सरकार ने क्यों बढ़ाई इनकम टैक्स ऑडिट की डेडलाइन, किसे मिलेगा फायदा? जानिए डिटेल

Income tax audit deadline: CBDT ने टैक्सपेयर्स को राहत देते हुए इनकम टैक्स ऑडिट और रिटर्न फाइलिंग की डेडलाइन बढ़ा दी है। जानिए किस वजह से बढ़ाई गई डेडलाइन। साथ ही, किन कारोबार और प्रोफेशनल्स के लिए ऑडिट कराना जरूरी है और किन्हें छूट मिलेगी।

अपडेटेड Oct 30, 2025 पर 4:32 PM
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जिन कारोबारों या प्रोफेशनल्स की आमदनी तय सीमा से ज्यादा होती है, उन्हें टैक्स ऑडिट कराना जरूरी होता है।

Income tax audit deadline: सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने असेसमेंट ईयर 2024-25 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न और ऑडिट रिपोर्ट जमा करने की तारीखें बढ़ा दी हैं। देशभर से टैक्स प्रोफेशनल्स सरकार से लगातार मांग कर रहे थे कि टैक्स कम्प्लायंस पूरा करने के लिए थोड़ा और समय दिया जाए। इसके चलते तारीख बढ़ाकर टैक्सपेयर्स को राहत दी गई है।

क्यों बढ़ानी पड़ी ऑडिट डेडलाइन

सरकार पहले ही एक महीने की मोहलत दे चुकी थी। हालांकि, कई राज्यों से बताया गया कि हाल की बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं से मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। इससे डेटा एक्सेसऔर अकाउंटिंग का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ।


इन परेशानियों को देखते हुए CBDT ने अब टैक्स ऑडिट रिपोर्ट की डेडलाइन 10 नवंबर 2025 तक कर दी है। साथ ही, ऑडिट मामलों के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की तारीख 10 दिसंबर 2025 कर दी है।

टैक्स ऑडिट किसके लिए जरूरी?

इनकम टैक्स एक्ट की धारा 44AB के तहत, जिन कारोबारों या प्रोफेशनल्स की आमदनी तय सीमा से ज्यादा होती है, उन्हें टैक्स ऑडिट कराना जरूरी होता है।

क्लियरटैक्स की टैक्स एक्सपर्ट सीए शेफाली मुंद्रा बताती हैं, 'ज्यादातर बिजनेस को टैक्स ऑडिट तब कराना पड़ता है जब टर्नओवर ₹1 करोड़ से ज्यादा हो। लेकिन अगर कुल ट्रांजेक्शन में नकद रसीदें और भुगतान 5% या उससे कम हैं, तो यह सीमा ₹10 करोड़ तक बढ़ जाती है। वहीं डॉक्टर, वकील या कंसल्टेंट जैसे प्रोफेशनल्स के लिए यह नियम तब लागू होता है जब उनकी सालाना आय ₹50 लाख से अधिक हो।'

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जो टैक्सपेयर्स सेक्शन 44AD या 44ADA के तहत प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन स्कीम चुनते हैं, उन्हें आम तौर पर ऑडिट से छूट होती है। लेकिन अगर वे निर्धारित दर से कम मुनाफा दिखाते हैं या उनका टर्नओवर सीमा से ऊपर जाता है, तो उन्हें ऑडिट कराना ही पड़ता है।

छोटे टैक्सपेयर्स में आम गलतफहमियां

टैक्स एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कई छोटे कारोबारी और प्रोफेशनल्स डिजिटल और कैश ट्रांजेक्शन के फर्क को लेकर उलझन में रहते हैं। मुंद्रा बताती हैं, 'कई लोग समझते हैं कि केवल UPI या कार्ड से किए गए भुगतान ही डिजिटल माने जाते हैं, जबकि नॉन-अकाउंट पेयी चेक भी कैश ट्रांजेक्शन की श्रेणी में आते हैं।'

उन्होंने कहा कि इसी तरह, प्रिजम्प्टिव टैक्सेशन लेने वाले भी पूरी तरह ऑडिट से नहीं बचते। अगर उनका मुनाफा डिजिटल ट्रांजेक्शन पर 6% या कैश ट्रांजेक्शन पर 8% से कम है और कुल आय टैक्स छूट सीमा से ऊपर चली जाती है, तो ऑडिट जरूरी हो जाता है।

अब टैक्सपेयर्स को क्या करना चाहिए

टैक्स ऑडिट की डेडलाइन बढ़ने से टैक्सपेयर्स को अपने रिकॉर्ड मिलाने और फाइलिंग पूरी करने के लिए अतिरिक्त समय मिल गया है, खासकर बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित इलाकों में।

हालांकि, टैक्स एक्सपर्ट की सलाह है कि आखिरी हफ्ते तक इंतजार न करें। सिस्टम पर लोड बढ़ने या गलती होने से बचने के लिए फाइलिंग पहले ही पूरी कर लेना समझदारी होगी।

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