4400 की गलती के एवज में करना होगा 1.70 लाख रुपये का भुगतान, महिला कस्टमर की शिकयत पर SBI बैंक दोषी करार

SBI बैंक की महिला कस्टमर ने 15 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जीत हासिल की। बैंक अब महिला को बतौर मुआवजा 1.70 लाख रुपये का भुगतान करेगा। इस पूरे मामले में न सिर्फ एसबीआई जैसा बड़ा और प्रमुख बैंक दोषी करार दिया गया, बल्कि ग्रहक की सर्तक भी मिसाल बनी है। जानिए पूरा मामला

अपडेटेड Nov 13, 2025 पर 10:57 PM
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दिल्ली उपभोक्ता आयोग ने एसबीआई बैंक को सेवा में कमी का दोषी करार दिया।

एक छोटी सी गलती कभी-कभी कितनी भारी पड़ती है, ये अनुभव हाल ही में देश के सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को हुआ है। बैंक ने अपने सिस्टम की गलती की वजह से एक ग्राहक के खाते से ईएमआई बाउंस होने के चार्ज के तौर पर 11 बार 400 रुपये काट लिए। इसकी शिकायत ग्रहक ने बैंक से की, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया। इसके बाद उसने जिला उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया और यहां से भी उसे निराशा हाथ लगी। उम्मीद की किरण तब जागी, मगर इस ग्रहक ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (NCDRC) में उठाया। एनसीडीआरसी ने मामले को राज्य उपभोक्ता आयोग भेज दिया। इसके बाद 9 अक्टूबर को आयोग ने ग्रहक की शिकायत सही पाते हुए बैंक को मुआवजा देने के आदेश जारी किए।

खाते में पर्याप्त रकम होने के बावजूद बाउंस हुई ईएमआई

पूरा मामला समझने के लिए आपको तकरीबन 15 साल पीछे जाना होगा। बात 2008 की है। दिल्ली में एसबीआई बैंक की करवाल नगर ब्रांच की एक महिला ग्राहक ने साल 2008 में एचडीएफसी बैंक से 2.6 लाख रुपये का कार लोन लिया। इसकी ईएमआई के भुगतान के लिए उन्होंने एसबीआई में अपने बचत खाते से ईसीएस के जरिए ऑटो-डिडक्शन की सुविधा ली। उन्हें हर महीने 7054 रुपये ईएमआई अदा करनी थी। लेकिन उनकी ईएमआई 11 बार बाउंस हुई, जिसके चार्ज के तौर पर एसबीआई ने 400 रुपये के हिसाब से कुल 4400 रुपये काट लिए।

15 साल लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी

महिला ने दावा किया कि उनके खाते में पर्याप्त बैलेंस होने के बावजूद ईसीएस भुगतान अस्वीकृत दिखाया गया। उन्होंने अपने खाते के स्टेटमेंट के साथ बैंक के अधिकारियों से इसकी शिकायत की। लेकिन बैंक नहीं माना। इसके बाद उन्होंने 2010 में जिला उपभोक्ता अदालत में शिकायत की, जहां उनका दावा खारिज कर दिया गया। उन्होंने हार नहीं मानी और एनसीडीआरसी में अपील की। वहां से उनके मामले को राज्य उपभोक्ता आयोग भेज दिया गया। 15 साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिर महिला ग्राहक को जीत मिली।

एसबीआई की दलील आयोग ने की खारिज


एसबीआई ने अपनी सफाई में कहा कि बैंक के ऑटो पेमेंट फॉर्म में गलती की वजह से ईएमआई नहीं कटी। लेकिन आयोग ने बैंक के इस तर्क को नहीं माना। आयोग ने कहा कि फॉर्म में गलती थी, तो बाकी ईएमआई कैसे कटीं? बैंक महिला ग्राहक के खाते में पर्याप्त रकम न होने का भी कोई सबूत नहीं पेश कर पाया। जबकि महिला अपने स्टेटमेंट से ये साबित करने में सफल रही।

आयोग ने 1.50 लाख रुपये मुआवजे का फैसला सुनाया

इन सब दलीलों के बाद दिल्ली उपभोक्ता आयोग ने एसबीआई बैंक को सेवा में कमी का दोषी करार दिया। आयोग ने बैंक को महिला ग्राहक को मानसिक उत्पीड़न और तनाव के लिए 1.50 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके अलावा मुकदमे पर खर्च के लिए 20,000 रुपये देने का भी आदेश दिया। साथ ही, आयोग ने बैंक को ये पूरी रकम 3 महीने के भीतर अदा करने का भी निर्देश दिया, जिसका पालन नहीं होने पर 7% की दर से वार्षिक ब्याज लगाने का भी फैसला सुनाया।

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