यूनियन बजट 2025 पेश होने की तारीख नजदीक आ गई है। नजरें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के ऐलान पर लगी हैं। यूनियन बजट में सरकार जिन उपायों और फैसलों का ऐलान करेगी, उनका असर अगले वित्त वर्ष में इनकम टैक्स के नियमों और सरकार की वित्तीय स्थिति पर पड़ेगा। उम्मीद है कि बजट में इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ाने, लोगों की खर्च करने वाली आय बढ़ाने और कंजम्प्शन को बढ़ावा देने के उपाय शामिल होंगे। हम यहां इंडिविजुअल इनकम टैक्सपेयर्स से जुड़े कुछ नियमों में बदलाव के बारे में बता रहे हैं, जिनका ऐलान यूनियन बजट में हो सकता है।
अभी इनकम टैक्स की नई रीजीम में 7,75,000 और पुरानी रीजीम में 7,50,000 रुपये तक की इनकम पर कोई टैक्स नहीं चुकना पड़ता है। नीचे टेबल में इस बारे में कैलकुलेशन दिया गया है। पिछले पांच सालों में इनकम टैक्स की नई रीजीम में बेसिक एग्जेम्प्शन लिमिट को सिर्फ एक बार बढ़ाया गया है। इसे 2.5 लाख रुपये से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया गया है।
सरकार ने नई रीजीम में टैक्सपेयर्स की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए कुछ ऐलान किए हैं। इसे डिफॉल्ट इनकम टैक्स रीजीम भी बना दिया गया है। इसे और अट्रैक्टिव बनाने के लिए सरकार इसके कुछ स्लैब में टैक्स रेट्स में भी बदलाव कर सकती है। हमारा मानना है कि सरकार मौजूदा स्थितियों में इनकम टैक्स की नई रीजीम और पुरानी रीजीम में कुछ बदलाव कर सकती है। इस बारे में नीचे टेबल में बताया गया है।
वित्तमंत्री होम लोन पर इंटरेस्ट पर डिडक्शन का फायदा नई रीजीम में भी देने का ऐलान कर सकती हैं। इससे सालाना 10,75,000 लाख रुपये तक की इनकम वाले टैक्सपेयर्स को नई रीजीम में टैक्स चुकाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। घर की कीमतें पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गई हैं, जिससे लोगों को ज्यादा होम लोन लेना पड़ रहा है। इसलिए नई रीजीम में भी होम लोन पर टैक्स बेनेफिट देने से घर खरीदने वाले लोगों को काफी राहत मिल जाएगी। इससे रियल एस्टेट सेक्टर को भी बढ़ावा मिलेगा। इकोनॉमिक ग्रोथ और रोजगार के मौके पैदा करने में रियल एस्टेट सेक्टर का बड़ा हाथ है।
2. रेजिडेंशियल स्टेटस के नियम को आसान बनाया जाए
केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का फोकस टैक्स के नियमों को आसान बनाने पर रहा है। सरकार इनकम टैक्स के लिहाज से रेजिडेंशियल स्टेटस के नियम को भी आसान बनाने पर फोकस करने की जररूत है। अभी इनकम टैक्स के नियमों में व्यक्ति को तीन कैटेगरी में बांटा गया है। पहला है रेजिडेंट। दूसरा है रेजिडेंट लेकिन ऑर्डिनरली रेजिडेंट नहीं (RNOR) और तीसरा है नॉन-रेजिडेंट (NRI)। तीन कैटेगरी की वजह से नियमों को लागू करने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। यह तय करने में मुश्किल आती है कि किस इनकम पर इंडिया में टैक्स लगेगा और किस इनकम पर नहीं लगेगा।
सरकार तीन की जगह सिर्फ दो कैटेगरी-रेजिडेंट और नॉन-रेजिडेंट बना सकती है। इस बदलाव का आधार सिर्फ यह हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने एक फाइनेंशियल ईयर में इंडिया में कितने दिन बिताए हैं। इससे RNOR कैटेगरी की जरूरत खत्म हो जाएगी। साथ ही रेजिडेंसी को लेकर ज्यादा उलझन भी नहीं रहेगी।
3. कैपिटल गेंस टैक्स के नियमों में बदलाव
पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड्स में एकमुश्त और SIP से निवेश करने में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है। इससे बैंकों को डिपॉजिट जुटाने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। बैंकिंग सेक्टर सरकार से टैक्स के एक जैसे नियमों की मांग कर रहा है। अभी बैंक में डिपॉजिट पर मिलने वाले इंटरेस्ट पर रेगुलर इनकम की तरह टैक्स लगाया जाता है। सरकार बैंक डिपॉजिट कैपिटल एसेट्स का दर्जा दे सकती है। इससे डिपॉजिट की मैच्योरिटी पर मिलने वाले इंटरेस्ट को कैपिटल गेंस माना जा सकता है। पीरियड के हिसाब से शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस का नियम इस पर लागू हो सकता है।
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अगर सरकार बैंक डिपॉजिट को कैपिटल एसेट्स का दर्जा देती है तो इससे ट्रेडिशनल सेविंग्स और मार्केट लिंक्ड इनवेस्टमेंट के टैक्स के नियमों को लेकर फर्क खत्म होगा। इससे लोगों की दिलचस्पी बैंक डिपॉजिट में बढ़ेगी। खासकर सीनियर सिटीजंस को काफी मदद मिलेगी, जो अपना पैसा म्यूचुअल फंड या शेयरों जैसे मार्केट लिंक्ड इंस्ट्रूमेंट्स में नहीं लगाना चाहते हैं।
(लेखक भूटा शाह एंड कंपनी एलएलपी में पार्टनर हैं)