SEBI News: बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज ऑफ इंडिया (SEBI) ने मार्केट में लिस्टेड कंपनियों को बड़ी राहत दी है। अब कुछ जानकारियों का खुलासा करने के लिए उन्हें और अधिक समय दे दिया गया है तो कुछ का खुलासा करने की जरूरत खत्म कर दी है। बता दें कि कंपनियों को अभी सभी जुर्माने की जानकारी एक्सचेंजों को 24 घंटे के भीतर देनी होती है। हालांकि अब इन नियम में सेबी ने काफी ढील दी है। इसके अलावा सेबी ने मार्केट में लिस्ट होने की तैयारी करने वाली कंपनियों के लिए भी कुछ नियम तय किए हैं।
खुलासे से जुड़े नियमों में क्या हुए बदलाव?
पूंजी बाजार नियामक सेबी की 30 सितंबर को बोर्ड की बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। इसके बाद लिस्टिंग रेगुलेशंस (LODR रेगुलेशंस) और कैपिटल इश्यू रेगुलेशंस (ICDR रेगुलेशंस) के तहत ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मानकों का ऐलान किया गया। पहले टैक्स विवाद और मुकदमेबाजी से जुड़े सभी खुलासे करने होते थे और 24 घंटे के भीतर जानकारी देनी होती थी। हालांकि अब सेबी ने तय किया है कि लिस्टेड कंपनियों को फाइन और पेनाल्टी का खुलासा तभी करना होगा, जब यह 1 लाख रुपये से अधिक हो। हालांकि यह लिमिट भी तब है, जब फाइन और पेनाल्टी सेक्टर रेगुलेटर्स या इन्फोर्समेंट एजेंसियों ने लगाया हो। बाकी कोई फाइन/पेनाल्टी लगती है तो यह सीमा 10 लाख रुपये है।
इसके अलावा सेबी ने ट्रेडिंग बंद होने के बाद खत्म होने वाली बोर्ड की बैठक से जुड़े खुलासे के लिए 30 मिनट की बजाय 3 घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया है। वहीं मुकदमेबाजी या विवादों के खुलासे के लिए 24 घंटों के बजाय 72 घंटे का टाइमलाइन फिक्स किया गया है।
सेबी ने लिस्टिंग कंपनियों के लिए सिंगल फाइलिंग सिस्टम पेश किया है यानी कि एक एक्सचेंज को जानकारी भेजी जाएगी तो वह दूसरे एक्सचेंज पर भी दिखने लगेगी। इसके अलावा पीरियाडिक फाइलिंग्स को दो ब्रॉड कैटेगरीज- इंटीग्रेटेज फाइलिंग (गवर्नेंस) और इंटीग्रेटेड फाइलिंग (फाइनेंशियल) में बांटा गया है ताकि नियमित तौर पर होने वाली फाइलिंग्स की संख्या को कम किया जा सके।
वित्तीय नतीजों का न्यूजपेपर में जो ऐड दिया गया है, लिस्टेड कंपनियों के लिए उसे बताना अब वैकल्पिक कर दिया गया है। इसके अलावा जो बड़ी राहत लिस्टेड कंपनियों को दी गई है, वह ये है कि बोर्ड कमेटी में जो खाली पद हैं, उन्हें भरने के लिए 3 महीने का अतिरिक्त समय मिल गया। साथ ही बोर्ड, कमेटी और प्रमुख मैनेजेरियल पदों को इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 के तहत CRIP से बाहर कर दिया गया है।
लिस्ट होने की तैयारी में जुटी कंपनियों के लिए ये हुए बदलाव
प्री-इश्यू ऐड और प्राइस-बैंड ऐड को मिलाकर एक सिंगल ऐड देना होगा और कुछ जानकारियों का खुलासा एक क्यूआर कोड लिंक के जरिए करना अनिवार्य होगा। हालांकि कंपनियों को पब्लिक इश्यू, राइट्स इश्यू और QIP के मामले में पहले से किए गए या प्रस्तावित अधिग्रहण या बिक्री के लिए प्रोफार्मा फाइनेंशियल्स स्वेच्छा से घोषित करने की मंजूरी दी गई है।