इंडिया में लाखों लोगों के लिए हाउस प्रॉपर्टी (House Property) इनकम का एक बड़ा स्रोत है। हाउस प्रॉपर्टी से होने वाली इनकम पर इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के तहत टैक्स लगता है। प्रॉपर्टी के लीगल ओनर जिसे पेमेंट मिलता है, उसे टैक्स चुकाना पड़ता है। हाउस प्रॉपर्टी आपका घर, ऑफिस, दुकान या किसी जमीन से जुड़ी जमीन हो सकती है। यह ध्यान में रखने वाली बात है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी और कमर्शियल प्रॉपर्टी में अंतर नहीं करता है। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
सभी तरह की प्रॉपर्टी पर इनकम टैक्स रिटर्न में 'इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी' के तहत टैक्स लगता है। अगर कोई प्रॉपर्टी बिजनेस या किसी दूसरे पेशे के लिए इस्तेमाल की जाती है तो उस पर 'इनकम फ्रॉम बिजनेस एंड प्रोफेशन' हेड के तहत टैक्स लगता है। हाउस प्रॉपर्टी कैटेगरी के तहत जो प्रॉपर्टी आती है उसकी टैक्सेबल वैल्यू प्रॉपर्टी की एनुअल वैल्यू मानी जाती है।
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 22 और 27 का संबंध हाउस प्रॉपर्टी से इनकम पर टैक्स के नियमों से है। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 24 में कहा गया है कि 'इनकम फ्रॉम हाउस प्रॉपर्टी' से होने वाली इनकम का कैलकुलेशन आपको मिलने वाली रेंट पर 30 फीसदी स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद होता है। स्टैंडर्ड डिडक्शन के अलावा आपको लिए गए लोन पर भी डिडक्शन क्लेम करने की इजाजत है। यह लोन प्रॉपर्टी खरीदने, कंस्ट्रक्शन, रिनोवेशन या रिपेयरिंग के लिए हो सकता है। अगर घर सेल्फ-ऑक्युपायड है तो आप एक साथ दो सेल्फ-हाउस प्रॉपर्टीज के लिए मैक्सिमम 2 लाख रुपये डिडक्शन का दावा कर सकते हैं।
ज्वाइंट लोन पर क्लेम से जुड़े नियम
प्रॉपर्टी की एनुअल वैल्यू को हाउस प्रॉपर्टी की इनकम के रूप में लिया जाता है और उसके आधार पर टैक्स का कैलकुलेशन होता है। अगर पति और पत्नी ने ज्वाइंट होम लोन लिया है तो दोनों (पति और पत्नी) होम लोन के प्रिंसिपल और इंटरेस्ट पर डिडक्शन क्लेम कर सकते हैं।