परप्लेक्सिटी ने पिछले हफ्ते गूगल क्रोम ब्राउजर को खरीदने का ऑफर दिया। परप्लेक्सिटी एआई सर्ज इंजन है, जिसके सीईओ भारतवंशी अरविंद श्रीनिवास हैं। इस ऑफर को लेकर खूब चर्चा हुई। कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट तक कहा। परप्लेक्सिटी की वैल्यूएशन करीब 18 अरब डॉलर है, जबकि इसने गूगल क्रोम को 34.5 अरब डॉलर में खरीदने का ऑफर दिया। यह एक छोटी मछली का ह्वेल को खाने की कोशिश करने जैसा मामला है। सवाल है कि परप्लेक्सिटी इस डील के लिए पैसे कहां से लाएगी?
गूगल ने क्रोम को बेचने का कोई संकेत नहीं दिया है
Perplexity ने कहा है कि उसके पास कई ऐसे इनवेस्टर्स हैं, जो इस डील के लिए पैसे देने को तैयार हैं। दूसरा अहम मसला यह है कि गूगल ने क्रोम को बेचने की पेशकश नहीं की है। यह सही है कि अमेरिका में डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (DOJ) ने गूगल के खिलाफ कई एंटी-ट्रस्ट मामलों के बाद समस्या के समाधान के लिए कुछ रास्तों का सुझाव दिया है। इनमें गूगल, क्रोम और एंड्रॉयड को अलग-अलग करने का सुझाव शामिल है। लेकिन, गूगल इस सुझाव से सहमत नहीं है। उसकी दलील है कि इससे इनोवेशन को चोट पहुंचेगी। अगर कभी गूगल क्रोम को बेचती भी है तो इसकी वैल्यूएशन से 34.5 अरब डॉलर से काफी ज्यादा होगी, जिसकी पेशकशन परप्लेक्सिटी ने किया है।
क्रोम को खरीदने में कई दिग्गज कंपनियां दिलचस्पी दिखा सकती हैं
गूगल अगर कभी क्रोम को बेचने की पेशकश करती है तो इस ब्राउजर को खरीदने में कई दिग्गज इनवेस्टर्स दिलचस्पी दिखा सकते हैं। इसके लिए OpenAI, Apple और Microsoft जैसी कंपनियां बोली लगा सकती हैं। अभी Chrome की बाजार हिस्सेदारी 66 फीसदी है। एपल सफारी की बाजार हिस्सेदारी 16 फीसदी से ज्यादा है, जबकि माइक्रोसॉफ्ट के एज की हिस्सेदारी करीब 5 फीसदी है। फायरफॉक्स की 2.5 फीसदी मार्केट हिस्सेदारी है। दुनियाभर में करीब 3.5 लोग क्रोम का इस्तेमाल करते हैं। खासकर इसका काफी इस्तेमाल स्मार्टफोन में हो रहा है, जो अब पीसी और लैपटॉप का विकल्प बन रहा है।
गूगल से अलग होने पर क्रोम की स्थिति हो सकती है कमजोर
अगर गूगल को क्रोम बेचने के लिए मजबूर किया जाता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि क्रोम लंबे समय तक मार्केट लीडर बना रहेगा। क्रोम आज सबसे आगे इस वजह से है कि गूगल ने इसके लिए काफी पैसे और संसाधन खर्च किए हैं। क्रोम के लॉन्च से पहले तब माइक्रोसॉफ्ट के ब्राउजर इंटरनेट एक्सप्लोर का ज्यादा इस्तेमाल होता था। इसका मुकाबला फायरफॉक्स और ओपेरा जैसे ब्राउजर्स से था। 2008 में लॉन्च होने के बाद से क्रोम की बाजार हिस्सेदारी बढ़ने लगी। जब मोबाइल का इस्तेमाल बढ़ा तो क्रोम दूसरे मोबाइल ब्राउजर से काफी आगे था।
परप्लेक्सिटी की नजरें तेजी से बढ़ते एआई मार्केट पर
इस बात में संदेह नहीं कि परप्लेक्सिटी की क्रोम खरीदने की पेशकश के पीछे सुर्खियों में आने की उसकी चाहत हो सकती है। परप्लेक्सिटी ने खुद को जेन एआई सर्च इंजन के रूप में प्रमोट करने की कोशिश की है, जो जेन एआई के इस्तेमाल से एक्युरेट जवाब देता है। उधर, ओपनएआई, गूगल और एंथ्रोपिक जेन एआई चैटबॉट्स का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें कई फीचर्स हैं। परप्लेक्सिटी भले ही अपने सेगमेंट में मजबूत स्थिति में है, लेकिन इसकी पोजीशन सुरक्षित नहीं है। ऐसे में परप्लेक्सिटी की क्रोम को खरीदने की पेशकश के पीछे इनवेस्टर्स को यह संकेत देने की कोशिश हो सकती है कि उसके बाद फ्यूचर को लेकर विजन है और यह तेजी से आगे बढ़ना चाहती है।