Hartalika Teej Pooja Vidhi 2025: हरतालिका तीज का व्रत आज किया जा रहा है। यह व्रत प्रात: काल सूर्योदय के साथ शुरू हो चुका है और कल के सूर्योदय के साथ सम्पन्न होगा। इस दौरान महिलाएं निर्जला व्रत करेंगी और भगवान शिव और मां पार्वकी की हाथ से बनाई मूर्ति की पूजा करेंगी। की पूजा शाम के समय यानी प्रदोष काल में करने का बहुत महत्व है। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव व माता पार्वती से सुखी वैवाहिक जीवन तथा संतान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।
आज हस्त नक्षत्र में हो रहा है व्रत
आज के व्रत की एक और खास बात ये है कि ये हस्त नक्षत्र में किया जा रहा है। यह नक्षत्र तड़के 3.49 बजे लग चुका है और कल यानी 27 अगस्त को सुबह 6.04 बजे तक रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने भी भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए अपने कठिन तप की शुरुआत भाद्रपद माह की तृतीया तिथि को इसी नक्षत्र में की थी।
आज प्रदोष काल में पूजा का महत्व
हरतालिका तीज की पूजा के लिए सुबह का समय उचित माना गया है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल पूजा कर पाना संभव नहीं है है तो प्रदोषकाल में शिव-पार्वती की पूजा की जा सकती है। तीज की पूजा प्रातः स्नान के पश्चात् नए व सुन्दर वस्त्र पहनकर की जाती है। रेत से बनी शिव-पार्वती की प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता है व हरतालिका व्रत कथा को सुना जाता है।
दक्षिण के इन राज्यों में आज किया जा रहा गौरी हब्बा व्रत
हरतालिका तीज को कर्णाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में ‘गौरी हब्बा’ व्रत के नाम से जाना जाता है। इसमें माता पार्वती के गौरी रूप की पूजा की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। गौरी हब्बा के दिन महिलाएं स्वर्ण गौरी व्रत रखती हैं व माता गौरी से सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं।
सहेली के अपहरण से जुड़ा है इस तीज का नाम
इस व्रत के नाम हरतालिका कैसे पड़ा इसके पीछे रोचक कहानी है, जिसकी जानकारी एक पौराणिक कथा में मिलती है। हरतालिका शब्द, हरत व आलिका से मिलकर बना है, जिसमें हरत शब्द का अर्थ है अपहरण और आलिका का मतलब है सहेली।
हरतालिका तीज व्रत की कथा से जानें नाम का रहस्य
हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, पार्वती राजा हिमवान और उनकी पत्नी मैना देवी की बेटी हैं। पार्वती को बचपन से ही भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने की कामना थी। इसके लिए वह पूजा और तपस्या कर रही थीं। उनके पिता राजा हिमवान से बेटी की ये स्थिति देखी नहीं जा रही थी और उन्हें पार्वती के विवाह की चिंता सता रही थी। एक बार वो अपनी बेटी के विवाह के लिए बहुत चिंतित थे, तभी नारद जी उनके पास श्रीहरि विष्णु से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। राजा हिमवान ने उनका ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। लेकिन ये बात जब पार्वती को पता चली तो वह बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने इसकी चर्चा अपनी सहेली से की। उनकी सहेली ने तब उन्हें कहा कि वह ऐसी गुफा जानती है जहां पार्वती आराम से अपनी तपस्या जारी रख सकती हैं और उनके पिता राजा हिमवान भी उन्हें नहीं खोज पाएंगे। इस तरह उनकी सहेलियां पार्वती का अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। ताकि पार्वतीजी की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें।