यूनाइटेड किंगडम (UK) के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अब सांसदी भी छोड़ दी है। उन्होंने 9 जून को ब्रिटिश संसद का सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह इस्तीफा अपने खिलाफ चल रही एक जांच के विरोध में दिया है। उनके खिलाफ इस मामले की जांच चल रही थी कि क्या कोरोना महामारी के दौरान डाउनिंग स्ट्रीट में पार्टी की लेकिन इसे लेकर हाउस ऑफ कॉमन्स यानी संसद को गुमराह किया कि लॉकडाउन के सभी नियमों का पालन हो रहा है। इस पार्टीगेट मामले में उन्होंने संसदीय समिति की रिपोर्ट आने के बाद संसद की सदस्यता इस्तीफा दिया है।
सांसदों पर लगाया 'Kangaroo Court' चलाने का आरोप
ब्रिटेन के पूर्व पीएम बोरिस जॉनसन को जांच समिति की तरफ से एक गोपनीय पत्र मिला। इसे लेकर उन्होंने अपनी जांच कर रहे सांसदों पर कंगारू कोर्ट की तरह काम करने का आरोप लगाया। बोरिस ने कहा कि उनके राजनीतिक कैरियर को खत्म करने की कोशिश हो रही है। उनका कहना है कि मुट्ठी भर लोग उन्हें मजबूर कर रहे हैं लेकिन उनके पास अपने दावे का कोई सबूत नहीं है। इसके बावजूद बोरिस ने इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि सांसद उनकी जांच कर रहे हैं और अगले साल चुनाव होने की संभावना है जिससे पहले कंजर्वेटिव पार्टी में मतभेद दिख रहे हैं। हालांकि उन्होंने इस्तीफा देते हुए कहा कि वह 'अभी के लिए' संसद छोड़ रहे हैं जिससे अनुमान लगाया जा रहा है कि वह फिर से राजनीति में लौट सकते हैं।
22 साल लंबा रहा है अब तक का राजीनितक कैरियर
बोरिस जॉनसन पहली बार 2001 में हेनले से सांसद बने थे। इसके बाद 2008 में वह लंदन के मेयर बने। 2016 में उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ (EU) से ब्रिटेन को बाहर लाने के कैंपेन में बाकी नेताओं के साथ मिलकर काम किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ईयू से बाहर आने के खिलाफ थे लेकिन जब 23 जुलाई 2016 को जनमत ब्रेग्जिट के पक्ष में आया तो कंजर्वेटिव नेता कैमरून ने इस्तीफा दे दिया । फिर थेरेसा मे प्रधानमंत्री बनीं जिनके नेतृत्व में 2016 में बोरिस विदेश सचिव बने। बोरिस ने जुलाई 2018 में थेरेसा की ब्रेग्जिट के बाद भी ईयू से मजबूत संबंध बनाए रखने की स्ट्रैटजी का विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया। 7 नवंबर 2019 को थेरेसा ने ब्रेग्जिट सौदा पूरे करने में असफलता को लेकर इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद 23 जुलाई 2019 को कंजर्वेटिव पार्टी ने बोरिस को अपना नेता चुना और उन्होंने अगले दिन प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। बोरिस ने जोर दिया कि 31 अक्टूबर तक कोई सौदा हो या न हो, ब्रिटेन ईयू छोड़ देगा और इसके लिए उन्होंने विपक्ष की तरफ से किसी विरोध प्रस्ताव से बचने के लिए 28 अगस्त 2019 को अक्टूबर के मध्य तक संसद बंद करने का ऐलान किया। हालांकि 24 सितंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया। 19 अक्टूबर 2019 को बोरिस ने ईयू से ब्रेग्जिट को टालने को कहा और डेडलाइ 31 जनवरी 2020 फिक्स की गई। इसके बाद बोरिस ने अपनी ब्रेग्जिट योजना पर जनमत हासिल करने के लिए 6 नवंबर 2019 को संसद भंग कर दिया और समय से पहले ही दिसंबर के मध्य में चुनाव तय हो गए। इसमें बोरिस को मार्गेट थैचर के बाद सबसे बड़ी जीत हासिल हुई। ब्रेग्जिट डील 23 जनवरी 2020 को ब्रिटिश संसद से पास होने के बाद कानून बन गया।
अब तक बोरिस मजबूत बने रहे। हालांकि कोरोना महामारी ने स्थितियां बिगाड़ दी। 23 मार्च 2020 को पहली बार यूके में कोरोना के चलते लॉकडाउन लगा। बोरिस को कोरोना के चलते अस्पताल में अगले महीने भर्ती किया गया था और एक हफ्ते बाद डिस्चार्ज किया गया। अगले साल 30 नवंबर 2021 को ये आरोप सामने आए कि सरकारी अधिकारियों ने नवंबर और दिसंबर 2020 के दौरान सरकारी कार्यालयों में करीब एक दर्जन पार्टियों में भाग लिया और कोविड-19 लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन किया। बोरिस ने इन सभी आरोपों से इनकार किया लेकिन विपक्ष ने कड़ी आलोचना की।
इन पार्टियों में से एक में शामिल होने पर बोरिस पर 12 अप्रैल 2022 को बोरिस पर 50 पौंड्स (5181.91 रुपये) का जुर्माना लगाया गया। विपक्ष ने आरोप लगाया कि पहली बार किसी ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने पद पर रहते हुए कानून तोड़ा है। बोरिस ने इस पर माफी मांगी लेकिन यह भी कहा कि उन्हें नहीं पता था कि वह कानून तोड़ रहे हैं। इस मामले में 29 जून को कई पार्टियों की एक कमेटी ने यह जांच शुरू की कि क्या बोरिस ने लॉकडाउन में आयोजित पार्टी को लेकर संसद को गुमराह किया? बोरिस को क्रिस पिंचर को चीफ व्हिप बनाने के एक दूसरे मामले में 6 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। 3 मार्च 2023 को पार्टीगेट मामले में ब्रिटिश संसदीय कमेटी ने कहा कि सबूतों के मुताबिक बोरिस ने बार-बार संसद को गुमराह किया लेकिन बोरिस इसे मानने से इनकार करते रहे। हालांकि आज कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद उन्हें अपनी सांसदी भी छोड़नी पड़ी।