं बढ़ा है। मुश्किल वक्त को देखते हुए स्टॉक मार्केट्स का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसलिए यह समय जश्न मनाने का है। जश्न मनाने के बाद हमें खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि 18,700 पर क्या Nifty ने उन सभी फैक्टर्स पर ध्यान दिया है, जो कंपनियों के प्रदर्शन पर असर डाल सकते हैं। क्या निफ्टी ने लिक्विडिटी, रिस्क लेने की कैपेसिटी और 2023 में फाइनेंशियल स्टैबिलिटी को ध्यान में रखा है?
मैं तो अपने पोर्टफोलियो के रिस्क-रिवॉर्ड इक्वेशन को एनालाइज करना चाहूंगा। ऐसा करने में खासकर मैं निम्नलिखित फैक्टर्स को ध्यान में रखूंगा:
खर्च पर बढ़ता दबाव
पिछले कुछ महीनों में कई कंपनियों ने अपने एंप्लॉयीज की संख्या को लेकर कुछ फैसले लिए हैं। ज्यादा सैलरी वाले कुछ एंप्लॉयीज की जॉब जा सकती है। पहले का अनुभव यह बताता है कि वर्कफोर्स में 2 फीसदी की कमी से जो अनिश्चितता का माहौल बनता है, उसका असर जॉब में रहने वाले कम से कम 48 फीसदी एंप्लॉयीज के खर्च करने के प्लान पर पड़ता है।
इंडिया के टॉप कॉलेजों में आईटी हायरिंग में 2023 में 50 फीसदी गिरावट देखने को मिल सकती है। हम दूसरे सेक्टर्स में भी इस ट्रेंड को देख सकते हैं, क्योंकि ज्यादातर कंपनियों के मैनेजमेंट ने अगली कुछ तिमाहियों में ग्रोथ सामान्य रहने का अनुमान जताया है। हाल में कई गावों में जाने के बाद मैंने पाया कि 2022 में खरीफ सीजन कमजोर रहने की वजह से कई किसान परिवारों की खपत पर असर पड़ा है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, La Nina (ज्यादा बारिश) की स्थितियों का असर पिछले चार सीजन में फसलों पर पड़ा है। यह असर रबी सीजन में भी देखने को मिल सकता है। 2023 के खरीफ सीजन में El Nino (सूखे जैसी) की स्थितियां दिख सकती हैं।
वेल्थ इफेक्ट में बदलाव
लेटेस्ट डेटा के मुताबिक, इंडिया में क्रिप्टोकरेंसी में इनवेस्ट करने वाले लोगों की संख्या 11.5 करोड़ से ज्यादा है। इसमें से 40 फीसदी से ज्यादा इनवेस्टर्स 30 साल से कम उम्र के हैं, जिनकी रिस्क लेने की कैपेसिटी ज्यादा है। साल 2020-21 में इन इनवेस्टर्स को क्रिप्टो में अपने निवेश पर बहुत मुनाफा हुआ है। लेकिन, अब उनका पोर्टफोलियो लॉस में है। हाल में हुई कई कंपनियों खासकर टेक्नोलॉजी आधारित बिजनेस वाली कंपनियों की लिस्टिंग वाले शेयरों की कीमतें लॉस में चल रही हैं। आम तौर पर इन कंपनियों के एंप्लॉयीज कंपनसेशन में ESOPS शामिल हैं। कई एंप्लॉयीज जिन्होंने अपने ईसॉप्स की वैल्यू में इजाफा देखा था, उन्हें अब अपने पोर्टफोलियो की वैल्यू में गिरावट दिख रही है। इनमें से कुछ को MTM लॉस के साथ ही टैक्स लायबिलिटी की दोहरी चिंता सता रही है।
कुछ स्मॉल और मिडकैप शेयरों में 2020-21 में तेज उछाल आया था। 2022 में उनमें तेज गिरावट देखने को मिली है। शेयरों और क्रिप्टो में तेजी की वजह से जो वेल्थ इफेक्ट दिख रहा था वह कुछ सीमा तक अब घटता नजर आ रहा है। इस वेल्थ इफेक्ट का असर रिस्क लेने की कैपेसिटी, कंजम्प्शन पैटर्न और इनवेस्टर्स के इनवेस्टमेंट विहेबियर पर भी पड़ेगा।
फिस्कल कंडिशंस की खराब होती स्थिति
कई मार्केट पार्टिसिपेंट्स इंफ्रास्ट्रक्चर और डिफेंस को फिस्कल सपोर्ट और PLI जैसी इनसेंटिव पर दांव लगा रहे हैं। यह ध्यान में रखना होगा कि आने वाले बजट आम चुनावों से पहले केंद्र सरकार का आखिरी बजट होगा। सरकार अगले साल कैपिटल एक्सपेंडिचर की कॉस्ट पर सोशल सेक्टर पर खर्च बढ़ा सकती है। सरकार विपक्षी दलों के हमलों से बचने के लिए विनिवेश कार्यक्रम पर भी फोकस घटा सकती है। कैपिटल गेंस टैक्स में बढ़ोतरी भी की जा सकती है। इन सभी का असर इनवेस्टर्स सेंटिमेंट पर पड़ेगा।
बढ़ता बाहरी खतरा
पिछली कुछ तिमाहियों से बाहरी सेक्टर कमजोर रहा है। अक्टूबर में ट्रेड डेफिसिट बढ़कर 26.91 अरब डॉलर पर पहुंच गया। सुस्त विदेशी मांग की वजह से एक्सपोर्ट 17 फीसदी घट गया। इधर, इंपोर्ट अब भी ज्यादा है। यह 6 फीसदी बढ़ा है। इंपोर्ट सब्सिट्यूशन और एक्सपोर्ट प्रमोशन की मदद से ट्रेड अकाउंट में सुधार की सरकार की कोशिशों के बावजूद पिछले तीन साल में एक्सपोर्ट की CAGR 4.3 फीसदी रही है। इस दौरान इंपोर्ट की सीएजीआर 14.3 फीसदी रही है। इस वजह से ट्रेड डेफिसिट ज्यादा रहा है। इस वजह से एक्सटर्नल सिचुएशन कमजोर रहा है।
यह ध्यान में रखने वाली बात है कि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) ने 2023 में वैश्विक व्यापार में तेज गिरावट का अनुमान जताया है। स्पष्ट है कि 2023 में बैलेंस ऑन पेमेंट पर दबाव बना रहेगा।
निवेश नहीं किया गया कैश गिरावट से बचाएगा
ओवरनाइट (लिक्विड) फंड्स सालाना 5 फीसदी रिटर्न नहीं दे रहे हैं। बैंक डिपॉजिट्स 5.5-6 फीसदी रिटर्न ऑफर कर रहे हैं। मौजूदा स्थितियों में 18,700 पर तेजी की 8-10 फीसदी तेजी की सीमित उम्मीद दिखती है, जबकि गिरावट 10 फीसदी तक आ सकती है। साफ है कि अभी रिस्क-रिवॉर्ड इक्वेशन अनुकूल नहीं है। कैश को अपने पास बनाए रखने की अपॉर्चुनिटी कॉस्ट खराब नहीं है। इससे निवेश नहीं किया गया पैसा इनवेस्टर्स अपने पास रख सकते हैं।
(विजय कुमार गाबा इक्विटी इंडिया फाउंडेशन के डायरेक्टर हैं।)
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