कैपटल गेंस टैक्स (Capital Gains Tax) के नियमों में आपको बड़ा बदलाव दिख सकता है। सरकार (Finance Ministry) ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। अगले साल बजट (Budget) में इसका ऐलान हो सकता है। दरअसल, सरकार अपना रेवेन्यू बढ़ाना चाहती है। उसे वेलफेयर स्कीम पर खर्च करने के लिए पैसा चाहिए। उधर, कैपिटल गेंस टैक्स के मौजूदा नियमों में कई खामियां हैं। अंग्रेजी बिजनेस न्यूज वेबसाइट मिंट ने यह खबर दी है।
वित्त मंत्रालय में कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों की समीक्षा हो रही है। सरकार का यह मानना है कि कैपिटल मार्केट से होने वाली पैसिव इनकम पर टैक्स की दर बिजनेस इनकम के मुकाबले कम नहीं होनी चाहिए। इसकी वजह यह है कि बिजनेस से कई तरह के रिस्क जुड़े होते हैं। उधर, बिजनेस शुरू होने से रोजगार के मौके बढ़ते हैं।
एक सूत्र ने मिंट को बताया, "कैपिटल गेंस टैक्स स्ट्रक्चर में बदलाव के लिए कानून में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। इसलिए सरकार अगले बजट में इस प्रस्ताव को पेश करना चाहती है।" अभी अलग-अलग एसेट पर कैपिटल गेंस के नियम अलग-अलग है। इससे लोगों में काफी कनफ्यूज रहता है।
स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड कंपनियों के शेयरों को एक साल से ज्यादा टाइम तक रखने पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगता है। इसका रेट 10 फीसदी है। हालांकि, एक वित्त वर्ष में एक लाख रुपये से ज्यादा की इनकम पर ही यह टैक्स लगता है। यह प्रावधान 1 अप्रैल, 2019 से लागू है।
कैपिटल गेंस टैक्स की दर तय करने का आधार टाइम को बनाया गया है। इसे दो हिस्सों-शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स में बांटा गया है। लिस्टेड कंपनियों के शेयरों से हुई इनकम पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स तब लगता है, आप शेयर खरीदने के एक साल के पहले बेच देते हैं। इसकी दर 15 फीसदी है। अनलिस्टेड शेयरों के मामले में टैक्स की दर आपके स्लैब पर डिपेंड करती है।
इस साल रेवेन्यू सेक्रेटरी तरूण बजाज ने कहा था कि कैपिटल टैक्स स्ट्रक्चर बहुत कॉम्प्लेक्स हो गया है। उन्होंने इसे आसान बनाने की जरूरत बताई थी। बजट के बाद इंडस्ट्री के प्रतिनिधियों से बातचीत में उन्होंने कहा था कि वित्त वर्ष 2019-20 में शेयरों से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस चुकाने में 80 फीसदी हिस्सेदारी उन लोगों की थी, जिनकी इनकम 50 लाख या इससे ज्यादा थी।
कई देशों में लॉन्ग टर्म कैपिटल गैंस टैक्स की दर 25 से 30 फीसदी के बीच है या टैक्सपेयर के इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से लगता है। टैक्स की दर ज्यादा होने से इनवेस्टमेंट अट्रैक्ट करने में दिक्कत आती है।