ईरान की संसद ने एक अहम बिल पास किया है, जिसमें में कहा गया है कि इस्लामिक देश अब अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के साथ कोई सहयोग नहीं करेगा। ये फैसला इजरायल के साथ हाल ही में हुए टकराव के बाद लिया गया है, जब ईरान के कुछ परमाणु ठिकानों पर हमले हुए थे। इस कानून के तहत ईरान अब IAEA के निरीक्षण को रोक देगा और अपनी न्यूक्लियर साइट तक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की पहुंच सीमित कर देगा।
यह कदम ईरान की ओर से अंतरराष्ट्रीय परमाणु निगरानी तंत्र से बेहद नराजगी के रूप में देखा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि यह फैसला पश्चिमी देशों के साथ तनाव को और बढ़ा सकता है और पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र की स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।
इस बीच अमेरिकी मीडिया ने रिपोर्ट दी है कि अमेरिका की ओर से ईरान के परमाणु ठिकानों पर किए गए हालिया हमले, जिनमें B-2 बॉम्बर विमानों और टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ था, पूरी तरह सफल नहीं रहे।
खुफिया एजेंसी DIA (डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी) की शुरुआती रिपोर्ट के अनुसार, बमबारी से कुछ साइट के एंट्री गेट जरूर बंद हो गए, लेकिन अंडर ग्राउंड इंफ्रास्ट्रक्चर नष्ट नहीं हो सके।
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमले के बाद अपनी सोशल मीडिया साइट ‘ट्रुथ सोशल’ पर दावा किया कि “ईरान के परमाणु ठिकाने पूरी तरह तबाह कर दिए गए हैं!”। वहीं, अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने भी दावा किया था कि अमेरिका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को “पूरी तरह से बर्बाद कर दिया” है।
हालांकि व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलीन लेविट ने इस गुप्त खुफिया रिपोर्ट की पुष्टि करते हुए कहा कि “यह रिपोर्ट पूरी तरह गलत है और इसे टॉप सीक्रेट के तौर पर कैटेग्राइज किया गया था, फिर भी इसे लीक कर दिया गया।”
लेविट ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि “यह लीक राष्ट्रपति ट्रंप को बदनाम करने और मिशन को अंजाम देने वाले साहसी पायलटों की बहादुरी को कम करने की कोशिश है। उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म करने का शानदार ऑपरेशन चलाया था।”
ईरान के इस ताजा फैसले और अमेरिका की तरफ से मिली-जुली प्रतिक्रियाओं ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु तनाव को एक नए मोड़ पर ला दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और गंभीर भू-राजनीतिक हलचल देखने को मिल सकती है।