Unique village: भारत का अनोखा गांव, जहां नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं लोगों को

Unique village: भारत के मेघालय में एक ऐसा गांव है जहां लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि खास सीटी बजाकर पुकारते हैं। हर व्यक्ति की अपनी अनोखी धुन होती है, जो उसकी पहचान बन चुकी है। यही अनोखी परंपरा कॉन्थोंग को “व्हिसलिंग विलेज” के नाम से मशहूर करती है

अपडेटेड Dec 11, 2025 पर 2:18 PM
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Unique village: स अद्भुत परंपरा ने कॉन्थोंग को विश्व मानचित्र पर अलग पहचान दी है।

सोचिए, आप किसी ऐसे गांव में जाएं जहां लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि सीटी की धुन से पुकारते हों! ये कोई कहानी नहीं, बल्कि मेघालय के कॉन्थोंग गांव की असली पहचान है। यहां हर व्यक्ति की एक खास सीटी होती है, जो उसके नाम का काम करती है। दूर से चलते हुए, खेतों में काम करते हुए या पहाड़ों के बीच आवाज लगानी हो, लोग बस अपनी अनोखी सीटी बजाते हैं और सामने वाला तुरंत समझ जाता है कि कौन उसे बुला रहा है। ये परंपरा इतनी अनूठी है कि इस छोटे से गांव को देश ही नहीं, दुनिया में भी “व्हिसलिंग विलेज” के नाम से जाना जाने लगा है।

सदियों पुरानी ये धुन-परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है और कॉन्थोंग को भारत की सबसे दिलचस्प सांस्कृतिक पहचान में से एक बनाती है।

मेघालय का कॉन्थोंग


पूर्वोत्तर भारत की मनमोहक पहाड़ियों में बसा कॉन्थोंग गांव अपनी परंपरा के कारण ‘व्हिसलिंग विलेज’ के नाम से जाना जाता है। यहां के लोग सदियों से सीटी की भाषा का उपयोग करते आ रहे हैं। खेत में काम कर रहे हों, जंगल में लकड़ी काट रहे हों या दूर किसी घाटी में हों—एक खास सीटी से तुरंत पहचान हो जाती है कि कौन बुला रहा है और किसे बुलाया जा रहा है।

सीटी भाषा की अनोखी विरासत

कॉन्थोंग की पहाड़ियां इतनी ऊंची और घाटियां इतनी गहरी हैं कि सामान्य आवाजें दूर तक पहुंच नहीं पातीं। ऐसे में गांववालों ने पीढ़ियों पहले एक अनोखा तरीका खोज निकाला सीटी के जरिए संवाद। ये परंपरा माता-पिता से बच्चों को और फिर आगे उनकी पीढ़ियों तक चलती आ रही है।

यहां हर बच्चे को जन्म के तुरंत बाद उसकी मां एक अलग सीटी की धुन देती है। ये धुन उसकी पहचान बन जाती है, जो उसके नाम की तरह जीवनभर उसके साथ रहती है।

सीटी कैसे बन गई गांव की भाषा?

इस जगह की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि बोलने की आवाजें पहाड़ों से टकराकर दब जाती हैं, जबकि सीटी की तेज और साफ ध्वनि दूर तक बिना रुकावट पहुंचती है। यही कारण है कि सीटी यहां एक बेहद व्यावहारिक भाषा बन गई।

  • ये बिना मोबाइल के long-distance communication का तरीका है।
  • जंगलों और पहाड़ियों में भी सीटी की आवाज तुरंत पहचान ली जाती है।

क्यों बढ़ रहा है दुनिया भर का ध्यान?

इस अद्भुत परंपरा ने कॉन्थोंग को विश्व मानचित्र पर अलग पहचान दी है। कई पर्यटक यहां सिर्फ इस अनोखे ‘व्हिसलिंग कल्चर’ का अनुभव करने के लिए आते हैं। पर्यटक यहां लोगों की सीटी पहचान सुनते हैं, उनके tunes का अर्थ समझते हैं और उनकी संस्कृति को नजदीक से महसूस करते हैं। ये अनोखा कम्युनिकेशन तरीका न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से अनमोल है, बल्कि ये गांव की स्वदेशी पहचान और प्राकृतिक जीवनशैली का भी सुंदर प्रतीक है।

संस्कृति, प्रकृति और परंपरा का संगम

कॉन्थोंग सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि भारत की विविधता और सांस्कृतिक धरोहर का एक जीवंत उदाहरण है। जहां दुनिया तकनीक पर निर्भर हो गई है, वहीं ये छोटा-सा गांव आज भी सीटी की मधुर धुनों में अपनी भाषा, परंपरा और पहचान को संजोए हुए है।

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