Parivartini Ekadashi 2025: आज किया जाएगा व्रत, जानिए इस तिथि का महत्व और पूजा का मुहूर्त

Parivartini Ekadashi 2025: एक हिंदू वर्ष में 24 एकादशी तिथियां आती हैं। सबका अपना महत्व और महानता है। इन्ही में से एक है परिवर्तनी एकादशी, जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह व्रत आज 3 सितंबर के दिन किया जा रहा है। जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

अपडेटेड Sep 03, 2025 पर 10:41 AM
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आज योग निद्रा में करवट बदलेंगे भगवान विष्णु, मनाई जाएगी परिवर्तनी एकादशी।

Parivartini Ekadashi 2025: हिंदू कैलेंडर में 24 एकदशी तिथियां आती हैं और हर एक का अपना महत्व होता है। सभी एकादशी तिथियां भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं। परिवर्तनी एकादशी का हिंदू धर्म में गहरा आध्यात्मिक महत्व है। इसे पार्श्व एकादशी भी कहा जाता है। यह भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि भी श्रीहरि को ही समर्पित है। माना जाता है कि चतुर्मास के दौरान इस दिन भगवान विष्णु शेषनाग पर आराम करते हुए योगनिद्रा में करवट बदलते हैं। इस साल परिवर्तिनी एकादशी बुधवार, 3 सितंबर को मनाई जाएगी।

इस समय लगेगी एकादशी तिथि

परिवर्तिनी एकादशी : 3 सितंबर 2025, बुधवार


एकादशी तिथि शुरू : 3 सितंबर तड़के 03.53 बजे से

एकादशी तिथि समाप्त : 4 सितंबर सुबह 04.21 बजे

इस समय करें एकादशी व्रत का पारण

ध्यान रखें, एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना चाहिए। इसे हरि वासर में करने से बचना चाहिए। सबसे शुभ समय सुबह का होता है।

एकादशी व्रत पारण : 4 सितंबर सुबह 10.18 बजे

परिवर्तिनी एकादशी का महत्व

परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पांचवें अवतार भगवान वामन की भी पूजा की जाती है। इस दिन को अधर्म पर धर्म की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा यह तिथि चार महीने के चातुर्मास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, क्योंकि इस दिन श्रीहरि विष्णु योग निद्रा में अपनी अवस्था बदलते हैं। इस तिथि को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। साथ ही ये दिन बाधाओं पर विजय प्राप्त करने लिए भी अहम होता है।

परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा

व्रत कथा में बताया गया है कि भगवान विष्णु ने अपनी शक्तियों के अहंकार में चूर राजा बलि को शांत करने के लिए वामन अवतार लिया। वामन रूप में भगवान विष्णु से महादानवीर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। उन्होंने दो पगों में पूरे ब्रह्मांड को नाप लिया और तीसरे पग में बलि के सिर पर पैर रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया था। यह कथा भक्तों को विनम्रता, विश्वास और भगवान की इच्छा के प्रति समर्पण की याद दिलाती है।

व्रत में इन नियमों का पालन करें

  • सूर्योदय से ही व्रत शुरू करें और फलाहार करें।
  • इस दिन विष्णु सहस्रनाम का जाप, भगवद्गीता का पाठ और श्रीहरि को तुलसी के पत्ते अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • इस दिन रात्रि जागरण और भगवान विष्णु के भजन में लीन होने का विधान बताया गया है।
  • हरि वासर समाप्त होने के बाद ही अगले दिन पारण किया जाता है।

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First Published: Sep 03, 2025 8:00 AM

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