पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में एक मौलवी को पाकिस्तानी सेना की तीखी आलोचना करने और यह घोषणा करने के बाद हिरासत में लिया गया है कि अगर दोनों देशों के बीच संघर्ष हुआ, तो वह भारत का समर्थन करेंगे। मर्दान के मौलवी गुलजार ने कथित तौर पर कहा, "हिंदुओं ने भी हमारे साथ उतना क्रूर व्यवहार नहीं किया है, जितना पाकिस्तानी सैनिकों ने जेल में हमारे साथ किया है। अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो हम पाकिस्तानी सरकार की क्रूरता के कारण भारत का समर्थन करेंगे।"
उन्होंने आगे कहा कि अपनी कैद के दौरान, "सभी उलेमाओं ने पवित्र कुरान की कसम खाई थी कि अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो हम उसका समर्थन करेंगे। पाकिस्तानी सेना मुसलमानों और मदरसा छात्रों के साथ जिस क्रूरता से पेश आती है, वैसा किसी हिंदू या भारतीय सैनिक ने कभी नहीं किया। भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना से बेहतर है।"
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों ने मौलवी गुलजार को एक भाषण के बाद गिरफ्तार कर लिया, जिसमें उन्होंने सेना और खुफिया सर्विस (ISI) की आलोचना की थी। वह अभी भी हिरासत में हैं और अधिकारियों ने न तो उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि की है और न ही उस वीडियो की प्रामाणिकता पर कोई टिप्पणी की है, जिसमें ये बयान दिए गए थे।
यह प्रकरण पाकिस्तान के जनजातीय और सीमावर्ती इलाकों में बढ़ते असंतोष को रेखांकित करता है, जहां राज्य के शासन पर लंबे समय से विवाद चल रहा है।
पड़ोसी खैबर पख्तूनख्वा में, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और उससे जुड़े आतंकवादी गुटों ने प्रांत के बड़े हिस्से को सेना के लिए निषिद्ध क्षेत्र बना दिया है, जहां चौकियां, वाहन निरीक्षण और जबरन "जिहाद कर" लगाए गए हैं।
साथ ही, पश्तून, बलूच, सिंधी और कश्मीरी समुदायों के कार्यकर्ताओं ने पाकिस्तान से आजादी की मांग की है और इस्लामाबाद पर धार्मिक मदरसों के जरिए व्यवस्थित दमन और वैचारिक हेरफेर का आरोप लगाया है।
गुलजार के बयान एक ऐसे मौलवी का दुर्लभ और ज्वलंत उदाहरण हैं, जो खुलेआम सेना के अधिकार को चुनौती देते हुए पाकिस्तान के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारत के साथ खड़ा है। इस्लामाबाद के लिए, इस तरह की असहमति असहनीय है, खासकर राष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा मामलों में सेना के प्रभुत्व को देखते हुए।
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के पिछड़े इलाकों में जिस तरह से राज्य का नियंत्रण कमजोर हो रहा है और आम लोगों में सरकार से दूरी बढ़ रही है, यह किसी एक घटना तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापक समस्या का संकेत है।