भारत के हाई नेटवर्थ हाउसहोल्ड (High Net Worth Households) यानी संपन्न परिवारों की ज्यादातर दौलत अब भी रियल एस्टेट (Real Estate) में लगी है। वहीं, इक्विटी (Equities) या शेयर मार्केट में निवेश दूसरे नंबर पर है। इनमें से ज्यादातर लोग अपने निवेश पर मिले रिटर्न (Investment Returns) से खुश नहीं है।
यह खुलासा हुआ है मार्सेलस वेल्थ मैनेजमेंट (Marcellus Wealth) और डन एंड ब्रैडस्ट्रीट (Dun & Bradstreet) के मिलकर किए गए Marcellus India Wealth Survey में। हाई नेटवर्थ हाउसहोल्ड का मतलब अमूमन ऐसे परिवारों से लगाया जाता है, जिनकी निवेश लायक संपत्ति 5 करोड़ रुपये या इससे अधिक होती है।
निवेश से संतुष्टि नहीं, बचत भी कम
इस सर्वे में देश के मेट्रो और टियर-1 और टियर-2 शहरों के 465 हाई नेटवर्थ हाउसहोल्ड की राय ली गई। इसमें से 40% ने बताया कि वे बीते 5 साल के ऐतिहासिक बुल मार्केट के बावजूद अपने निवेश रिटर्न से नाखुश हैं।
मार्सेलस वेल्थ के COO मनीष हेमनानी (Manish Hemnani) के अनुसार, 30 से 45 साल की उम्र के लगभग आधे अमीर भारतीय टैक्स के बाद की आय का 20% से भी कम बचा पाते हैं। वहीं, उनके लक्ष्य काफी बड़े हैं। जैसे कि जल्दी रिटायरमेंट लेना, घर खरीदना, बच्चों की पढ़ाई और शादी का खर्च, और खुद का बिजनेस शुरू करना।
रियल एस्टेट में ओवर-एक्सपोजर
सर्वे में शामिल आधे से ज्यादा लोगों के पोर्टफोलियो में 20% से ज्यादा हिस्सा रियल एस्टेट (प्राइमरी होम को छोड़कर) में लगा हुआ है। वहीं इक्विटी निवेश दूसरे नंबर पर आता है।
14% रिस्पॉन्डेंट ने बताया कि उनके पास कोई इमरजेंसी फंड (Emergency Fund) नहीं हैं। और 23% ऐसे हैं, जो अंतरराष्ट्रीय निवेश विकल्पों (Global Investment Options) से पूरी तरह अनजान हैं।
कर्ज और निवेश समझदारी की कमी
सर्वे में शामिल 40% लोगों ने माना कि वे किसी न किसी तरह का ओपन लोन लिए हुए हैं, जिनमें होम लोन प्रमुख है। वहीं, 10% ने माना कि उन पर भारी कर्ज बोझ है।
30% लोगों ने बचत की अनुशासनहीनता (lack of saving discipline) को समस्या माना और 20% ने माना कि उन्हें निवेश विकल्पों की पूरी जानकारी नहीं है।
सलाह तो लेते हैं, लेकिन भरोसा नहीं
87% हाई नेट वर्थ वाले वित्तीय सलाह (Financial Advice) के लिए बाहरी एक्सपर्ट पर निर्भर हैं। जैसे कि वेल्थ मैनेजर्स, बैंक रिलेशनशिप मैनेजर्स या परिवार। लेकिन, दो-तिहाई लोग सलाह से खुश नहीं हैं। उनकी मुख्य शिकायत है कि सलाह एकतरफा होती है। यह हर इंडिविजुअल की जरूरतों के अनुसार नहीं दी जाती और उनके फाइनेंशियल गोल्स से भी मेल नहीं खाती।
मार्सेलस के को-फाउंडर सौरभ मुखर्जी (Saurabh Mukherjea) ने कहा कि भारत में अभी भी निवेशकों की मानसिकता बदलाव के दौर में है। अमीर भारतीय अभी भी जोखिम और लिक्विडिटी के बीच संतुलन बनाना सीख रहे हैं। खासतौर, पर ऐसे समय में जब ब्याज दरें बढ़ रही हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था अनिश्चितताओं से घिरी है।
मुखर्जी ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में माता-पिता अक्सर बच्चों की शादी के लिए बचत करते हैं, जो पश्चिमी देशों में कम देखा जाता है। इसका मतलब है कि भारत में बचत के उद्देश्य में सांस्कृतिक पहलू भी शामिल है, जिसका निवेश और लॉन्ग-टर्म सेविंग्स पर पड़ता है।