लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों ने सरकार के उस प्रस्ताव पर चिंता जाहिर की है जिसमें प्राइवेट बीमा कंपनियों के लिए फ्री-लुक पीरियड (FLP) को 30 दिनों से बढ़ाकर 1 साल करने की बात कही गई है। कंपनियों का कहना है कि अगर यह प्रस्ताव लागू होता है तो इससे वित्तीय नुकसान हो सकता है और इन नीतियों का गलत तरीके से इस्तेमाल भी हो सकता है। अभी की बात करें तो एलआईसी (LIC) जैसी सरकारी जीवन बीमा कंपनी ऑफलाइन तरीके से खरीदी गई पॉलिसी पर 15 दिनों का और ऑनलाइन तरीके से खरीदी गई पॉलिसी पर 30 दिनों का फ्री-लुक पीरियड देती हैं।
क्या है Free-Look Period?
FLP एक ग्रेस पीरियड है, जिसके दौरान पॉलिसीहोल्डर्स को अगर बीमा पॉलिसी पसंद नहीं आती हैं तो उसे रद्द कराया जा सकता है। भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के निर्धारित नियमों के मुताबिक पॉलिसी रद्द करने पर पॉलिसीहोल्डर्स को स्टांप ड्यूटी और मेडिकल टेस्ट से जुड़े खर्चों को घटाकर बाकी पैसा वापस मिल जाता है। इससे पॉलिसीहोल्डर्स को अगर लगता है कि उन्हें गलत तरीके से पॉलिसी बेची गई है तो वे बिना सरेंडर शुल्क के अपनी पॉलिसी रद् करा सकते हैं।
इंडस्ट्री को सरकार के प्रस्ताव से क्यों है परेशानी?
सरकार ने हाल ही में यह प्रस्ताव दिया था कि निजी बीमा कंपनियों के लिए फ्री-लुक पीरियड को 30 दिनों से बढ़ाकर एक साल किया जाए, ताकि नीतियों के गलत तरीके से बेचे जाने पर रोक लगाई जा सके। बीमापे फिनश्योर के फाउंडर और सीईओ हनुत मेहता का कहना है कि यह प्रस्ताव लागू हो जाता है तो लाइफ इंश्योरेंस के लिए इस पीरियड को बढ़ाकर एक साल करना सही हो सकता है लेकिन हेल्थ इंश्योरेंस के लिए ऐसा सही नहीं होगा क्योंकि यह हर साल रिन्यू होता है।
इंश्योरेंस पॉलिसीज में एजेंट्स को 40 फीसदी तक कमीशन मिलता है। इसके अलावा मार्केटिंग और प्रशासनिक खर्चे भी हैं। बीमा कंपनियों का कहना है कि अगर एक साल तक का फ्री लुक पीरियड हो जाएगा तो इन खर्चों को कवर करना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा पर्सिस्टेंसी रेटिंग पर भी निगेटिव असर पड़ सकता है जो यह ट्रैक करता है कि कितने प्रतिशत पॉलिसीहोल्डर्स समय के साथ अपनी पॉलिसी बनाए रखते हैं। एक और दिक्कत ये है कि इस पीरियड के बढ़ने पर एजेंट्स पॉलिसीहोल्डर्स को पुरानी पॉलिसी रद्द कर नई पॉलिसी लेने को प्रोत्साहित कर सकते हैं।