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Nirjala Ekadashi 2025: इस एक व्रत से मिलते हैं 24 एकादशी व्रतों के बराबर फल, जानिए कैसे

Nirjala Ekadashi 2025: इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून 2025 को पड़ेगा, जो सिर्फ उपवास नहीं बल्कि आस्था, आत्मनियंत्रण और समर्पण का प्रतीक है। मान्यता है कि इस कठिन तप से साल की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है, जिससे मोक्ष की ओर अग्रसर होने का मार्ग प्रशस्त होता है

अपडेटेड Jun 02, 2025 पर 10:48 AM
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Nirjala ekadashi 2025: निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी आवश्यक माना गया है।

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है, लेकिन इनमें से सबसे कठिन और विशेष व्रत है – निर्जला एकादशी। ये व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, जब भीषण गर्मी अपने चरम पर होती है। ‘निर्जला’ का अर्थ है बिना जल के, और इस दिन व्रती को अन्न के साथ-साथ जल का भी त्याग करना होता है। यही कारण है कि ये व्रत अत्यधिक कठोर और तपस्वी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक केवल निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे वर्ष की सभी 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।

इस व्रत में केवल शारीरिक तप नहीं, बल्कि मानसिक और वाणी का भी संयम जरूरी होता है। यही विशेषताएं इसे बाकी सभी एकादशियों से अलग और सबसे कठिन बनाती हैं।

क्यों कहते हैं इसे 'निर्जला'?


‘निर्जला’ का अर्थ होता है – बिना जल के। इस व्रत की सबसे खास बात ये है कि इसमें ना केवल अन्न बल्कि जल तक का सेवन वर्जित होता है। सूर्योदय से अगले दिन पारण तक जल की एक बूंद भी ग्रहण करना व्रत को खंडित कर सकता है। यही कारण है कि इसे बेहद कठिन तपस्या का प्रतीक माना गया है।

फलाहार भी नहीं

जहां बाकी एकादशियों में फलाहार या जलाहार की छूट होती है, वहीं निर्जला एकादशी पर फल, फल का रस, दूध या कोई पेय तक वर्जित होता है। ये व्रत पूर्ण उपवास के रूप में रखा जाता है, जिसमें तन, मन और वाणी सभी पर नियंत्रण रखना आवश्यक होता है।

जेठ की तपती दोपहरी में अग्निपरीक्षा

निर्जला एकादशी का व्रत जेठ महीने की चिलचिलाती गर्मी में रखा जाता है। ऐसे में बिना जल-अन्न ग्रहण किए रहना शरीर के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होता। इसीलिए ये व्रत ना सिर्फ कठिन बल्कि साधकों के लिए शारीरिक सहनशक्ति का भी परीक्षण होता है।

वाणी, मन और कर्म का संयम जरूरी

इस दिन न केवल उपवास करना होता है, बल्कि अपने मन, वचन और कर्म को भी संयमित रखना होता है। किसी से कटु वचन ना बोलें, झगड़े-विवाद से दूर रहें और मन में किसी के प्रति द्वेष ना रखें। ये दिन आत्मशुद्धि और मन की तपस्या का अवसर होता है।

ब्रह्मचर्य और रात्रि जागरण का महत्व

निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी आवश्यक माना गया है। इस व्रत की पूर्णता तभी मानी जाती है जब साधक रात्रि जागरण करता है और प्रभु भजन, कीर्तन, पाठ में लीन रहता है। इस रात आध्यात्मिक ऊर्जा चरम पर होती है, जिससे व्रतधारी को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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