शाहजहांपुर के किसान फसल बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों का लगातार इस्तेमाल कर रहे हैं। शुरुआत में ये फसल की पैदावार बढ़ा देता है। लेकिन लंबे समय में मिट्टी की सेहत पर नकारात्मक असर डालता है। मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरक क्षमता कम हो जाती है, जलधारण क्षमता घट जाती है और लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या भी घटती है। कई बार किसान सोचते हैं कि अधिक रासायनिक उर्वरक डालना ही समाधान है, लेकिन ये तरीका मिट्टी और फसल दोनों के लिए हानिकारक साबित होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों पर पूरी तरह निर्भर न रहते हुए फसल अवशेष को मिट्टी में सड़ाना चाहिए और साथ ही जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए। गोबर की सड़ी हुई खाद और वर्मी कंपोस्ट इसके लिए बेहतर विकल्प हैं।
ये मिट्टी की संरचना, जलधारण क्षमता और वायु-संचार को सुधारते हैं। साथ ही पौधों को पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध कराते हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बढ़ते हैं और मिट्टी लंबे समय तक स्वस्थ बनी रहती है।
अगर आप गेहूं की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं तो रासायनिक उर्वरकों की जगह गोबर की सड़ी हुई खाद या वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल करें। शाहजहांपुर के कृषि विशेषज्ञ डॉ. एनपी गुप्ता के अनुसार, ये दोनों खादें मिट्टी की संरचना, जलधारण क्षमता और वायु-संचार को बेहतर बनाती हैं। इससे फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता दोनों में सुधार होता है।
मिट्टी में पोषक तत्वों की बढ़ोतरी
वर्मी कंपोस्ट और गोबर की सड़ी हुई खाद में सभी जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो पौधों की ग्रोथ के लिए जरूरी हैं। ये मिट्टी में लाभदायक सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाते हैं, जिससे पौधों को पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध हो पाते हैं।
गेहूं की फसल की बुवाई से पहले खेत की अंतिम जुताई के समय 100 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति एकड़ डालना लाभकारी होता है। इसमें पोषक तत्वों के साथ-साथ 20–25 प्रतिशत ऑर्गेनिक कार्बन भी मौजूद होता है, जो मिट्टी की जलधारण क्षमता और स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
वर्मी कंपोस्ट और गोबर की सड़ी खाद के फायदे