अप्रैल का महीना शुरू हो चुका है। इसके साथ ही दो ऐसे बड़े बदलाव लागू हो चुके हैं, जिनका असर बिजनेस के तरीके पर पड़ेगा। दरअसल, मैं आपको ऐसे दो बदलाव के बारे में बताना चाहता हूं, जो 1 अप्रैल, 2023 से लागू हो चुके हैं। इनका संबंध ज्यादातर बिजनेस ऑर्गेनाइजेशंस से है। आइए जानते हैं ये बदलाव क्या हैं:
1. कंपनियों के लिए अनिवार्य ऑडिट ट्रेल
मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स (MCA) ने कंपनीज एक्ट 2013 तहत रजिस्टर्ड सभी कंपनियों के लिए एक नया नियम लागू किया है। इसमें कहा गया है कि कंपनियों को सभी ट्रांजेक्शंस का ऑडिट ट्रेल (Edit Log) अपनी बुक्स ऑफ अकाउंट्स में अनिवार्य रूप से मेंटेन (Maintain) करना होगा। इस बदलाव को फाइनेंशियल ईयर 2021 से लागू करने का प्रस्ताव था। लेकिन, इसे पहले 1 अप्रैल, 2022 और फिर 1 अप्रैल 2023 तक टाल दिया गया था। 24 मार्च, 2021 को जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, कंपनीज (ऑडिट एंड ऑडिटर्स) अमेंडमेंट रूल्स, 2021, कंपनियों के वैधानिक ऑडिटर्स को अब ये बताना होगा:
उपर्युक्त नियम का मतलब यह है कि जो कंपनियां कंप्यूटर सॉफ्टवेयर पर अपने अकाउंट्स मेंटेन करती हैं उन्हें रियल टाइम बेसिस पर अपने अकाउंट्स मेंटेन करना होगा और अब अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर हर ट्रांजेक्शन का रिकॉर्ड रखेगा। इनमें बुक्स ऑफ अकाउंट्स में एंट्री की तारीख, अकाउंटिंग एंट्री में किसी तरह का बदलाव, अथॉराइजेशंस और एप्रूवल्स, एक्सेस की तारीख और समय आदि शामिल होंगे। नियमों के मुताबिक, कंपनियों को अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर में ऑडिट ट्रेल फीचर को डिसेबल (disable) करने की इजाजत नहीं होगी। इससे बैक डेट एंट्री और एंट्री में बदलाव करने के मामलों पर रोक लगेगी। कई कंपनियां अपनी टैक्स लायबिलिटी घटाने और कुछ कानूनों से बचने के लिए अपना रिटर्न फाइल करने से पहले ऐसा करती हैं। इस बदलाव के बाद कंपनी अपने ऑडिटर्स के प्रति जवाबदेह होगी। साथ ही वह टैक्स और दूसरी सरकारी अथॉरिटीज के प्रति भी जवाबदेह होगी, जो अपनी जांच या पूछताछ के तहत ऑडिट ट्रेल की डिमांड कर सकते हैं। अभी कई कंपनियां खासकर बड़ी कंपनियां अपने इनटर्नल कंट्रोल सिस्टम के तहत ऑडिट ट्रेल मेंटेन करती हैं लेकिन अब से यह छोटी कंपनियों के लिए भी अनिवार्य हो गया है। इसके लिए टर्नओवर की कोई शर्त नहीं रखी गई है। इस बदलाव के चलते छोटी कंपनियों के लिए कंप्लायंस पर आने वाला खर्च बढ़ जाएगा, क्योंकि ज्यादातर छोटी कंपनियां अपने अकाउंटिंग को आउटसोर्स करती हैं या अकाउंटिंग की अपनी जरूरतों के लिए अकाउंटेंट्स की पार्ट टाइम सेवाएं लेती हैं।
2. गुड्स या सर्विसेज के पर्चेज के 45 दिन के अंदर एसएमई बिजनेस को पेमेंट
इंडिया में बिजनेस से जुड़ा एक बड़ा मसला सप्लायर को समय पर पैसे का पेमेंट और कुछ इंडस्ट्रीज में क्रेडिट साइकिल का बहुत लंबा होना रहा है। अब यह बदलने जा रहा है, क्योंकि गुड्स या सर्विसेज पर्चेज करने वाले को एमएसएमई एक्ट के तहत रजिस्टर्ड एंटरप्राइजेज को 45 दिन के अंदर बकाया अमाउंट का पेमेंट करना होगा। यह एसएमई और एमएसएमई के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उन्हें 45 दिन के अंदर पेमेंट मिल जाएगा। इसके लिए इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 43बी में बदलाव किया गया है। 1 अप्रैल, 2023 से लागू नियम के मुताबिक अगर गुड्स और सर्विस का पर्चेजर एमएसएमई एक्ट के तहत रजिस्टर्ड सप्लायर को पेमेंट करने में 45 दिन से ज्यादा समय लगाता है तो वह डेट ऑफ इनवॉयस के आधार पर एक्सपेंस के रूप में इसका क्लेम नहीं कर पाएगा। वह तभी इसे बतौर एक्सपेंस क्लेम कर पाएगा जब इनवॉयस का पेमेंट कर देगा।
इसे एक उदाहरण की मदद से समझा जा सकता है। मान लीजिए कोई ट्रेडर एक एमएसएमई सप्लायर से 50 लाख रुपये का गुड्स खरीदता है और 45 दिन का पीरियड 31 मार्च, 2024 को या इससे पहले खत्म हो जाता है तो वह इसे फाइनेंशियल ईयर 2023-24 में एक्सपेंस के रूप में क्लेम नहीं कर पाएगा। 50 लाख रुपये का यह इनवॉयस फाइनेंशियल ईयर 2023-24 के इनकम टैक्स कैलकुलेशन के समय उसकी बिजनेस इनकम में जोड़ दिया जाएगा। मान लीजिए कि अगर वह 5 अप्रैल, 2024 को पेमेंट कर देता है तो इस इनवॉयस को बतौर एक्सपेंस क्लेम करने की इजाजत होगी, जिसका फायदा उसे फाइनेंशियल ईयर 2024-25 की इनकम टैक्स लायबिलिटी के कैलकुलेशन के वक्त मिलेगा।
उपर्युक्त दोनों बदलाव की वजह से इंडिया में हो रहे बिजनेस के तरीके में बड़ा बदलाव आएगा। अगर उपर्युक्त प्रावधानों के पालन में चूक होती है तो काफी पेनाल्टी चुकानी पड़ सकती है। इसलिए अब बिजनेस ऑर्गेनाइजेशंस के लिए गुड अकाउंटिंग और फाइनेंशिल कंट्रोल सिस्टम का पालन करना बहुत जरूरी हो गया है।
(अभिषेक अनेजा सीए हैं। वह पर्सनल फाइनेंस और इनकम टैक्स से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट हैं)