डॉलर के मुकाबले रुपया आज 78 के पार जाते हुए रिकॉर्ड लो पर बंद हुआ है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और मजबूत डॉलर रुपए पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 0.38 फीसदी की कमजोरी के साथ 78.14 के स्तर पर खुला था। खुलने को बाद इसमें और कमजोरी आती दिखी और ये 0.56 फीसदी की कमजोरी के साथ 78.28 के स्तर तक जाता दिखा। हालांकि आरबीआई के दखल के बाद रुपए की हालत कुछ सुधरी। कारोबर के अंत में डॉलर के मुकाबले रुपया 78.04 के स्तर पर बंद हुआ। हालांकि जानकारों का मानना है कि रुपया दूसरे इमर्जिंग देशों के मुकाबले अब भी मजबूत है, लेकिन ये भी माना जा रहा है कि एक डॉलर का भाव 79 रुपए तक फिसल सकता है।
भारत की विनिमय दर इस वर्ष के अधिकांश हिस्से में दबाव में रही। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार नए निचले स्तर पर जाता नजर आ रहा है। रुपये के संकट का मूल कारण तेल की ऊंची कीमतें हैं। भारत अपनी ईंधन जरूरतों का लगभग 85 प्रतिशत आयात के माध्यम से पूरा करता है। देश की क्रूड ऑयल बास्केट प्राइस एक दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। कच्चे तेल के भाव 120 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए हैं।
तेल की ऊंची कीमतें ही रुपए की एकमात्र दुश्मन नहीं हैं। यहां चार और कारक हैं जो रुपये के खिलाफ काम कर रहे हैं।
1-विदेशी फंडों की बिकवाली
इनमें से पहला है विदेशी फंडों की बिकवाली। भारतीय इक्विटी और बॉन्ड बाजारों से लगातार हो रही डॉलर के निकासी ने 2022 में रुपये को दबाव में रखा है। ग्लोबल मार्केट में जोखिम से बचने की रणनीति के तहत विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारतीय बाजार से लगातार अपने पैसे निकल रहे हैं। जनवरी के बाद से अब तक ये निकासी 24 अरब डॉलर की रही है। बेंचमार्क इक्विटी सूचकांकों में भी इस दौरान भारी गिरावट आई है। जो बाजार में कायम निगेटिव सेंटीमेंट की पुष्टि करती है। जनवरी के बाद से निफ्टी और 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 10 फीसदी से ज्यादा गिर चुका है। डीलरों का कहना कि अगर देश से डॉलर की निकासी की मौजूदा गति जारी रहती है, तो विनिमय दर के नए लो को भी तोड़ने की संभावना है।
अमेरिका में बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए यूएस फेड अपनी नीति दरों में आक्रामक रूप से बढ़ोतरी करने की नीति अपनाई है। आने वाले महीनों में हमें अमेरिका में ब्याज दरों में तेजी से बढ़ोतरी होती नजर आ सकती है। बाजार का अनुमान है कि इस हफ्ते के अंत में होने वाली यूएस फेड की मीटिंग में ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। बताते चलें कि यूएस फेड की तरफ से बढ़ी ब्याज दरों से डॉलर असेट्स से मिलने वाला रिटर्न भारत जैसे उभरते इक्विटी बाजारों से मिलने वाले रिटर्न की तुलना में ज्यादा हो जाएगा। भारत में भी RBI ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है। लेकिन यूएस फेड अपनी दरों में ज्यादा बढ़ोतरी कर रहा है। जिससे भारत जैसे बाजारों से डॉलर का प्रवाह अमेरिका की तरफ बढ़ रहा है।
दुनिया के लिए महंगाई बहुत बड़ी समस्या बन गई है। अमेरिका में महंगाई दर पिछले 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही लड़ाई के कारण सप्लाई से जुड़ी समस्या गभीर रूप ले रही है। इससे पूरी दुनिया में कमोडिटी के भाव बढ़ रहे हैं। आगे भी इसमें तेजी जारी रहने की संभावना है। इसी बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए पूरी दुनिया के सेंट्रल बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं। जानकारों का मानना है कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी के चलते इकोनॉमी की ग्रोथ धीमी होती है। जिससे मंदी की संभावना बनती है। इसी डर के चलते इक्विटी और करेंसी मार्केट दबाव में हैं।
4-चालू खाते का बढ़ता घाटा
कमोडिटी कीमतों में बढ़ोतरी की वजह से भारत का चालू खाते का घाटा बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2022 में ये GDP का 2.7 फीसदी था। जो कि वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 1.2 फीसदी ज्यादा था। अधिकतर जानकारों का मानना है कि भारत का वित्त वर्ष 2023 में चालू खाते का घाटा GDP के 3.5 फीसदी पर रहेगा। कच्चे तेल की कीमतों में इसी तरह की तेजी कायम रहने पर यह घाटा और बढ़ सकता है। चालू खाते का यह बढ़ता घाटा देश के लिए अच्छा नहीं है। यह घाटा जितना बड़ा होगा, इसे भरने के लिए भारत को उतने ही डॉलर की जरूरत होगी। इससे रुपये पर और दबाव बढ़ेगा।