दिवालिया कंपनियों की जब्त संपत्ति पर सरकार लाई नया नियम, एक्सपर्ट बोले- होमबायर्स को होगा फायदा
सरकार उन दिवालिया कंपनियों की प्रॉपर्टीज के बारे में नया नियम लाई है, जिन्हें ED ने जब्त किया है। इन संपत्तियों को अब होमबायर्स और बैंकों को दिया जा सकेगा। एक्सपर्ट का मानना है कि इससे होमबायर्स को काफी फायदा होगा। जानिए डिटेल।
एक्सपर्ट के मुताबिक, सरकार का नया नियम होमबायर्स और क्रेडिटर्स दोनों के लिए बड़ा फायदा लेकर आएगा।
कॉर्पोरेट मिनिस्ट्री के तहत आने वाले इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (IBBI) ने एक नया नियम बनाया है, जो बैंकों और घर खरीदारों के लिए काफी मददगार साबित होगा। यह नियम उन दिवालिया कंपनियों से जुड़ा है, जिनकी प्रॉपर्टी को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने फ्रीज कर रखा है।
क्या है IBBI का नया नियम
4 नवंबर को जारी सर्कुलर में IBBI ने साफ कहा कि अगर ED ने किसी दिवालिया कंपनी या उसके प्रमोटर की प्रॉपर्टीज को मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून (PMLA) के तहत अटैच किया है, तो इन संपत्तियों को अब वापस प्रभावित पक्षों को दिया जा सकेगा। जैसे कि बैंक या फिर होमबायर्स।
इसका मतलब यह है कि पहले जो संपत्तियां कानूनी कारणों से इस्तेमाल नहीं हो पाती थीं, वे अब दोबारा कंपनी के रिजॉल्यूशन में शामिल हो सकेंगी। इससे रिकवरी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
एक्सपर्ट का कहना है कि यह बदलाव होमबायर्स और क्रेडिटर्स दोनों के लिए बड़ा फायदा लेकर आएगा। क्योंकि अब ऐसी फंसी कंपनियों का निपटारा पहले से कहीं तेजी से हो सकेगा।
फंसे रियल एस्टेट प्रोजेक्ट को मिलेगी रफ्तार
एक्सपर्ट ने कहा कि यह नया फ्रेमवर्क उन दिवालिया रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स के निपटान को तेज करेगा, जो PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के तहत फंसे हुए हैं।
कई मामलों में ED, कॉर्पोरेट देनदार की संपत्तियों को PMLA के तहत अटैच कर देता है। IBBI ने कहा कि ऐसी अटैच संपत्तियों की रेस्टिट्यूशन (वापसी या अनफ्रीज) से कॉर्पोरेट देनदार के वैल्यू में बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है और इससे रिकवरी भी ज्यादा होगी।
सर्कुलर के मुताबिक, जहां-जहां संपत्तियां ED ने PMLA के तहत अटैच की हैं, वहां दिवाला पेशेवर अब PMLA की धारा 8(7) या 8(8) के तहत विशेष अदालत में रेस्टिट्यूशन का आवेदन कर सकेंगे। इसके बाद दिवाला पेशेवर फ्रीज प्रॉपर्टीज को IBC प्रक्रिया में शामिल कर पाएंगे।
नए नियम पर क्या है एक्सपर्ट की राय
S&A Law Offices के सीनियर पार्टनर विजय के सिंह ने कहा कि कई रियल एस्टेट दिवाला मामलों में प्रोजेक्ट ED की कार्रवाई की वजह से अटके रहते हैं। उन्होंने कहा, 'इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए अटैच प्रॉपर्टीज बेहद जरूरी होती हैं। ऐसे में नया नियम प्रोजेक्ट्स को तेजी से पूरा करने और होमबायर्स की रिकवरी सुधारने में मदद करेगा।'
Areness की पार्टनर अंजलि जैन ने भी कहा कि रियल एस्टेट लेन-देन में ED के अटैचमेंट आम होते हैं, और इस कदम से स्पष्टता आएगी। फंसे हुए प्रोजेक्ट्स अब ज्यादा पारदर्शिता के साथ साफ-सुथरा समाधान पा सकेंगे।
रेस्टिट्यूशन प्रोसेस अब कैसे करेगा काम?
IBBI ने ED के साथ मिलकर एक स्टैंडर्ड अंडरटेकिंग तैयार की है। यह एक तरह का लिखित आश्वासन है, जिसे आवेदन के साथ लगाना अनिवार्य होगा। इसका मकसद है कि दिवाला पेशेवर (Insolvency Professional) जब ED से फ्रीज की गई संपत्तियों को वापस (रेस्टिट्यूट) कराने का आवेदन करें, तो पूरी प्रक्रिया तेज और साफ तरीके से चल सके।
एक्सपर्ट के मुताबिक, इस अंडरटेकिंग में तीन महत्वपूर्ण शर्तें होंगी:
एंड-यूज प्रतिबंध: जो संपत्तियां ED वापस करेगा, उनका इस्तेमाल सिर्फ उसी दिवाला समाधान प्रक्रिया के लिए किया जा सकेगा। यानी पैसा या संपत्ति किसी और काम में नहीं लगाई जा सकती।
तिमाही रिपोर्टिंग: रेजोल्यूशन प्रोफेशनल को हर तीन महीने में ED को यह बताना होगा कि वापस मिली संपत्तियों का उपयोग कैसे हो रहा है।
डिस्क्लोजर: जो भी संभावित बिडर्स (resolution applicants) होंगे, उन्हें बताया जाएगा कि ये संपत्तियां ED से रेस्टिट्यूशन के जरिए मिली हैं और इन पर कुछ शर्तें लागू हैं।
कितना सफल होगा यह नया नियम
Shardul Amarchand Mangaldas & Co. के पार्टनर अनुप रावत के मुताबिक, ये शर्तें ED को यह भरोसा देती हैं कि उन्होंने जो प्रॉपर्टी वापस की है, उसका गलत इस्तेमाल नहीं होगा। इससे ED को तेजी से प्रॉपर्टीज रिलीज करने में आसानी होगी। इसका सीधा फायदा होमबायर्स समेत सभी असल हितधारकों को मिलेगा।
हालांकि, Areness की पार्टनर अंजलि जैन का कहना है कि इस अंडरटेकिंग के व्यावहारिक पहलुओं की असली परीक्षा समय के साथ ही होगी। यानी यह देखना बाकी है कि जमीन पर इसे लागू करना कितना आसान या मुश्किल होता है।