दो बड़े बैंक एंप्लॉयीज यूनियन ने विलफुल डिफॉल्ट मामलों पर RBI के हालिया फैसले का विरोध किया है। केंद्रीय बैंक ने विलफुल लोन डिफॉल्ट के मामलों का सेटलमेंट बातचीत के जरिए करने की इजाजत दी है। यूनियंस ने कहा है कि RBI को अपने इस फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए और वापस लेना चाहिए। उनका मानना है कि केंद्रीय बैंक के इस फैसले से बैंकिंग सिस्टम की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा। पिछले हफ्ते आरबीआई ने बैंकों के लिए एक फ्रेमवर्क जारी किया था। इसका संबंध टेक्निकल राइट-ऑफ और कंप्रोमाइज सेटलमेंट से था। इसके दायरे में फ्रॉड और विलफुल डिफॉल्टर्स भी शामिल हैं। विलफुल डिफॉल्टर्स का मतलब ऐसे लोगों से है, जो जानबूझ कर बैंकों को लोन के पैसे नहीं लौटाते हैं।
कंप्रमाइज सेटलमेंट का मतलब क्या?
कंप्रमाइज सेटलमेंट (Compromise Settlement) का मतलब लोन के निपटारे से है, जिसमें लोन लेने वाला बैंक के क्लेम को चुकाकर मामला सेटल कर देता है। इसमें वह बैंक को लोन के कुल बकाया अमाउंट और उस पर इंटरेस्ट का पेमेंट नहीं करता है। विलफुल डिफॉल्टर लोन नहीं चुकाने वाले ऐसे व्यक्ति या कंपनी को कहते हैं जिसके पास लोन चुकाने की क्षमता होती है, लेकिन वह बैंक को पैसे नहीं लौटाना चाहता है।
बैंक यूनियंस ने क्या कहा?
All India Bank Officers' Confederation (AIBOC) और All India Bank Employees' Association (AIBEA) ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Twitter पर एक ज्वाइंट स्टेटमेंट पोस्ट किया है। इसमें आरबीआई के फैसले के बारे में कहा गया है, "यह न सिर्फ बेइमान बॉरोअर्स को प्रोत्साहित करता है बल्कि यह ईमानदर बॉरोअर्स को हतोत्साहित करता है, जो अपनी वित्तीय जिम्मेदारी पूरी करने की कोशिश करते हैं।"
कंप्रमाइज सेटलमेंट के नुकसान
बयान में यह भी कहा गया है कि फ्रॉड अकाउंट का कंप्रमाइज न्याय और जिम्मेदारी के सिद्धांत का अपमान है। RBI का यह फैसला चौंकाने वाला है। इस तरह के सेटलमेंट की इजाजत देकर आरबीआई विलफुल डिफॉल्टर्स के गलत काम को माफ करने का मौका दे रहा है। इससे ऐसे गलत कामों के चलते बैंक एंप्लॉयी पर बोझ बढ़ता है। दरअसल, लोन का रिपेमेंट नहीं होने से बैंकों का एनपीए बढ़ता है। इसका असर एक तरफ लोन देने की उनकी क्षमता और मुनाफे पर पड़ता है। दूसरी तरफ ऐसे लोन की वसूली के लिए बैंक अपने एंप्लॉयीज पर दबाव बढ़ाते हैं।