आम धारणा ये है कि 6 अप्रैल को आरबीआई रेपो रेट में अभी एक और बढ़ोतरी करेगा। ये बढ़ोतरी फाइनल होगी। उसके बाद दरो में गिरावट की शुरुआत होगी। बता दें कि आरबीआई एमपीसी की बैठक 3 अप्रैल को शुरु हुई है। ये 6 अप्रैल को अपना फैसला देगी। उम्मीद है कि आरबीआई रेपो रेट में 0.25 फीसदी की और बढ़ोतरी करके इसको 6.75 फीसदी कर देगा। इस बढ़ोतर को तर्कसंगत ठहराने के लिए की वजहें हैं। देश में हेडलाइन महंगाई दर एक बार फिर से 6 फीसदी के पार चली गई है। ये आरबीआई के जनवरी-मार्च के लिए किए गए 5.7 फीसदी के अनुमान से 50 बेसिस प्वाइंट यानी 0.50 फीसदी ज्यादा है।
इसके अलावा कोर महंगाई के मोर्चे पर (जिसे एमपीसी ने पिछली कुछ बैठकों में एक प्रमुख फैक्टर बताया है) पिछले 6 महीनेंमें मुश्किल से कोी प्रगति हुई है और ये 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। इसके अलावा आरबीआई का अनुमान है कि जनवरी-मार्च 2024 की अवधि में खुदरा महंगाई दर 5.6 फीसदी पर रह सकती है। ये 4 फीसदी से मीडिम टर्म लक्ष्य से काफी ज्यादा है।
लेकिन अगर एमपीसी के लिए इस सप्ताह फिर से दरों में बढ़त करने के लिए एक ठोस वजह बन सकते हैं तो ब्याज दरों में बढ़त पर विराम लगने को पक्ष में भी अपने तर्क हैं। आइए डालते हैं इन पर एक नजर।
6 अप्रैल को रेपो दर को 6.5 फीसदी पर ही बरकरार रखने का फैसला मुमकिन!
यह सोचना बहुत गलत नहीं होगा कि MPC 6 अप्रैल को रेपो दर को 6.5 फीसदी पर ही बरकरार रखने का विकल्प चुन सकती है। फरवरी में MPC के छह सदस्यों में से दो (आशिमा गोयल और जयंत वर्मा) ने रेपो दर को 25 बेसिस प्वाइंट बढ़ाने के फैसले के खिलाफ मतदान किया था। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि इस हफ्ते भी वे सदस्य इसी तरह का मतदान करेंगे। अब सवाल ये है कि क्या आशिमा गोयल और जयंत वर्मा के साथ कोई और आएगा? उनके साथी और एक्टर्नल मेंबर शशांक भिडे ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। अगर आशिमा गोयल और जयंत वर्मा को साथ कुछ और मेंबर जुड़ जाते हैं तो दरों में बढ़त पर लगान लग सकती है।
आरबीआई के अपने महंगाई पूर्वानुमान के मुताबिक 2023-24 में महंगाई 2-6 फीसदी की निर्धारित सीमा के भीतर रहेगी। सवाल ये है कि क्या आरबीआई ने आने वाले महीनों में महंगाई पर नकेल कसने के लिए पहले से ही मौद्रिक सख्ती करते हुए पर्याप्त उपाय किये हैं या नहीं? भारतीय स्टेट बैंक के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष ने मशीन लर्निंग के आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क मॉडल का उपयोग करते हुए चार अलग-अलग स्थितियों की परिकल्पना की है। इससे निकलकर आया है कि वर्तमान चक्र में रेपो दर अधिकतम 5.2-6.3 फीसदी की सीमा में रह सकती है।
सौम्य कांति घोष ने 27 मार्च 2023 को जारी अपने नोट में कहा है कि इन सभी परिस्थितियों में टर्मिनल रेट (उच्चतम दर) 6.5 फीसदी के आरबीआई के वर्तमान रेट से कम है। इसके अलावा आरबीआई महंगाई को रोकने के लिए दरों में पहले से ही काफी बढ़त कर चुका है। ऐसे में एक विराम लेकर दरों में अब तक की गई बढ़ोतरी के असर को जांचना एक बेहतर रणनीति होगी। गौरतलब है कि पिछले साल एमपीसी के एक मौजूदा सदस्य ने 6.5 फीसदी की टर्मिनल रेपो रेट की भविष्यवाणी भी की थी।
एमपीसी ने मांग को घटाने का काम किया या फिर महंगाई को कम करने के लिए पर्याप्त काम किया है, इसका सही अंदाजा किसी को नहीं है। लेकिन ये साफ है कि महंगाई को रोकना ही आरबीआई का एकमात्र उद्देश्य नहीं है। आरबीआई की प्राथमिका सूचि में ग्रोथ नीचे के पायदाम पर हो सकता है लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अच्छी खबर यह है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद आरबीआई का स्टॉफ भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साहित है।
मॉनीटरी पॉलिसी का एक और अहम लक्ष्य देश में वित्तीय स्थिरता बनाए रखना है। अमेरिका में हाल ही में बैंकिंग सेक्टर पर ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी का निगेटिव असर देखने को मिला है।
फाइनेंशियल सेक्टर की चिंताए पहले से ही मौद्रिक नीति पर प्रभाव डाल रही हैं। रिज़र्व बैंक ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया ने इस सप्ताह अपनी नकद दर को 3.6 फीसदी पर बरकरार रखा। रिज़र्व बैंक ऑफ़ ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि अमेरिका और स्विटज़रलैंड में हाल में देखने को मिले बैंकिंग संकट के चलते ब्याज दरों में बढ़ोतरी की नीति की समीक्षा की जरूरत है।
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि एमपीसी जो चाहे कर सकती है। उसके पास फैसले लेने का अधिकार है। अब देखना ये है कि क्या दरों में एक और बढ़ोतरी होगी या फिर हमें बढ़त के इस दौर में ठहराव आता दिखेगा!
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