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Parivartani Ekadashi Vrat Paran Time: हरिवासर में न करें व्रत का पारण, बेकार हो जाएगा व्रत का सारा पुण्य

Parivartani Ekadashi Vrat Paran Time: व्रत के पारण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने से व्रत से प्राप्त सारा पुण्य बेकार हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण अगर हरिवासर यानी हरीभूषण योग में किया जाता है, तो इसका पुण्य नष्ट हो जाता है।

अपडेटेड Sep 03, 2025 पर 2:36 PM
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एकादशी तिथि के दिन व्रत करने के बाद उसके पारण को लेकर सख्त विधान बनाए गए हैं।

Parivartani Ekadashi Vrat Paran Time: हिंदू धर्म में परिवर्तनी एकादशी का बहुत महत्व है। इसे पद्मा, जलझूलनी या पार्श्व एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह एकादशी भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। पूरे हिंदू वर्ष में आने वाली 24 एकदशियों में से एक इस एकादशी का खास स्थान है। इस दिन चतुर्मास में योग निद्र के दौरान भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेष शैया पर करवट बदलते हैं। इसी वजह से इसका नाम ‘परिवर्तिनी’ पड़ा है।

इस साल यह व्रत आज 3 सितंबर को किया जा रहा है। इस व्रत के पारण का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसा नहीं करने से व्रत से प्राप्त सारा पुण्य बेकार हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत का पारण अगर हरिवासर यानी हरीभूषण योग में किया जाता है, तो इसका पुण्य नष्ट हो जाता है। इसलिए शास्त्रों में एकादशी व्रत और इसके पारण को लेकर सख्त नियम बताए गए हैं। व्रत करने वाले भक्तों के लिए इनका पालन करना बहुत जरूरी होता है। अन्यथा पूरे दिन व्रत रहने के बावजूद उनका उपवास खंडित मान लिया जाता है।

आइए जानें परिवर्तनी व्रत के पारण का शुभ मुहूर्त

एकादशी व्रत पारण मुहूर्त : 4 सितंबर दोपहर 1.36 बजे से 4.07 बजे तक

क्या है हरिवासर

हरिवासर द्वादशी तिथि का पहला चौथाई भाग होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस अवधि में एकादशी के व्रत का पारण करना वर्जित माना गया है। इस दौरान व्रत खोलने से पुण्य का नाश हो जाता है। इसलिए हरिवासर काल में व्रत का पारण ना करें।


हरिवासर समाप्ति : 4 सितंबर सुबह 10:18 बजे

इसलिए हरिवासर में नहीं करना चाहिए एकादशी व्रत का पारण

शास्त्रों में हरिवासर को हरीभूषण योग कहा गया है। इस अवधि का विशेष महत्व है क्योंकि इस दौरान खुद भगवान विष्णु भक्त की तपस्या और उपवास को आभूषण की तरह धारण करते हैं। इस दौरान व्रत का पुण्य भगवान विष्णु स्वयं आत्मसात कर रहे होते हैं। इस योग में व्रत का पारण करने पर व्रत अधूरा रह जाता है और भक्त को उस व्रत का फल नहीं मिलता। इसलिए शास्त्रों में हरीभूषण योग (हरिवासर) समाप्त होने के बाद ही व्रत का पारण करने का विधान बनाया गया है।

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