इस साल तमाम देशों की करेंसी में अस्थिरता का दौर है। रुपया भी लगातार कमजोर हो रहा है। ऐसे में लंदन से सिंगापुर तक के करेंसी ट्रेडर्स की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि रिजर्व बैंक कब रुपये को लेकर अपनी नीतियों में थोड़ी ढील देगा। पिछले एक महीने में डॉलर के मुकाबले रुपये में काफी कमजोरी देखने को मिली है। डॉलर के मुकाबले रुपया जून में 2005 के बाद गिरावट के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया।
ऐसे में निवेशकों के मन में रुपये को लेकर कई सवाल हैं। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये पर कंट्रोल बनाए रखा है। रिजर्व बैंक इस साल पहले ही अपने खजाने में 32 अरब डॉलर जोड़ चुका है। केंद्रीय बैंक ने रुपये को स्थिरता प्रदान करने के लिए काफी हद तक फॉरेन फंड को बनाए रखा है। साथ ही, इस साल के पहले चार महीनों में RBI के डॉलर फॉरवर्ड बुक में तकरीबन 10 अरब डॉलर की बढ़ोतरी हुई है। ब्रोकरेज हाउस सिटीग्रुप के मुताबिक, रुपये को स्थिर बनाने के लिए रिजर्व बैंक की कोशिशों का मकसद इंटरनेशनल ट्रेड करेंसी के तौर पर इसकी स्वीकार्यता बढ़ाना है।
ICICI सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के अर्थशास्त्री अभिषेक उपाध्याय ने बताया, 'फिक्स्ड इनकम इनवेस्टर्स भारत में ट्रेडिंग के लिए स्थिर माहौल की तलाश में हैं और जो लोग यह मानते हैं कि डॉलर भी कमजोर हो सकता है, उनके लिए रुपये में लॉन्ग टर्म दांव लगाना सबसे सीधा रास्ता है। ट्रेडर ज्यादा वॉल्यूम चाहते हैं। यहां तक कि इनवेस्टर्स इस बात के लिए लंबा इंतजार करने को तैयार हैं कि रिजर्व बैंक रुपये को थोड़ा ढीला छोड़े।'
इस साल रुपये में मजबूती नहीं के बराबर रही है, जबकि इसकी प्रतिद्वंद्वी इंडोनेशियाई मुद्रा में 3 पर्सेंट तक की मजबूती आई है। रिजर्व बैंक का कहना है कि रुपये की अस्थिरता को रोकने के लिए वह हस्तक्षेप करता है। डॉलर के मुकाबले रुपया 12 जुलाई को 0.1 की मजबूती के साथ 82.30 के स्तर पर कारोबार कर रहा था।
मैक्रो इकनॉमिक मोर्चे पर बेहतर संकेतों की वजह से एमएंडजी इनवेस्टमेंट्स इंक (M&G Investments Inc.) से लेकर टी रो प्राइस ग्रुप इंक (T. Rowe Price Group Inc.) जैसे इनवेस्टर्स भी रुपये को लेकर पॉजिटिव हैं। M&G में फिक्स्ड इनकम के एशिया पैसिफिक हेड गुआन यी लो (Guan Yi Low) ने बताया, 'भारत का बैलेंस ऑफ पेमेंट सरप्लस में पहुंच गया है। ग्लोबल सप्लाई चेन की जगह बदलने से भी भारत को फायदा हुआ है। आने वाले वर्षों के लिए भारत का ग्रोथ आउलुक बेहतर है और हम रुपये को लेकर पॉजिटिव हैं।'
सिटीग्रुप में अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती ने बताया, 'रिजर्व बैंक शायद करेंसी की स्थिरता को भी उतनी अहमियत दे रहा है, जितना वह कीमतों की स्थिरता और वित्तीय स्थिरता को देता है।' सिटीग्रुप के मुताबिक हालांकि, स्थिरता या कम उतार-चढ़ाव के अपने खतरे हैं। ऐतिहासिक तौर पर देखा जाए, तो रुपया में लंबे समय तक स्थिरता होने के बाद कभी-कभी कमजोरी का सिलसिला शुरू हो जाता है। दरअसल, स्थिरता की वजह से रुपये पर निगरानी में चूक हो जाती है।