मध्य प्रदेश के इस शहर में बड़े रौब से निकलती है हथिनी लक्ष्मी, महावत की भी हो जाती है मौज

लक्ष्मी को बाजार घूमना पसंद है। वह हफ्ते में दो दिन घूमने निकलती है। एक दिन बुधवार को शहर घूमने जाती है और अगले दिन जंगल जाती है। बाकी दिन वह आराम करती है। सागर में शाम के समय बच्चे और बुजुर्ग उसे केला, ककड़ी, फल आदि खिलाने के लिए मंदिर पहुंचते हैं।

अपडेटेड Sep 09, 2025 पर 5:47 PM
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श्री देव वृंदावन बाग मठ में लक्ष्मी पांचवीं पीढ़ी की हथिनी है।

मध्य प्रदेश के सागर के बाजार में बुधवार का दिन खास होता है। इस दिन सस्ती चीजों का कोई साप्ताहिक बाजार नहीं लगता है, बल्कि इस दिन एक खास मेहमान बाजार में लोगों से मिलने आती है। इसका नाम लक्ष्मी है और ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती है। बाजार में उस वक्त मौजूद लोग उसे जो भी प्रेम भाव से दे देते हैं, वह खुशी-खुशी उसे ले लेती है। यहां जितनी लोगों की ईश्वर में आस्था है, उतनी ही श्रद्धा लक्ष्मी के प्रति भी है। लक्ष्मी श्री देव वृंदावन बाग मठ की हथिनी है। वो शहर में बड़े रौब से घूमने निकलती है।

बाजार घूमने की शौकीन

लक्ष्मी घूमने की बहुत शौकीन है। बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग तक सभी लक्ष्मी को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं। लक्ष्मी को बाजार घूमना पसंद है। वह हफ्ते में दो दिन घूमने निकलती है। एक दिन बुधवार को शहर घूमने जाती है और अगले दिन जंगल जाती है। बाकी दिन वह आराम करती है। सागर में शाम के समय बच्चे और बुजुर्ग उसे केला, ककड़ी, फल आदि खिलाने के लिए मंदिर पहुंचते हैं। लक्ष्मी बड़ी दयालू है, जो लोग उसके पास नहीं पहुंच पाते, लक्ष्मी खुद उनके पास तक पहुंच जाती है। लक्ष्मी जब बाजार या शहर में निकलती है, तो लोग उसे फल-फूल खिलाते हैं या मिठाई वाला मिठाई खिलाता है, सब्जी वाला सब्जी, पान वाला पान, किराना वाला बिस्किट-नमकीन। कुछ लोग पैसे भी देते हैं, जिससे लक्ष्मी के महावत जी भी खुश हो जाते हैं।

मध्य भारत का इकलौता मठ, जहां गजलक्ष्मी की होती है पूजा

श्री देव वृंदावन बाग मठ मध्य भारत का एकमात्र मठ है जहां महालक्ष्मी साक्षात गज के साथ विराजमान हैं। यानी यहां माता लक्ष्मी को गजलक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है। इसलिए मंदिर में हथिनी का महत्व बढ़ जाता है। इस मठ की स्थापना 270 साल पहले वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले संतों ने की थी।

270 साल पहले मठ की स्थापना


दरअसल सागर में वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले संतों ने 270 साल पहले की स्थापना की थी। मंदिर के महंत नरहरिदास महाराज न्यूज 18 को बताया कि मंदिर में पांच पीढ़ियों से गज परंपरा चली आ रही है। यह इस मंदिर में पांचवीं पीढ़ी की हथिनी है, जिसे प्यार से लक्ष्मी कहते हैं। लक्ष्मी के प्रति लोगों के भाव हैं और लोगों के प्रति लक्ष्मी के भाव हैं।

त्योहार या उत्सव में सबसे आगे रहती है लक्ष्मी

मंदिर में कोई त्योहार या बड़ा कार्यक्रम होता है, तो उसमें हथिनी लक्ष्मी सबसे आगे होती है। उसके लिए मंदिर में हथिनी द्वार भी है, जिसके अंदर से प्रवेश करके वह परिसर तक पहुंचती है।

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First Published: Sep 09, 2025 5:47 PM

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