खेती से जुड़ी अन्य आय पर टैक्स
अगर खेती के अलावा अन्य बिजनेस या नौकरी से इनकम हो, तो नियम बदलते हैं। कुल आय में खेती से बाहर की कमाई जोड़कर टैक्स कैलकुलेट होता है। इसे आंशिक इंटिग्रेशन ऑफ एग्रीकल्चरल इनकम कहा जाता है। यानी खेती के बाहर की कमाई पर टैक्स लग सकता है।
प्रोफेशनल खेती पर अलग नियम लागू होते हैं
अगर कोई व्यक्ति कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग या बड़ी कॉर्पोरेट फार्मिंग करता है। और उसकी कमाई बिजनेस इनकम की तरह होती है, तो टैक्स लगेगा। यह तब होता है जब खेती की गतिविधियां कम और प्रोसेसिंग ज्यादा हो। ऐसे मामलों में आय को बिजनेस इनकम माना जाता है।
खेती से मिली सब्सिडी या ग्रांट पर टैक्स नहीं
सरकार या राज्य सरकार से मिली सब्सिडी पूरी तरह टैक्स फ्री होती है। इसे आयकर कानून की धारा 10(1) के तहत छूट दी गई है। खेती के उपकरण या बीज पर मिलने वाली सब्सिडी भी इसमें आती है। यह लाभ किसानों की लागत कम करने के लिए दिया जाता है।
अगर जमीन लीज पर दी है तो नियम अलग होंगे
किसान अगर अपनी जमीन किराए पर देकर कमाई करता है। तो इस आय को किराये की आय माना जाएगा, न कि कृषि आय। ऐसी स्थिति में यह इनकम टैक्स के दायरे में आएगी। यानी खेती नहीं करने पर छूट का फायदा नहीं मिलेगा।
बागवानी और फॉरेस्ट प्रोडक्ट्स पर भी नियम अलग
जंगल से लकड़ी या पेड़-पौधों के उत्पाद बेचने से आय होती है। अगर यह प्राकृतिक रूप से हुआ है तो यह खेती की आय नहीं मानी जाएगी। इस आय पर टैक्स देना पड़ सकता है। केवल खेती करके की गई बागवानी की आय पर ही छूट है।
खेती की आमदनी पर नहीं लगता टैक्स
कृषि से होने वाली आमदनी को आयकर से छूट मिली हुई है। इसका मतलब है कि खेती-बाड़ी से हुई कमाई पर टैक्स नहीं देना पड़ता। यह छूट खेती की उपज बेचने पर मिलने वाली आय पर लागू होती है। यह प्रावधान किसानों को आर्थिक राहत देने के लिए बनाया गया है।
ITR फाइल करने की जरूरत कब पड़ती है
अगर गैर-कृषि आय बेसिक छूट सीमा से ज्यादा है। तो ऐसे किसान को ITR भरना अनिवार्य हो सकता है। कृषि आय जोड़कर टैक्स कैलकुलेट किया जाएगा। हालांकि खेती की आय पर टैक्स नहीं लगता।
दस्तावेज और सबूत रखना जरूरी है
कृषि आय दिखाने के लिए खेत की जानकारी और बिक्री के बिल रखें। अगर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट सबूत मांगे तो यह काम आएंगे। खासकर तब जब किसान की अन्य सोर्स से भी आय हो। सही दस्तावेज रखने से टैक्स विवाद से बचा जा सकता है।