श्वेता 34 साल की नौकरीपेशा महिला हैं, जो बेंगलुरु में रहती हैं। वह एक मशहूर आईटी कंपनी में डिलीवरी मैनेजर हैं। उनके दो बच्चे हैं। ऑफिस में वह प्रोजेक्ट आइडिया डेवलप करती हैं। प्रजेंटेशंस बनाती हैं, दूसरे एंप्लॉयीज की परफॉर्मेंस पर नजर रखती है। साथ ही वह इस बात का भी ध्यान रखती हैं कि बच्चों के लिए खाने में क्या बनाना है और उन्हें मैथ्स में कौन सी टेबल याद करानी है।
इतनी ज्यादा जिम्मेदारियां संभालने और रोजाना के कामों के बीच वह जीवन से जुड़े एक अहम पहलू को मिस कर देती हैं। इसका संबंध बचत और निवेश से जुड़े मामलों से है। हाल में LXME ने एक्सिस माय इंडिया के साथ मिलकर एक सर्वे किया। इस सर्वे से यह पता चला कि इंडिया में 33 फीसदी महिलाएं किसी तरह का निवेश (Investment) नहीं करतीं। 21 से 25 उम्र वर्ग में तो यह आंकड़ा 40 फीसदी है।
सर्वे में कहा गया है कि देश में 55 फीसदी महिलाओं को इनवेस्टमेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। आम तौर पर महिलाओं में बचत (Savings) की अच्छी आदत होती है और वे चीजों को डिटेल में समझने की भी कोशिश करती हैं। ये दोनों चीजें वेल्थ क्रिएशन (Wealth Creation) के लिए बहुत जरूरी हैं। इसके बावजूद कई महिलाएं सिर्फ सेविंग्स करती हैं न कि इनवेस्टमेंट।
जो महिलाएं निवेश करती हैं, वे ज्यादातर गोल्ड ज्वैलरी (Gold Jewelry), बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट (Bank FD), पीपीएफ (PPF), एन्डॉमेंट पॉलिसीज जैसे ट्रेडिशनल प्रोडक्ट्स में पैसे डालती हैं। 42 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे गोल्ड में इनवेस्ट करती हैं। 35 फीसदी ने कहा कि वे फिक्स्ड डिपॉजिट में पैसे रखती हैं। इससे साफ हो जाता है कि पैसे को इनफ्लेशन के असर से बचाने और वेल्थ क्रिएशन के लिए वे कुछ नहीं करतीं।
इंडिया का शेयर बाजार दुनिया का छठा सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज है। शेयरों में निवेश करने में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है। इस तरह निवेश के मामलों में पुरुषों की हिस्सेदारी ज्यादा है। हर 100 इनवेस्टर्स में सिर्फ 21 महिलाएं हैं। दूसरे उभरते बाजारों में यह आंकड़ा इंडिया से अच्छा है। चीन में यह आंकड़ा 34 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 33 फीसदी और मलेशिया में 29 फीसदी है।
आज आईटी, बैंकिंग, अकाउंटेंसी, फैशन, मेडिकल प्रोफेशन, मीडिया आदि इंडस्ट्री में बड़ी संख्या में महिलाएं काम कर रही हैं। इसके बावजूद शेयर बाजार या दूसरे तरह के इनवेस्टमेंट में उनकी हिस्सेदारी कम है। इसकी कई वजहें हैं। इनमें समय की कमी, फाइनेंशियल नॉलेज की कमी और पैसे को नुकसान का डर शामिल हैं।
सेविंग्स के मामले में महिलाएं दूसरों की मदद लेने से हिचकती हैं। वे गोल्ड ज्वैलरी के लिए मेकिंग चार्ज देती हैं। लॉकर की फीस चुकाती हैं। कम इंटरेस्ट वाले बैंक एफडी में इनवेस्ट करती हैं। लेकिन, ऐसे एक्सपर्ट को 2.5 फीसदी फीस नहीं देना चाहतीं, जो शेयरों में निवेश करने में उनकी हर तरह से मदद कर सकता है। इसमें सिर्फ उनकी गलती नहीं है। हमें रुपये-पैसों से जुड़े मामलों में महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ाने की कोशिश करनी होगी। उनका भरोसा बढ़ाना होगा।
महिलाएं गोल्ड ज्वेलरी और बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे प्रोडक्ट्स में इनवेस्ट करती हैं, जिससे मिलने वाला रिटर्न सालाना 5-6 फीसदी से ज्यादान नहीं होता। पिछले दशक में एवरेज इनफ्लेशन 6.5 फीसदी रहा है। इससे जाहिर है कि महिलाओं को अपने निवेश पर पॉजिटिव रिटर्न नहीं मिल रहा है। इससे स्पष्ट है कि इस निवेश से कभी वेल्थ क्रिएशन में मदद नहीं मिल सकती। उधर, पिछले 126 साल का इतिहास बताता है कि शेयर अकेला ऐसा एसेट हैं, जिसका प्रदर्शन दूसरे एसेट क्लास के मुकाबले बहुत अच्छा रहा है।
इसलिए श्वेता जैसी दूसरी महिलाओं को वेल्थ क्रिएशन के बारे में सोचना चाहिए। शेयरों में निवेश उनकी मदद कर सकता है। इसके लिए वे एक्सपर्ट या सर्टिफायड फाइनेंशियल प्लानर्स की मदद ले सकती हैं। अब समय आ गया है कि जिस तरह वे जीवन के हर क्षेत्र में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं वैसे ही निवेश की दुनिया में भी सक्रियता दिखाएं।