किसी भी देश की जनता अपनी सरकार से यही चाहती है कि वो महंगाई पर काबू करे और जरूरत की चीजों के दाम कम करे और होना भी ऐसा ही चाहिए... लेकिन चीन ने किया इसका बिल्कुल उल्टा...बल्की सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई, जो कहता है कि सस्ते दाम पर सामान बेचना महंगा पड़ सकता है...सवाल ये है कि आखिर चीन जैसा देश क्या अपनी जनता की भलाई नहीं चाहता? और उसने इस तरह का कदम आखिर क्यों उठाया, तो चलिए समझाते हैं आपको ये पूरा माजरा क्या है...दरअसल चीन में कंपनियों ने एक-दूसरे को पछाड़ने के चक्कर में प्राइस वॉर छेड़ रखी थी। कोई चाय पानी से भी सस्ती बेच रहा था, तो कोई बाइक के दामों में इलेक्ट्रिक कार बेच रहा था। मगर अब सरकार ने इस ‘सस्तेपन के महायुद्ध’ पर लगाम कस दी है।
एक नया कानून लाकर चीन ने साफ कर दिया है कि घाटे में बेचकर बाजार में कब्जा जमाने का खेल अब खत्म! अब जो कंपनी जानबूझकर कम दाम पर सामान बेचेगी, वो सिर्फ नुकसान नहीं उठाएगी, बल्कि कानून की मार भी झेलेगी।
बीते कुछ महीनों से चीन में कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स—चाहे वो बबल टी हो या इलेक्ट्रिक कार (EV)—इतने सस्ते में बेच रही थीं कि वो अपनी लागत से भी नीचे जा रही थीं। सरकार को लगा कि इस तरह की प्रतिस्पर्धा से न सिर्फ बाजार अस्थिर हो रहा है, बल्कि छोटे व्यापारी और नई कंपनियां इसमें टिक नहीं पा रही हैं। इसी वजह से अब चीन ने अपने एंटी-अनफेयर कॉम्पिटिशन कानून (Unfair Competition Law) में बदलाव किया है।
इस बदलाव के पीछे एक बड़ा कारण यह था कि चीन में कुछ बबल टी ब्रांड अपने ड्रिंक्स सिर्फ 30 सेंट (करीब ₹25) में बेच रहे थे। वहीं, कुछ ईवी कंपनियां अपनी इलेक्ट्रिक कारें मात्र 9,900 युआन (करीब ₹1.15 लाख) में ग्राहकों को ऑफर कर रही थीं। सोचिए, इतनी कम कीमतों में बेचना किसी भी सामान्य बाजार तंत्र के लिए खतरे की घंटी है। ये सब कंपनियां जानबूझकर घाटे में सामान बेच रही थीं ताकि ग्राहक उनकी ओर खिंचे और बाकी ब्रांड खुद-ब-खुद बंद हो जाएं। इसे ही अंग्रेजी में "Predatory Pricing" कहा जाता है, और अब चीन इसे सीधा-सीधा "अवैध प्रतिस्पर्धा" की श्रेणी में रख रहा है।
सरकार ने साफ किया है कि इस नए कानून के तहत ऐसी किसी भी कंपनी पर सख्त कार्रवाई की जाएगी, जो अपनी प्रोडक्शन कॉस्ट से कम दाम पर सिर्फ बाजार पर कब्जा जमाने के लिए सामान बेचेगी। चीन की संसद की स्थायी समिति (Standing Committee of National People’s Congress) ने इस संशोधन को मंजूरी दे दी है। इस कानून को अक्टूबर 2025 से लागू किया जाएगा।
अब सवाल उठता है कि ये नियम किन-किन कंपनियों को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा? इसका सबसे सीधा असर ईवी इंडस्ट्री, फूड डिलीवरी एप्स, बबल टी ब्रांड्स, FMCG प्रोडक्ट्स और छोटे रिटेल कारोबारियों पर पड़ेगा। बीते कुछ सालों में चीन की बड़ी टेक और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां बहुत ज्यादा डिस्काउंट देकर नए स्टार्टअप्स को बाजार से बाहर कर रही थीं। इससे आर्थिक संतुलन बहुत ज्यादा बिगड़ रहा था।
इस कानून का एक और उद्देश्य उपभोक्ताओं को भी बचाना है। सस्ते ऑफर के नाम पर कंपनियां कई बार क्वालिटी में कटौती करती हैं या डेटा और अन्य तरीकों से कस्टमर को फंसाती हैं। अब इस पर भी नजर रखी जाएगी। चीन सरकार का कहना है कि वह ऐसे "अननेचुरल प्राइस वॉर" को खत्म करना चाहती है जिससे बाजार में लंबे समय तक सभी कंपनियां टिक सकें और ग्राहकों को भी सही कीमत पर अच्छा सामान मिले।
साथ ही, अब यह भी तय किया जाएगा कि कोई बड़ी कंपनी अपनी पोजीशन का गलत इस्तेमाल कर किसी प्रोडक्ट की कीमत इतनी भी कम ना कर दे कि दूसरों के लिए मुकाबला करना ही नामुमकिन हो जाए।
इस कानून का असर सिर्फ चीन में नहीं बल्कि वैश्विक बाजार पर भी दिख सकता है। चीन की EV कंपनियां दुनियाभर में अपनी कम कीमत की वजह से फेमस हैं, और अब अगर ये कीमतें काबू में आती हैं, तो इसका असर इंटरनेशनल EV मार्केट पर भी पड़ सकता है।
चीन का यह कदम बाजार को संतुलन देने की दिशा में एक अहम पहल है। अब कंपनियों को ग्राहक को लुभाने के लिए सिर्फ कीमत नहीं, बल्कि क्वालिटी, इनोवेशन और सर्विस पर भी ध्यान देना होगा। यह बदलाव उन देशों के लिए भी संकेत है, जहां ऐसी प्राइस वॉर का चलन बढ़ रहा है।