Virat Kohli Retirement : साल 2012 में विराट कोहली का सीनियर टीम के साथ ऑस्ट्रेलिया का पहला दौरा था। इस सीरीज में पर्थ टेस्ट के दौरान ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों ने उन्हें काफी परेशान किया। फिल्ड में उन्हें बार-बार चिढा रहे फैंस को गुस्से में आकर कोहली ने तगड़ा रिएक्शन दिया था। उस समय कोहली के गुस्से पर काबू न रख पाने की आदत चर्चा में रहती थी और लोग मानते थे कि यह उनकी प्रतिभा में रुकावट बन सकती है।
पर्थ टेस्ट ने बदल दी थी किस्मत
1989 में जब सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान में डेब्यू किया था, तब शुरुआत में उन्हें भी काफी मुश्किलें आई थीं। कोहली के लिए ऑस्ट्रेलिया का अनुभव भी कुछ ऐसा ही था। वे पिच की तेज़ी और उछाल को समझ नहीं पा रहे थे और पर्थ टेस्ट से पहले उन्हें खुद पर भरोसा कम होने लगा था। लेकिन WACA में खेला गया वह मैच उनके लिए टर्निंग पॉइंट बना। एक मजबूत ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज़ी के सामने 75 रन की बेहतरीन पारी खेलकर कोहली ने साबित कर दिया कि वे इस स्तर पर खेलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
1992 में पर्थ में सचिन तेंदुलकर ने 114 रन की जो पारी खेली थी, उसी तरह 2012 में विराट कोहली के 75 रन ने उनके टेस्ट करियर को नई दिशा दी। इसके बाद अगले टेस्ट में एडिलेड में उन्होंने शतक लगाया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। धीरे-धीरे विराट के खेल में एक नई परिपक्वता और संयम दिखने लगा, जो उनके आक्रामक अंदाज को संतुलित करता था।
विराट ने सचिन तो दिया था स्पेशल गिफ्ट
नवंबर 2013 में, जब सचिन ने अपना 200वां और आखिरी टेस्ट खेला, वे वानखेड़े स्टेडियम के ड्रेसिंग रूम में अकेले बैठे थे। उस पल को याद करते हुए सचिन ने बताया, "जब मैं बैठा था, विराट मेरे पास आए। उनकी आंखों में आंसू थे और उन्होंने मुझे एक खास तोहफा दिया। यह उनके पिता ने उन्हें सौंपा था और वह इसे हमेशा किसी खास को देना चाहते थे। मैं हैरान था कि उन्होंने मुझे इस सम्मान के काबिल समझा। हम गले मिले और मैं भावुक हो गया। मैंने विराट से कहा कि वह चले जाएं, वरना मैं रो पड़ूंगा।"
उस दिन मानो जिम्मेदारी विराट को मिल गई थी। वह पूरी तरह तैयार थे और भारतीय टेस्ट टीम भी। असली बदलाव तब आया जब विराट कप्तान बने। उन्होंने टीम में नई ऊर्जा भर दी। लॉर्ड्स टेस्ट में उनके मशहूर शब्द थे, "चलो उन्हें 60 ओवर तक परेशान करें।" यह नए भारत की आवाज थी, जो आत्मविश्वास से भरी थी। विराट के इस आत्मविश्वास को कुछ लोग अहंकार मानते हैं, लेकिन यही उनकी पहचान भी है। कप्तान के रूप में उन्होंने भारत को 40 टेस्ट जिताए। सचिन तेंदुलकर का कहना है, "विराट खेल को बारीकी से समझते हैं और पहले से भांप जाते हैं कि क्या होने वाला है। यही उन्हें सबसे खास बनाता है।"
खेल के प्रति मेरा जुनून मेरी ताकत
मैंने विराट कोहली के साथ कई बार इंटरव्यू किए हैं। एक बार उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को लेकर जो बात कही थी, वो मुझे हमेशा याद रहती है। उन्होंने कहा था, "मैं पूरे दिन एक जैसी ऊर्जा और जुनून के साथ खेलना चाहता हूं। अगर मैच के 88वें ओवर में कोई ऐसा शॉट खेला जाता है, जिसे मैं रोक सकता हूं और अपनी टीम के लिए 1 रन बचा सकता हूं, तो मैं वो जरूर करूंगा। मैं दौड़ूंगा, छलांग लगाऊंगा और उस रन को बचाने के लिए पूरी कोशिश करूंगा। यही असली टेस्ट क्रिकेट है और मैं इसे इसी अंदाज में खेलना चाहता हूं।"
विराट टेस्ट क्रिकेट का दूसरा नाम
बिल्कुल साफ है कि विराट कोहली भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट में खेलने वाले सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में से एक माने जाएंगे। शायद सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे नंबर पर। विराट एक ऐसे महान खिलाड़ी रहे हैं, जिन्होंने हमेशा टेस्ट क्रिकेट को अपना मकसद मानकर खेला। उनके रहते भारत और वर्ल्ड टेस्ट क्रिकेट की हालत और बेहतर हुई। उनके साथी शार्दुल ठाकुर ने भी उनके लिए सही बात कही थी – "विराट टेस्ट क्रिकेट का दूसरा नाम हैं।" शार्दुल, जिन्होंने विराट की कप्तानी में कई मुकाबले खेले और जीते, ने कहा, "मैंने हमेशा उन्हें एक शानदार कप्तान और लीडर के रूप में देखा, खासकर टेस्ट क्रिकेट में। विदेशी दौरे पर उनके साथ बिताए कई पल कभी नहीं भूल सकते। उन्होंने सच में टेस्ट क्रिकेट को अपने कंधों पर संभाला।
बोरिया मजूमदार की रिपोर्ट