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रिटायरमेंट के लिए जुटा रहे हैं ₹1 करोड़? जानें क्यों हो सकती है ये आपकी सबसे बड़ी भूल

कभी एक आम आदमी के लिए रिटायरमेंट के लिए 1 करोड़ रुपये को बहुत माना जाना था। कुछ साल पहले तक यह रकम न सिर्फ रिटायरमेंट के बाद घर चलाने, बल्कि बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य जरूरतों के लिए भी पर्याप्त मानी जाती थी। लेकिन बढ़ती महंगाई और समय के साथ बदलती चीजों ने इस धारणा को चुनौती दी है

अपडेटेड Aug 23, 2025 पर 10:02 PM
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एक गंभीर बीमारी या सर्जरी ही 1 करोड़ रुपये का अच्छा-खासा हिस्सा खा सकती है

कभी एक आम आदमी के लिए रिटायरमेंट के लिए 1 करोड़ रुपये को बहुत माना जाना था। कुछ साल पहले तक यह रकम न सिर्फ रिटायरमेंट के बाद घर चलाने, बल्कि बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य जरूरतों के लिए भी पर्याप्त मानी जाती थी। लेकिन बढ़ती महंगाई और समय के साथ बदलती चीजों ने इस धारणा को चुनौती दी है। आज यही रकम तेजी से घटती परचेजिंग पावर और बदलती जीवनशैली के सामने छोटी पड़ने लगी है।

महंगाई का असर

बीस साल पहले तक 1 करोड़ रुपये को एक ऐसा फाइनेंशियल सुरक्षा कवच माना जाता था, जो परिवार को आराम से कई दशकों तक चला सकता था। लेकिन बढ़ती महंगाई ने इस कवच में गहरी सेंध लगा दी है। रोज़मर्रा की जरूरतों से लेकर पेट्रोल, बिजली और किराने के सामान तक, हर चीज की कीमत लगातार बढ़ रही है। खासतौर पर हेल्थकेयर सेवाओं के दाम तो औसतन 12–14% सालाना की रफ्तार से बढ़ रहे है। पहले जो बड़े से बड़े मेडिकल प्रोसीजर कुछ लाख में हो जाते थे, वहीं अब तीन से चार गुना तक महंगा हो चुका है।

लंबी होती जिंदगी, बढ़ता रिटायरमेंट काल


भारत में लोगों की औसत आयु (Life Expectancy) साल 1990 में 62 साल थी, जो आज बढ़कर 70 साल से ऊपर पहुंच चुकी है। बड़ी संख्या में लोग 80 साल से ज्यादा जी रहे हैं। इसका मतलब है कि अब लोग अपने जीवन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बिना किसी एक्टिव इनकम के गुजार रहे हैं। पहले जिस 1 करोड़ रुपये को 8–10 साल के खर्च के लिए पर्याप्त माना जाता था, वही अब 20–25 साल तक खिंचने पर तेजी से कम पड़ जाता है।

बदलती जीवनशैली और बढ़ती उम्मीदें

पिछली लोगों की रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी साधारण थी। वे परिवार के साथ मेल-जोल, छोटी-मोटी यात्राओं और सादगी भरे जीवन से संतुष्ट रहते थे। लेकिन अब रिटायर हो रहे लोगों के लिए घूमना-फिरना, डिजिटल सुविधाएं, फिटनेस और वेलनेस जैसी चीजें जिंदगी का अहम हिस्सा हैं। यह जीवनशैली उस पुराने गणित को ध्वस्त कर देती है, जिसमें माना जाता था कि 1 करोड़ रुपये जीवनभर की गारंटी है।

₹1 करोड़ क्यों नहीं है पर्याप्त?

कई लोग अब भी 1 करोड़ रुपये को रिटायरमेंट के लिए “जादुई आंकड़ा” मानते हैं। यह मनोवैज्ञानिक रूप से सुकून देता है कि उन्होंने अपनी फाइनेंशियल तैयारी पूरी कर ली है। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं अलग है।

मासिक खर्च का दबाव: आज शहरी परिवार का औसत मासिक खर्च 50,000 रुपये से ऊपर है। अगर 1 करोड़ रुपये को सुरक्षित निवेश में लगाया जाए, तो यह महज कुछ वर्षों तक खर्च चला सकता है। महंगाई की मार से यह रकम 15–20 साल में लगभग आधी हो जाएगी।

स्थान का असर: छोटे शहरों में यह रकम कई साल तक सुकून दे सकती है। लेकिन दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु जैसे बड़े महानगरों में किराया, हेल्थ और जीवनशैली से जुड़े खर्च इसे तेजी से खत्म कर देंगे।

स्वास्थ्य का खर्च: उम्र बढ़ने के साथ स्वास्थ्य पर खर्च भी बढ़ता है। एक गंभीर बीमारी या सर्जरी ही 1 करोड़ रुपये का अच्छा-खासा हिस्सा खा सकती है।

रिटायरमेंट प्लानिंग की नई सोच

एक करोड़ रुपये अब अंत नहीं, बल्कि शुरुआत है। अगर रिटायरमेंट सुरक्षित बनाना है तो उसके लिए कुछ बुनियादी बदलाव जरूरी हैं।

भविष्य की लागत को रखें ध्यान: आज जो 50,000 रुपये का खर्च लगता है, वह 20 साल बाद 1.5 लाख रुपये या उससे भी ज्यादा हो सकता है। इसलिए रिटायरमेंट प्लानिंग आज के हिसाब से नहीं, बल्कि भविष्य की अनुमानित लागत के आधार पर करनी चाहिए।

ग्रोथ इन्वेस्टमेंट पर फोकस: अगर सारी रकम फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे कम ब्याज वाली जगहों पर निवेश कर दी जाए, तो इससे रकम तेजी से घटती जाएगी। इसकी जगह पोर्टफोलियो में इक्विटी म्यूचुअल फंड, NPS, डेट इंस्ट्रूमेंट्स और एन्युटी प्रोडक्ट्स का संतुलित मिश्रण होना चाहिए।

हेल्थ पर विशेष ध्यान: एक कॉम्प्रिहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस और मेडिकल खर्च के लिए अलग से फंड बनाना बेहद जरूरी है, ताकि बीमारी जीवनभर की बचत को न खा जाए।

सिस्टेमेटिक विदड्रॉल प्लान (SWP): रिटायरमेंट कॉर्पस से एक साथ ज्यादा पैसे निकालना सबसे बड़ी गलती है। छोटी और नियमित निकासी (SWP) से न केवल खर्च चलता है, बल्कि बाकी निवेश भी ग्रोथ देता रहता है।

कुल मिलाकर, रिटायरमेंट की परिभाषा और चुनौतियां अब बदल चुकी हैं। 1 करोड़ रुपये कभी जीवनभर की सुरक्षा का प्रतीक थे, लेकिन अब ये केवल एक शुरुआती पड़ाव है। रिटायरमेंट प्लानिंग अब सिर्फ बचत नहीं, बल्कि भविष्य की सोच, अनुशासन और स्मार्ट निवेश का खेल है। इसलिए अगर कोई अब भी मानता है कि रिटायरमेंट पर 1 करोड़ रुपये ही काफी हैं, तो यह उनके जीवन की सबसे बड़ी वित्तीय भूल साबित हो सकती है।

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