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Bank Fraud: 47 चेक पर जाली सिग्नेचर कर बैंक ऑफ बड़ौदा से निकाले पैसे! लापरवाही BOB को पड़ी भारी, ग्राहक को 6% इंटरेस्ट के साथ देना होगा पैसा

Bank Fraud: 47 चेक पर जाली सिग्नेचर कर ग्राहक के बैंक अकाउंट से पैसे निकाले गए। बैंक ने इस गलती के लिए ग्राहक को जिम्मेदार ठहराया। हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि अगर बैंक जाली सिग्नेचर वाला चेक क्लियर करता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी बैंक की होगी। जानिये क्या है पूरा मामला

MoneyControl Newsअपडेटेड Jun 27, 2025 पर 2:18 PM
Bank Fraud: 47 चेक पर जाली सिग्नेचर कर बैंक ऑफ बड़ौदा से निकाले पैसे! लापरवाही BOB को पड़ी भारी, ग्राहक को 6% इंटरेस्ट के साथ देना होगा पैसा
HighCourt: अगर बैंक जाली सिग्नेचर वाला चेक क्लियर करता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी बैंक की होगी।

अगर आपने कभी बैंक में चेक जमा किया हो और आपके मन में यह डर रहा हो कि कहीं कोई जाली सिग्नेचर वाला चेक आपके खाते से पैसे न निकाल ले? तो अब राहत की खबर है। केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ कर दिया है कि अगर बैंक जाली सिग्नेचर वाला चेक क्लियर करता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी बैंक की होगी। कोर्ट ने यह भी कहा है कि ग्राहक की थोड़ी-बहुत लापरवाही भी बैंक की गलती को नहीं ढक सकती। केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बड़े बैंक धोखाधड़ी मामले में ग्राहकों के हक में अहम फैसला सुनाया है। यह पूरा मामला 47 चेक से जुड़ा है जिन पर जाली सिग्नेचर करके पैसे निकाले गए थे। इसमें से 32 चेक थर्ड पार्टी को दिए गए, जिससे पैसे वापस मिलना मुश्किल हो गया, जबकि 15 अकाउंट-पेयी चेक थे, इसलिए उनका पैसा वापस लाया जा सका।

इस धोखाधड़ी की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि तीन महीने तक न तो बैंक और न ही ग्राहक इसे पकड़ पाए। जब तक सच्चाई सामने आई, तब तक कई ग्राहक लाखों रुपये गंवा चुके थे और उन्हें कोर्ट में शिकायत दर्ज करनी पड़ी।

बैंक ने पहले अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि चेक प्रोसेस करते समय सभी जरूरी प्रक्रिया पूरी की गई थी। लेकिन केरल हाई कोर्ट ने बैंक की यह दलील खारिज कर दी और आदेश दिया कि सभी प्रभावित ग्राहकों को उनकी पूरी रकम 6% सालाना ब्याज के साथ लौटाया जाए। यह मामला पहले विजया बैंक से जुड़ा था लेकिन उसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा से जुड़ गया, क्योंकि विजया बैंक का मर्जर बैंक ऑफ बड़ौदा में हो गया था।

ग्राहकों ने इस धोखाधड़ी की जांच रिपोर्ट आरटीआई के जरिए हासिल की थी। इस रिपोर्ट में साफ बताया गया कि जिन चेक पर सिग्नेचर किए गए थे, वे बैंक में रखे गए सैंपल सिग्नेचर से मेल नहीं खाते थे। कुछ मामलों में तो सैंपल सिग्नेचर बैंक में मौजूद ही नहीं थे। बैंक ने इस रिपोर्ट को भी खारिज करने की कोशिश की और कहा कि रिपोर्ट बनाने वाले अधिकारी ने सही प्रोसेस का पालन नहीं किया। लेकिन कोर्ट ने यह दलील भी मानने से इनकार कर दिया।

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