Tax Savings: कई टैक्सपेयर्स अंतिम समय में टैक्स-सेविंग्स इनवेस्टमेंट करते हैं। 31 मार्च तक टैक्स-सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करने पर ही डिडक्शन क्लेम करने की इजाजत मिलती है। जल्दबाजी में टैक्स-सेविंग्स करने में गलतियां होने की आशंका होती है। इसीलिए एक्सपर्ट्स नए वित्त वर्ष शुरू होने से पहले ही टैक्स-सेविंग्स प्लान बना लेने की सलाह देते हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि टैक्स-सेविंग्स में कई ऐसे निवेश होते हैं जो लंबी अवधि के होते हैं। इसलिए उनमें सोचसमझकर निवेश करना जरूरी है।
मनीकंट्रोल आपको ऐसी 5 गलतियों के बारे में बता रहा है, जो अक्सर जल्दबाजी में टैक्स-सेविंग्स में होती है:
1. इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम में सेक्शन 80सी के तहत एक वित्त वर्ष में 1.5 लाख रुपये तक का डिडक्शन क्लेम करने की इजाजत है। इसके अलावा सेक्शन 80सीसीडी (1B) के तहत एनपीएस कंट्रिब्यूशन पर अतिरिक्त 50,000 रुपये का डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। इसके अलावा हेल्थ पॉलिसी, बच्चों की ट्यूशन फीस और एजुकेशन-होम लोन पर डिडक्शन क्लेम करने की सुविधा मिलती है। इसलिए अगर आप 31 मार्च से पहले टैक्स-सेविंग्स करने जा रहे हैं तो आपको एक बार यह चेक कर लेना चाहिए कि आपने इनमें से किसका फायदा उठा लिया है। यह भी देखने की जरूरत है कि इनमें से कौन सा इंस्ट्रूमेंट आपके लिए सही है।
2. डिडक्शन क्लेम करने के लिए कई लोग तय सीमा से ज्यादा इनवेस्टमेंट कर देते हैं। उदाहरण के लिए सेक्शन 80सी के तहत एक वित्त वर्ष में 1.5 लाख रुपये तक डिडक्शन की इजाजत है। इसके तहत करीब एक दर्जन इंस्ट्रूमेंट्स आते हैं। दो बच्चों की ट्यूशन फीस भी इसी सेक्शन के तहत आती है। इसलिए आपके लिए ध्यान रखना जरूरी है कि आप 80सी का फायदा उठाने के लिए 1.5 लाख रुपये से ज्यादा का निवेश नहीं कर दें। अगर बच्चों की ट्यूशन फीस का पेमेंट आप करते हैं तो आपको सबसे पहले 1.5 लाख रुपये में से उसे घटाने के बाद बाकी इनवेस्टमेंट के बारे में सोचना चाहिए।
3. टैक्स-सेविंग्स के लिए इनवेस्टमेंट से पहले अपने पर्सनल फाइनेंस को रिव्यू करना बहुत जरूरी है। इसका मतलब यह है कि आपको यह देखना होगा कि आपके पास पर्याप्त कवर वाली लाइफ इंश्योरेंस और हेल्थ पॉलिसी है या नहीं। अगर आपके लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी नहीं है या उसका कवर बहुत कम है तो सबसे पहले इस जरूरत को पूरा करना सही रहेगा। इसी तरह अगर आपके पास हेल्थ पॉलिसी नहीं तो पहले एक हेल्थ पॉलिसी लेना ठीक रहेगा। दोनों पर सेक्शन 80सी के तहत डिडक्शन मिलता है। अगर आपके पास ये दोनों इंश्योरेंस है तो आप म्यूचुअल फंड की टैक्स-सेविंग्स स्कीम में निवेश के बारे में सोच सकते हैं।
4. जल्दबाजी में टैक्स-सेविंग्स स्कीम में निवेश करने पर बाद में आपको पछताना पड़ सकता है। इसकी वजह यह है कि हर इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट खास तरह का होता है। उसके कुछ खास मकसद होते हैं। उसकी कुछ शर्तें होती हैं। जैसे PPF एक लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट है। अगर आप टैक्स-सेविंग्स के लिए पीपीएफ में निवेश करने जा रहे हैं तो आपको 15 साल तक इसमें हर साल निवेश करने के लिए तैयार होना चाहिए। सिर्फ टैक्स-सेविंग्स के लिए एक या दो साल तक पीपीएफ में निवेश करने पर आपको कोई फायदा नहीं होगा।
5. निवेश करने से पहले आपको अपने रिस्क लेने की क्षमता और यह देख लेने की जरूरत है कि आप जिस पैसे का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसकी जरूरत आपको कब पड़ेगी। टैक्स-सेविंग्स के कुछ इंस्ट्रूमेट्स हैं, जिनमें रिस्क नहीं के बराबर है। कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स है, जिनमें काफी रिस्क होता है। बैंक का टैक्स-सेविंग्स एफडी रिस्क-फ्री इनवेस्टमेंट है, जबकि म्यूचुअल फंड की ELSS या टैक्स सेविंग्स स्कीम में निवेश करने पर रिस्क होता है। अगर आप रिस्क नहीं ले सकते तो आपको सिर्फ टैक्स-सेविंग्स के लिए ईएलएसएस में निवेश नहीं करना चाहिए।
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